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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इन्द्रनारायण को रजनी की इस लालसा का अर्थ नहीं समझ आया। क्या मिलेगा इसे बच्चे को खिलाने में? उसे स्मरण हो आया। राधा बहुत छोटी थी और उसको गोदी में लिये हुए मकान की छत पर खुली हवा में घूम रहा था। राधा ने उसकी गोदी में टट्टी और पेशाब कर दिया था। तब से उसकी राधा को गोदी में लेने की इच्छा कभी नहीं हुई।

अपनी उस घटना को स्मरण कर वह खिलखिलाकर हँस पड़ा। रजनी इस हँसी का अर्थ समझ नहीं सकी। इन्द्रनारायण ने कह दिया, ‘‘जब बच्चा कपड़ों पर पेशाब कर देगा तो सब शौक समाप्त हो जायेगा।’’

रजनी इस अवस्था का चिन्तन कर चुप कर रही। वह अपने मन की अवस्था का विश्लेषण करने लगी थी।

रजनी को इस दिन का वार्तालाप नवाब साहब के घर चाय-पार्टी के समय स्मरण हो आया। उसको बच्चा खिलाने को मिल गया। रजनी पहुँची तो चालीस से ऊपर मेहमान आये हुए थे। उस दिन केवल इरीन के मित्र ही आमन्त्रित थे। नवाब साहब के रिश्तेदार एक दिन पहले ही बुलाये जा चुके थे। उस दिन औरतों के लिये परदा का प्रबन्ध था। बेगम औरतों में ही रही थी। केवल बच्चा बाहर पुरुष मेहमानों में लाया गया था।

आज बेगम ने अपने मित्रों को बुलाया था। उनमें लड़के-लड़कियाँ, उसके स्कूल तथा कॉलेज के सहपाठी और उसके पिता के सम्बन्धी थे। रजनी के परिचितों में एक विष्णुस्वरूप था और दो उसी श्रेणी के अन्य विद्यार्थी थे। मिस स्मिथ भी थी। इनके अतिरिक्त इन्द्रनारायण का कोई अन्य परिचित नहीं था।

रजनी और इन्द्रनारायण की सबसे पहले विष्णु से भेंट हुई।

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