उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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विष्णु रजनी को दूर से घास के लॉन में ले जाकर पूछने लगा, ‘‘इन्द्र से आपकी पटती कैसे है? वह तो सर्वथा नीरस व्यक्ति है। किताबी कीड़े की भाँति दिन-रात पढ़ता रहता है।’’
‘‘पढ़ाई करना ही तो आजकल हमारा काम है।’’ रजनी ने कह दिया, ‘हमको इसी में रस अनुभव करना चाहिये।’’
‘‘ठीक है, मगर एक ही काम के पीछे दिन-रात लगे रहना और किसी अन्य बात की ओर ध्यान न देना, निराशा तो उत्पन्न करेगा ही?’’
‘‘अपनी-अपनी रुचि है।’’ रजनी ने यह कहकर बात टालने का यत्न किया।
‘‘वह तो ठीक है, रुचि तो है ही। इस पर भी कॉलेजों में खेल-कूँद पढ़ाई से कम महत्त्व नहीं रखता। खेल-कूद की पढ़ाई जैसे आवश्यक ही हैं।’’
‘‘उतना मात्र तो होता ही है। फिर जीवन-भर होना भी है।’’
‘‘किस खेल में रुचि रखता है, इन्द्र?’’
‘‘प्रातः दण्ड-बैठक निकालता है।’’
‘‘और आप?’’
‘‘मैं चर्खा कातती हूँ और सितार बजाती हूँ।’’
‘‘ओह! आपको संगीत में रुचि है?’’
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