उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
मनोरमा–भैयाजी को रियासत में जगह देनी होगी।
राजा–तो दे देना, मैं रोकता कब हूँ?
मनोरमा–कल चार बजे आने की कृपा कीजिएगा। मुझे आपके साथ आज न चलने का बड़ा दुःख है, पर मज़बूर हूँ। मैं चली जाऊँगी, तो भैयाजी कुछ का कुछ कर बैठेंगे। आप नाराज़ तो नहीं हैं?
यह कहते-कहते मनोरमा की आँखें खजल हो गईं। राजा ने मन्त्र-मुग्ध नेत्रों से उसकी ओर ताका और गद्गद होकर बोले–तुम इसकी ज़रा भी चिन्ता न करो। तुम्हारा इशारा काफ़ी है। लो, अब खुश होकर मुस्कुरा दो। देखा, वह हँसी आयी!
मनोरमा मुस्कुरा पड़ी। पानी में कमल खिल गया। राजा साहब ने उससे हाथ मिलाया और चले गए। तब मनोरमा आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गई।
इस समय गुरुसेवक की दशा उस आदमी की-सी थी, जिसके सामने कोई महात्मा धूनी रमाए बैठे हों, और बगल में कोई विहँसित, विकसित रमणी मधुर संगीत अलाप रही हो। उसका मन तो संगीत की ओर आकर्षित होता हैं; लेकिन लज्जावश उधर न देखकर रह जाता है और महात्मा के चरणों पर सिर झुका देता है।
मनोरमा कुर्सी पर बैठी उनकी ओर इस तरह ताक रही थी, मानों किसी बालक ने अपनी काग़ज़ की नाव लहरों में डाल दी हो और उसको लहरों के साथ हिलते हुए बहते देखने में मग्न हो। नाव कभी झोंके खाती है, कभी लहरों के साथ बहती है और कभी डगमगाने लगती है। बालक का हृदय भी उसी भाँति कभी उछलता है, कभी घबराता है और कभी बैठ जाता है।
कुर्सी पर बैठे-बैठे मनोरमा को एक झपकी आ गई। सावन-भादों की ठंडी हवा निद्रामय होती है। उसका मन स्वप्न-साम्राज्य में जा पहुँचा। क्या देखती है कि उसके बचपन के दिन हैं। वह अपने द्वार पर सहेलियों के साथ खेल रही है। सहसा एक ज्योतिषी पगड़ी बाँधे, पोथी-पत्रे बगल में दबाए आता है। सब लड़कियाँ अपनी गुड़ियों का हाथ दिखाने के लिए दौड़ी हुई ज्योतिषी के पास आती हैं। ज्योतिषी गुड़िया के हाथ देखने लगता है। न जाने कैसे गुड़ियों के हाथ लड़कियों के हाथ बन जाते हैं। ज्योतिषी बालिका के हाथ देखकर कहता है–तेरा विवाह एक बड़े भारी अफ़सर से होगा। बालिका हँसते हुए अपने घर चली जाती है। तब ज्योतिषी दूसरी बालिका का हाथ देखकर कहता है–तेरा विवाह एक बड़े सेठ से होगा। तू पालकी में बैठकर चलेगी। वह बालिका भी खुश होकर घर चली जाती है। तब मनोरमा की बारी आती है। ज्योतिषी उसका हाथ देखकर चिन्ता में डूब जाते हैं और अन्त में संदिग्ध स्वर में कहते हैं–तेरे भाग्य में जो कुछ लिखा है, तू उसके विरुद्ध करेगी और दुःख उठाएगी। यह कहकर वह चल पड़ते हैं; पर मनोरमा उनका हाथ पकड़कर कहती है–आपने मुझे तो कुछ नहीं बताया। मुझे उसी तरह बता दीजिए, जैसे आपने मेरी सहेलियों को बताया है। ज्योतिषी झुँझलाकर कहते हैं–तू प्रेम को छोड़कर धन के पीछे दौड़ेगी; पर तेरा उद्धार प्रेम से होगा। यह कहकर ज्योतिषीजी अर्न्तध्यान हो गए और मनोरमा खड़ी रोती रह गई।
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