उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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इन्द्रनारायण और रजनी कॉलेज से आकर सायंकाल का अल्पाहार ले रहे थे कि एक बकरे की भाँति दाढ़ी रखे हुए वृद्ध नौकर आया और वकील साहब के चौकीदार के साथ भीतर आ झुककर सलाम कर बोला, ‘‘हुजूर! मुआफ करें। बेगम साहिबा ने कहा था कि दावतनामे खुद हाजिर होकर दूँ और हुजूर से दरख्वास्त करूँ कि इस मौके पर जरूर तशरीफ लावें।’’
दो लिफाफे थे। इन्द्रनारायण ने अपने नाम के लिहाफे से कार्ड निकाला और पढ़ा। लिखा था–‘‘नवाब साहब वाजिद हुसैन, ताल्लुकेदार बाराबंकी, मिस्टर इन्द्रनारायण को अपने पोते, नवाबजादा अनवर हुसैन और उसकी बेगम रहमत बी के लड़के सरवर हुसैन की सुन्नत की रस्म के मौके पर, मार्च की बीस तारीख को शाम के पाँच बजे, चाय पर दावत देते हैं। उम्मीद करते हैं कि आप तशरीफ फरमाकर इस मौके को रौनक बख्शेंगे और अजीज की जिन्दगी दराज की दुआ में शामिल होंगे।’’
‘‘ओह!’’ रजनी के मुख से निकल गया, ‘‘इरीन माँ हो गयी!’’
‘‘इसका मतलब है, तीन मास हो गये हैं।’’
‘‘कहाँ आने को लिखा है?’’
‘‘मोतीबाग, कोठी नम्बर दस में।’’
‘‘अच्छा बड़े मियाँ!’’ रजनी ने पत्र लाने वाले को कह दिया, ‘‘हम आयेंगे।’’
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