उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
जब उसकी माँ ने कहा कि हम कल तुम्हारी ससुराल में पत्र लिख देंगे कि वे गौने का मुहूर्त निकलवाकर लिखें, तो इन्द्रनारायण ने कह दिया, ‘‘माँ! एक बात करो। मेरी परीक्षा मई के आरम्भ में होने वाली है। तुम उनको लिख दो कि गौना मई मास की पन्द्रह तारीख के बाद होगा। इससे पहले मैं एक दिन के लिए भी कॉलेज में अनुपस्थित नहीं रह सकूँगा।’’
माँ इन्द्र के इस कथन पर संतोष अनुभव करती थी। उसने कहा, ‘‘बेटा! चिरंजीव और सुखी रहो। मेरे सिर से भारी बोझा उतर जायेगा।’’
अपने माता-पिता को गाड़ी पर चढ़ा इन्द्र सिन्हा साहब की कोठी पर चला आया। सब रात का भोजन कर रहे थे। इन्द्र भी हाथ धो खाने की मेज पर अपने नियत स्थान पर जा बैठा।
बैरा ने उसके सामने प्लेट लगा दी। इस समय रमेश सिन्हा ने पूछ लिया, ‘‘इन्द्र! तुम्हारे पिता किसी काम से आये थे क्या?’’
‘‘वे कहते तो थे कि केवल मिलने आये हैं, परन्तु मुझको कुछ ऐसा प्रतीत हुआ है कि वे गौना लाने के लिये मेरी स्वीकृति हेतु आए थे। मैं बहुत यत्न कर टाल रहा था, परन्तु नानाजी के घर में कुछ ऐसी बातें हो गई कि मुझको स्वीकार ही करना पड़ा।’’
‘‘तो कब होगा तुम्हारा गौना?’’
‘‘मैंने माँ से कह दिया है कि पन्द्रह मई के पश्चात् जो मुहूर्त निकले, निश्चय कर लें।’’
‘‘मैं समझता हूँ कि तुमने ठीक ही किया है।’’
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