उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘और तुम्हारे ख्याल में शादी किसलिए है?’’
रहमत ने प्रेम-भरी दृष्टि से पति की ओर देखा। उसे चुप देख उसकी दृष्टि का अर्थ न समझने का बहाना करते हुए अनवर हुसैन ने पूछा, ‘‘बताओ न, शादी किसलिए की है?’’
‘‘क्या पिछले दो महीनों में बताया नहीं?’’
‘‘मैंने तो कुछ नहीं सुना।’’
‘‘अब्बाजान से पूछना चाहिए था कि उनको चार की जरूरत क्यों पड़ी है, जब औलाद तो एक से भी नहीं हो रही?’’
‘‘भला ऐसे कुफ्र की बात मुझसे उम्मीद करती हो! वे वालिद शरीफ तो परस्तिश (पूजा) के लायक हैं। हाँ, तुमसे पूछता हूँ।’’
‘‘आप जो हर रात मेरी परस्तिश करते हैं, क्यों करते हैं?’’
दोनों हँसने लगे। कुछ दूर जाने पर रहमत ने पूछा, ‘‘तो सिद्ध हुआ कि आपको औलाद की आवश्यकता नहीं है?’’
‘‘यह बात नहीं। बिना औलाद तो हमारा खानदान ही नहीं चलेगा।’’
‘‘तो जरूरत है?’’
‘‘बेहद और देखा, अगर एक साल में तुम्हारे बच्चे की उम्मीद नहीं हुई तो मुझको दूसरी शादी करने को अब्बाजान मजबूर करेंगे।’’
‘‘और अगर हो गयी तो?’’
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