उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘परन्तु मैं तो इससे प्यार करती हूँ।’’
‘‘वह क्या होता है?’’
मिस स्मिथ ने समझ लिया कि वह उसकी हँसी उड़ाने लगी है, परन्तु रजनी को सर्वथा गम्भीर देख कहने लगी, ‘‘यह शब्दों में वर्णन किया जाना कठिन है। इसका ज्ञान तो उसे ही और तभी होता है, जब कोई इसके जाल में फँस जाता है।’’
‘‘तुम ठीक कहती हो। मेरे मस्तिष्क में अभी यह पागलपन सवार नहीं हुआ। परन्तु तुम कब से इस फन्दे में फँसी हो?’’
‘‘यूँ तो जब मैं पढ़ती थी, तब भी विष्णु से प्रेम करती थी। उस समय इरीन मुझसे बाजी ले गयी। जब मुझको यह पता चला कि इरीन ने इसको स्वीकार नहीं किया, तो मैं इसको अपनी ओर आकर्षित करने लगी। कभी तो यह बहुत ही मीठा बन जाता है और मुझको आशा होने लगती है कि मैं इससे विवाह करने में सफल हो जाऊँगी, कभी इनका मूड़ बहुत बिगड़ जाता है, जैसा कि आज है।’’
‘‘परन्तु तुम दिन-रात यही विचार करती रहती हो क्या? क्या तुम्हारे लिए अन्य कुछ काम नहीं?’’
‘‘यू तो मैं काम करती हूँ। टेलीफोन विभाग में सवा सौ रुपये मासिक पाती हूँ, परन्तु विवाह भी तो करना है। हमारे समाज में इसका प्रबन्ध करना हमारा काम है। हमारे माता-पिता इसमें कुछ भी सहायता नहीं कर सकते।’’
‘‘तो चिन्ता किस बात की करती हो? यह नहीं तो कोई और मिल ही जायेगा।’’
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