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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


कोठी तैयार हुई तो बड़े नवाब साहब देखकर परेशान हुए। उन्होंने अनवर से पूछा, ‘‘इतनी बड़ी कोठी में सोने की जगह और जनानखाना कहाँ है?’’

‘‘देखिये अब्बाजान!’’ अनवर उनको एक बेडरूम में ले जाते हुए बोला, ‘‘यह सोने का कमरा है। दो पलंग लगे हैं। हर किस्म के ऐशो-आराम का सामान इसमें मौजूद है।’’

‘‘मगर यह तो तीन तरफ से खुला है। कोठी के लॉन में खड़ा आदमी आसानी से अन्दर झाँक सकता है।’’

‘‘रात को सोने के वक्त तो इसके ये दरवाजे बन्द रहेंगे।’’

‘बरखुरदार! औरत के रहने का कमरा तो ऐसा होना चाहिये, जहाँ फरिश्ते भी न झाँक सकें।’’

‘‘फरिश्तों को झाँकने की जरूरत नहीं होती, अब्बाजान! शैतान से बचने के लिये दरवाजे लगवा लिये हैं। और मैं समझता हूँ कि काफी मजबूत भी हैं।’’

‘‘मगर जनानखाना कहाँ है? जब औरतों ने मिल बैठना हो तो कहाँ जायेंगी?’’

‘‘हर एक बेडरूम के बाहर बैठक है और फिर एक साझा ड्राइंगरूम भी है।’’

‘‘ये सब तो बेपर्दा हैं। कितना रुपया इस कोठी पर खर्च कर दिया है?’’

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