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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


अहिल्या–मिला क्यों नहीं, बाबूजी हाल ही में काशी गये थे। जगदीशपुर के राजा साहब ने आपके पिताजी को ५० रु, मासिक बाँध दिया है, इससे अब उनको धन का कष्ट नहीं है। आपकी माताजी अलबत्ता रोया करती हैं! छोटी रानी साहब की आपके घरवालों पर विशेष कृपादृष्टि हैं।

चक्रधर ने विस्मित होकर पूछा–छोटी रानी कौन?

अहिल्या–रानी मनोरमा, जिनमें अभी थोड़े ही दिन हुए, राजा साहब का विवाह हुआ है।

चक्रधर–तो मनोरमा का विवाह राजा साहब से हो गया?

चक्रधर–तुम्हें खूब याद है, भूल तो नहीं रही हो?

अहिल्या–खूब याद है, इतनी जल्दी भूल जाऊँगी!

चक्रधर–यह तो बड़ी दिल्लगी हुई, मनोरमा का विवाह विशालसिंह के साथ! मुझे अब भी विश्वास नहीं आता। बाबूजी ने नाम बताने में गलती की होगी।

अहिल्या–बाबूजी को स्वयं आश्चर्य हो रहा था। काशी में भी लोगों को बड़ा आश्चर्य है। मनोरमा ने अपनी खुशी से विवाह किया है, कोई दबाव न था। मनोरमा किसी से दबनेवाली है ही नहीं। सुनती हूँ, राजा साहब बिलकुल उनकी मुट्ठी में है। जो कुछ वह करती हैं, वही होता है। राजा साहब तो काठ के पुतले बने हुए हैं। बाबूजी चन्दा माँगने गये थे, तो रानीजी ही ने पाँच हज़ार दिये। बहुत प्रसन्न मालूम होती थीं।

सहसा लेडी ने कहा–वक़्त पूरा हो गया। वार्डर, इन्हें अन्दर ले जाओ।

चक्रधर क्षण भर भी और न ठहरे। अहिल्या को तृष्णापूर्ण नेत्रों से देखते हुए चले गये। अहिल्या ने सजल नेत्रों से उन्हें प्रणाम किया और उनके जाते ही फूट-फूटकर रोने लगी।

२२

फागुन का महीना आया, ढोल, मँजीरे की आवाज़ें कानों में आने लगीं: कहीं रामायण की मंडलियाँ बनीं, कहीं फाग और चौपाल का बाज़ार गर्म हुआ। पेड़ों पर कोयल कूकी, घरों में महिलाएँ कूकने लगीं। सारा संसार मस्त है, कोई राग में कोई साग में। मुंशी वज्रधर की संगीत सभा भी सजग हुई। यों तो कभी-कभी बारहों मास बैठक होती थी, पर फागुन आते ही बिना नागा मृदंग पर थाप पड़ने लगी। उदार आदमी थे, फ़िक्र को कभी पास न आने देते। इस विषय में वह बडे़-बड़े दार्शनिकों से भी दो कदम आगे बढ़े हुए थे। अपने शरीर को वह कभी कष्ट न देते थे। कवि के आदेशानुसार बिगड़ी को बिसार देते थे। हाँ, आगे की सुधि न लेते थे। लड़का जेल में है, घर में स्त्री रोते-रोते आधी हुई जाती है, सयानी लड़की घर में बैठी हुई है, लेकिन मुंशीजी को गम नहीं। पहले २५ रु. में गुज़र करते थे, अब ७५ रु. भी पूरे नहीं पड़ते। जिनसे मिलते हैं हँसकर, सबकी मदद करने को तैयार, मानों उनके मारे अब कोई प्राणी रोगी, दुःखी दरिद्र न रहने पाएगा, मानों वह ईश्वर के दरबार से लोगों का कष्ट दूर करने का ठीका लेकर आये हैं। वादे सबसे करते हैं, किसी ने झुककर सलाम किया और प्रसन्न हो गए। दोनों हाथों से वरदान बाँटते फिरतें हैं, चाहे पूरा एक भी न कर सकें। अपने मुहल्ले के कई बेफ़िक्रों को, जिन्हें कोई टके को भी न पूछता था, रियासत में नौकर करा दिया–किसी को चौकीदार, किसी को मुहर्रिर, किसी को कारिन्दा। मगर नेकी करके दरिया में डालने की उनकी आदत नहीं। जिससे मिलते हैं, अपना ही यश गाना शुरू करते हैं और उसमें मनमानी अतिश्योक्ति भी करते हैं, मशहूर हो गया है कि राजा और रानी दोनों मुट्ठी में हैं। सारा अख़्तियार मदार इन्हीं के हाथ में है।

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