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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘हाँ, अपना मन बहलाने के लिये।’’

‘‘इन्द्र बहुत ही भाग्यशाली है।’’ इतना कहते-कहते विष्णु ने एक दीर्घ निःश्वास छोड़ा। रजनी देख रही थी। वह इस निःश्वास का अर्थ नहीं समझी, इस कारण विस्मय में पूछने लगी, ‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘मुझको इन्द्र से ईर्ष्या होने लगी है। वह चौबीस घण्टे आपकी संगत में रहता है, आपका सितार-वादन सुनता और फिर आप गाती भी होंगी।’’

‘‘मामाजी! मौसी सितार नहीं बजातीं क्या? वह भी तो चौबीस घंटे आपके घर में ही रहती हैं।’’

‘‘मौसी? मामा? गालियाँ देने लगी हैं आप, मिस रजनी!’’

इन्द्रनारायण ने रजनी को विष्णु के मामा कहलाने में अरुचि की बात बताई हुई थी। इस कारण मौसी, मामा शब्दों का विष्णु के विस्मय करने पर, उसको हँसी आ गयी।

विष्णु ने अपने विस्मय की व्याख्या कर दी, ‘‘देखो रजनी! मुझको किसी लड़के अथवा लड़की का मामा बनना अच्छा प्रतीत नहीं होता।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस नहीं, मुझको पसन्द नहीं।’’

‘‘तो न सही। विष्णु भैया! आपके घर में कोई संगीत नहीं जानता?’’

‘‘भाभी गाया करती हैं, परन्तु वह तो मीरा और सूर के गीत ही गाती है।’’

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