उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
इस समय ‘आया’ बच्चे को गोदी में लिये वहाँ आ पहुँची। सब ‘आया’ को घेरकर खड़े हो गये। रजनी भी उस ओर घूम गयी। वह इन्द्र और बेगम की ओर नहीं गयी।
जब सब बच्चे को देख चुके तो रजनी ने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया। उसके मुख को अपने सामने कर उसकी नन्ही-नन्ही आँखों में देखने लगी। बच्चा भी एक नया मुख सामने देखकर मुस्कराया और प्रसन्नता से हाथ-पाँव खिलाने लगा।
इन्द्र ने रजनी को बच्चे को प्यार करते देखा तो रहमत से बोला, ‘‘देखो, रजनी क्या कर रही है।’’
‘‘क्या कर रही है?’’
‘‘बच्चे का मुख चूम-चूमकर उससे बातें करने का यत्न कर रही है।’’
‘‘उसमें ‘मदरहुड’ (मातृत्व-भावना) जागृत हो रही है।’’
‘‘वह क्या होती है?’’
‘‘बता नहीं सकती। इसको केवल अनुभव ही करती हूँ। कभी-कभी मेरा भी चित्त करता है कि बच्चे को छाती से लगवाकर उसका मुख चूमती रहूँ।’’
‘‘आओ, देखूँ तो। कैसा है वह, जो रजनी को इतना प्यारा लग रहा है?’’
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