उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘रात को रहियेगा नहीं?’’
‘‘घर पर बच्चे अकेले हैं।’’
‘‘तो ठीक है। परन्तु इन्द्र तो पाँच बजे से पहले कॉलेज से नहीं आता।’’
‘‘तब तो बहुत कठिनाई होगी। हम रात को दस बजे की गाड़ी से जाकर प्रातः छः बजे ही घर पहुँच सकेंगे।’’
‘‘आपको पहले चिट्ठी लिख देनी चाहिये थी। देखिये, मैं यत्न करती हूँ कि उसको आपके आने की सूचना भेज दूँ। यदि उसको अवकाश मिल सका तो भी तीन बजे तक ही आ सकेगा।’’
‘‘तो भेज दीजिये।’’
‘उस समय दो बज रहे थे। सरोज ने कॉलेज में फोन कर दिया। इस समय इन्द्रनारायण का पीरियड चल रहा था। क्लर्क ने कह दिया कि पीरियड के पश्चात् उसको संदेश दे दिया जायेगा। सवा तीन बजे इन्द्रनारायण और रजनी दोनों घर पहुँच गये। माँ ने इन्द्र के साथ एक लड़की को पुस्तकें बगल में दबाये इकट्ठे इक्के से उतरते देखा तो विस्मय और चिन्ता भी।
रजनी एक युवा सुन्दर लड़की थी। यद्यपि उसने उस समय बहुत ही साधारण कपड़े पहने हुए थे और किसी प्रकार की सजावट अथवा श्रृंगार नहीं किया हुआ था, इस पर भी वह बहुत ही आकर्षक प्रतीत होती थी।
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