उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
रामाधार ने कोठी के बरामदे में खड़े होकर इधर-उधर झाँकना आरम्भ किया तो रजनी की भाभी सरोज, जो अपने कमरे की खिड़की में चिक के पीछे से देख रही थी, सौभाग्यवती का मुख इन्द्र से मिलता देख समझ गयी। वह भागी हुई अपनी सास के पास गयी और बोली, ‘‘मालूम होता है कि इन्द्रनारायण के माता-पिता बाहर हैं।’’
‘‘कैसे जाना?’’
‘‘अनुमान से।’’
लक्ष्मीदेवी उठी और अपने कमरे से वकील साहब की बैठक में जा, भीतर से बरामदे वाला दरवाजा खोल बरामदे में आ गयी। उस समय तक चपरासी आ गया था और उनसे पूछताछ कर रहा था। जब लक्ष्मीदेवी ने दरवाजा खोला तो चपरासी ने कह दिया, ‘‘ये इन्द्र बाबू को पूछ रहे हैं।’’
‘‘आइये, भीचर चलिये।’’ लक्ष्मीदेवी ने सौभाग्यवती और उसके पति को कह दिया।
दोनों बैठक में गये तो वहाँ उनको बिठाकर रजनी की माँ ने पूछा, ‘‘आप पण्डित रामाधार हैं?’’
‘‘जी, आप?’’
‘‘मैं भी इस घर में कुछ हूँ। बताइये, आप भोजन करेंगे? घर से किस समय चले थे?’’
‘‘घर से तो हम प्रातः छः बजे चले हैं। पर हमने पूरी आदि खा ली हैं। इन्द्र से मिलकर सायंकाल लौट जाने का विचार है।’’
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