उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
दोनों चलकर वहाँ आ गये। रजनी ने बच्चे को बेगम की गोदी में दे दिया। रजनी इन्द्रनारायण के पास आकर खड़ी हो गयी। बेगम बच्चे को लिये अपने अन्य सम्बन्धियों में चली गयी।
चाय लेते समय मिस स्मिथ पुनः रजनी के पास आ बैठी। जब सब दावत खा रहे थे तो नवाब साहब ने उठकर सबको दावत में आने का शुक्रिया किया और फिर बच्चे की लम्बी उमर के लिये खुदावन्त करीम से दुआ की। सब बैठे हुए लोगों ने ‘आमीन’ कहकर नवाब साहब का समर्थन कर दिया। इरीन की माँ ने एक सोने का लॉकेट बच्चे के गले में डाल दिया। इसके पश्चात् सम्बन्धियों ने बच्चे को खिलौने और कपड़े भेंट-स्वरूप दिये। इरीन बहुत प्रसन्न थी।
विष्णु मिस स्मिथ की दूसरी ओर बैठा हुआ था। इस पर भी वह किसी दूसरी ओर देख ही रहा था। मिस स्मिथ ने उससे बात करने का यत्न किया, परन्तु विष्णु ने उसकी बात अनसुनी कर दी। निराश मिस स्मिथ उसकी ओर पीठ करके रजनी से बातचीत करने लगी। उसने रजनी से कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि विष्णु ने अभी भी तुमको अपने मस्तिष्क से नहीं निकाला।’’
रजनी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘यह तो नहीं कहा सकता है कि मैं उसके मस्तिष्क में हूँ अथवा नहीं। हाँ, इतना निश्चय है कि तुम उसके मस्तिष्क में नहीं।’’
‘‘यह मैं जानती हूँ, परन्तु इसका कारण यह है कि मेरे माता-पिता इतने धनी नहीं, जितने तुम्हारे हैं।’’
‘‘तो ऐसा करो, तुम किसी ऐसे से प्रेम करो, जिसको तुम्हारे माता-पिता के धन की आवश्यकता ही न हो।’’
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