उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
|
320 पाठक हैं |
राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
राजा साहब के जी में आया कि इसी वक़्त यहाँ से चल दूँ और फिर इसका मुँह न देखूँ। पर ख़याल किया, मनोरमा बैठी मेरी राह देख रही होगी। यह खबर सुनकर उसे कितनी निराशा होगी। ईश्वर! इस निर्दयी के हृदय में थोड़ी-सी दया डाल दो! बोले–आप यह हुक्म दे सकते हैं कि उनके निकट सम्बन्धियों के सिवा कोई उसके पास न जाने पाए!
जिम–मेरे हुक्म में इतनी ताकत नहीं कि वह अस्पताल को जेल बना दे।
यह कहते-कहते मिस्टर जिम फिटन पर बैठे और सैर करने चल दिये।
राजा साहब को एक क्षण के लिए मनोरमा पर क्रोध आ गया। उसी के कारण में यह अपमान सह रहा हूँ, नहीं तो मुझे क्या गरज़ पड़ी थी कि इसकी इतनी खुशामद करता। जाकर कहे देता हूँ, कि साहब नहीं मानते, मैं क्या करूँ। मगर उसके आँसुओं के भय ने फिर कातर कर दिया। आह! उसका कोमल हृदय टूट जायेगा। आँखों में आँसू की झड़ी लग जायेगी। नहीं, मैं कभी इसका पिण्ड न छोड़ूँगा। मेरा अपमान हो, इसकी चिन्ता नहीं। लेकिन उसे दुःख न हो।
थोड़ी देर तक तो राजा साहब बाग़ में टहलते रहे। फिर मोटर पर जा बैठे और घंटे भर इधर-उधर घूमते रहे। आठ बजे वह लौटकर आये, तो मालूम हुआ, अभी साहब नहीं आये। फिर लौटे, इसी तरह घंटे-घंटे भर के बाद वह तीन बार आये, मगर साहब बहादुर अभी तक न लौटे थे।
सोचने लगे, इतनी रात गए अगर मुलाकात हो भी गई, तो बातचीत करने का मौक़ा? शराब के नशे में चूर होगा। आते-ही-आते सोने चला जायेगा। मगर कम-से-कम मुझे देखकर इतना तो समझ जायेगा कि वह बेचारे अभी तक खड़े हैं। शायद दया आ जाये।
एक बजे के क़रीब बग्घी की आवाज़ आयी। राजा साहब मोटर से उतरकर खड़े हो गए। जिम भी फिटन से उतरा। नशे से आँखें सुर्ख थीं। लड़ख़ड़ाता हुआ चल रहा था। राजा को देखते ही बोला–ओ, ओ, तुम यहाँ क्यों खड़ा है? बाग़ो जाओ, अभी जाओ, बाग़ो!
राजा–हुज़ूर, मैं हूँ राजा विशालसिंह।
जिम–ओ? डैम राजा, अबी निकल जाओ। तुम भी बाग़ी है। तुम बाग़ी का सिफ़ारिश करता है, बाग़ी को पनाह देता है। सरकार का दोस्त बनता है। अबी निकल जाओ। राजा और रैयत सब एक है। हम किसी पर भरोसा नहीं करता। अपने ज़ोर का भरोसा है। राजा का काम बाग़ियों को पकड़वाना, उनका पता लगाना है। उनका सिफ़ारिश करना नहीं। अबी निकल जाओ।
|