उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘इस पर मेरा मन रीझा हुआ है। दूसरा कोई इतना पसन्द आयेगा अथवा नहीं, कहना कठिन है। यदि कोई मिल भी गया तो उसको राजी करने का यत्न भी तो मुझको ही करना होगा।’’
‘‘तब तो मुझको भगवान् का धन्यवाद करना चाहिये कि मैं हिन्दुस्तानी समाज में पैदा हुई हूँ। मुझको अपने विवाह की चिन्ता नहीं। मेरे माता-पिता इस विषय में चिन्ता कर रहे हैं।’’
‘‘परन्तु यदि कोई ऐसा मिल गया, जिसको तुम पसन्द नहीं करतीं तो फिर क्या करोगी? तुम्हारे समाज में तो तलाक भी नहीं दिया जा सकता?’’
‘‘यदि मेरे भाग्य में सुख बदा है तो पिताजी का चुनाव ही ठीक हो जायेगा। भाग्य अनुकूल न हो तो अपना चुना हुआ भी बदल सकता है।’’
इस दावत ने एक बात का ज्ञान इन्द्रनारायण को भी करा दिया। जब वह नवाब साहब से बातचीत कर रहा था तो उसे कुछ ऐसा समझ आया था कि नवाब साहब अपनी पतोहू से प्रसन्न नहीं हैं। उन्होंने कहा था, ‘‘अनवर मेरा एक ही लड़का है। इसलिए मैं उसको नाराज नहीं कर सकता, वरना बहू के तौर-तरीके घर पर और बाहर भी पसन्द नहीं किये जाते।’’
इस पर इन्द्र ने कह दिया, ‘‘मैं तो समझा था कि आप बहुत ही आजाद-खयाल मुसलमान हैं, जो इस प्रकार अपनी बहू को सबमें घूमने की इजाजत दे रखी है।’’
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