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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


पत्र लाने वाले ने झुककर सलाम किया और चला गया।

चौकीदार भी, जो बड़े मियाँ के साथ अन्दर चला आया था, उसके साथ बाहर चला गया।

रजनी ने हँसते हुए कह दिया, ‘‘दुनिया तेजी से भागी जा रही है।’’

‘‘हाँ, अभी कल की बात है कि मैं तुम्हारे कहने पर इस कोठी में आकर रहने से हिचकिचा रहा था। आज पौने दो वर्ष हो गये हैं और उस बात को।’’

रजनी का मुख मलिन था। वह विचार करने लगी थी कि वह विवाह करेगी अथवा नहीं। करेगी तो फिर डॉक्टर बनने की आवश्यकता क्या है? वह डॉक्टरी केवल ज्ञान-वृद्धि के लिये पढ़ रही है क्या? न ही वह चिकित्सा-कार्य का स्वप्न देखती है। तब विवाह के लिये अवकाश रहेगा क्या?

वह एक लेडी डॉक्टर, मिसेज लाल को जानती थी। उसका विवाह हो चुका था, परन्तु उसके घर कोई बच्चा नहीं था। उसके मन में यह विचार-श्रृंखला तो इरीन के घर बच्चा होने पर आरम्भ हुई थी। यदि विवाह होने पर भी बच्चे पैदा नहीं करने, तो विवाह का लाभ ही क्या है?

इन्द्रनारायण उसका एकाएक गम्भीर और मलिन मुख होते देख रहा था।

जब वह चिरकाल तक नहीं बोली और गम्भीर हुई बैठी रही तो उसने पूछ लिया, ‘‘क्या सोच रही हो रजनी? यदि वहाँ जाने की इच्छा न हो तो नहीं चलेंगे।’’

‘‘यह बात नहीं, भैया! मैं विचार कर रही थी कि सरोज भाभी का विवाह हुए पन्द्रह वर्ष हो गये उनके कोई बच्चा नहीं हुआ। यह इरीन ठीक रही। चट मँगनी, पट ब्याह और फिर बच्चा भी हो गया।’’

‘‘सरोज भाभी का विवाह हुए पन्द्रह वर्ष अवश्य हो गये हैं, परन्तु उनका गौना हुए अभी तो दो वर्ष भी नहीं हुए।’’

‘‘अच्छा भैया! हमारी नयी भाभी आयेगी तो बच्चा जल्दी होना चाहिये।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मेरा दिल बच्चे को खिलाने का करता है।’’

‘‘तो डॉक्टर बनकर क्या करोगी? पिताजी को कहकर शीघ्र विवाह कर लो, बच्चा खिलाने को मिल जायेगा।’’

रजनी हँस पड़ी। हँसते हुए बोली, ‘‘मेरा विवाह जब होगा, तब होगा। इन्द्र भैया का विवाह तो हो चुका है। उसका गौना भी हो रहा है। अब भैया! अपने जैसा एक लड़का प्राप्त कर लो तो मेरी इच्छा पूर्ण हो जायेगी।’’

‘‘सुनी नहीं पिताजी की बात? लड़की को ससुराल तो बचपन में ही आ जाना चाहिये। बच्चे इत्यादि पीछे होते रहेंगे। सो बच्चों की बात तो शिक्षा-समाप्ति के पश्चात् होनी चाहिये।’’

‘‘नहीं भैया!’’

‘‘रजनी बहन को इरीन से ईर्ष्या होने लगी है क्या?’’

रजनी हँसती हुई बोली, ‘‘ईर्ष्या की बात नहीं है। भला उस चरित्र की औरत से कोई ईर्ष्या कर सकता है क्या? बात यह है कि हमारे घर में कोई छोटा बच्चों वर्षों से नहीं आया, इसलिए किसी बच्चे को गोदी में लेकर खिलाने को जी करता है।’’

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