उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘इसी प्रकार इन्द्र और विष्णु, तुम भी सुन लो। दुर्बल पर दया का फल तब निकलता है, जब दुर्बल को ज्ञान हो जाये कि उस पर दया की जा रही है। यह दया का अनुभव उसको तभी होता जब तुम दो-तीन चपत लगा देते।’’
इन्द्र ने अर्थ-भरी दृष्टि से विष्णु की ओर देखा और कह दिया, ‘‘नानाजी! इस बार भूल हो गयी है, अगली बार यह भूल नहीं करूँगा।’’
‘‘हाँ।’’ यह कहकर शिवदत्त अपने सोने के कमरे में दफ्तर के कपड़े उतारने के लिये चला गया। विष्णु और इन्द्र वहीं बैठे रहे। विष्णु ने कह दिया, ‘‘इन्द्र तुमने पिताजी को असल बात न बताकर अच्छा ही किया है।’’
‘‘परन्तु तुमने मुझको चपत लगाकर अच्छा नहीं किया।’’
‘‘वह तुम एक चपत मुझको लगा लेना।’’
‘‘नहीं, मैं तुमको नहीं पीटूँगा। तुम मामा हो। मैं तुम्हारा आदर करता हूँ!’’
‘‘हत्तेरे की! गाली भी देते हो और आदर भी करते हो?’’
इस घटना के पश्चात् विष्णु स्वरूप इन्द्रनारायण से और भी दूर-दूर रहने लगा। दोनों घर पर एक ही कमरे में पढ़ते थे और परस्पर एक-दूसरे की सहायता भी करते थे। इसमें भी प्रायः विष्णु को ही सहायता की आवश्यकता रहती थी।
साइंस में कभी इन्द्रनारायण को कोई बात समझ नहीं आती तो वह मामा से समझ लेता था। विष्णु का सामान्य ज्ञान इन्द्र से अधिक था और इसी कारण विज्ञान को वह अधिक सुगमता से समझ जाता था।
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