उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
लड़की के पेट में दर्द रहता था। मैं समझ गया था कि अपेन्डेसाइटस है। उसका ऑपरेशन कर दिया गया। अपेंडेक्स सर्वथा ठीक था। इस पर भी उसको निकाल दिया गया। जब घाव ठीक हुआ और लड़की को छुट्टी मिलने वाली थी कि उसको फिर से पीड़ा हुई। उसको पुनः ऑपरेशन टेबल पर ले जाया गया। उसके पिता से ऑपरेशन की स्वीकृति वाले फार्म पर हस्ताक्षर कराते ही चाक चला दिया गया। पेट चीरकर यह देखने का यत्न किया गया कि क्यों दर्द हो रहा है। जब कुछ पता नहीं चला तो पेट सी दिया गया।
इस प्रकार लड़की ठीक न हो सकी। घाव में पस पड़ गया था और वह चल बसी।
इन्द्रनारायण इसका यह अर्थ समझता था कि मेडिकल साइंस अभी अपूर्ण है। इस पर वह विचार करता था कि क्या गाँव की दाई की साइंस हम शहरी डॉक्टरों से अधिक पूर्ण है। उसने अपने प्रोफेसरों से यह सुना हुआ था कि यह क्वैकरी (अज्ञानता) है। अज्ञानता होने पर भी उस दाई ने रोग का निदान किया था और इलाज भी ठीक ही किया था।
इन्द्रनारायण को चुप देख नवाब साहब ने कह दिया, ‘‘बरखुरदार! यह शैतानी विद्या पढ़ो, मगर मेरी बात भी समझो कि अपने मुल्क में भी बहुत-सी बातें हैं और उनका इल्म हासिल करना भी बहुत बड़ा काम है। उससे तुमको, तुम्हारे रोगियों को और तुम्हारे बाल-बच्चों को, जो तुम्हारी कमाई के वारिस होने वाले हैं, बहुत लाभ होगा।’’
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