उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
|
320 पाठक हैं |
राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
यह कहकर वह राजा साहब की ओर झपटा। राजा साहब बहुत ही बलवान् मनुष्य थे। वह ऐसे-ऐसे दो को अकेले काफी थे; लेकिन परिणाम के भय ने उन्हें पंगु बना दिया था। एक घूँसा भी लगाया और पाँच करोड़ रुपये की जायदाद हाथ से निकली। वह घूँसा बहुत महँगा पड़ेगा। परिस्थिति भी उनके प्रतिकूल थी। इतनी रात को उसके बँगले पर आना इस बात का सबूत समझा जायेगा कि उनकी नीयत अच्छी नहीं थी। दीन भाव से बोले–साहब इतना जुल्म न कीजिए। इसका ज़रा भी ख़याल न कीजिएगा कि मैं शाम से अब तक आपके दरवाजे पर खड़ा हूँ? कहिए तो आपके पैरों पड़ूँ। जो कहिए, करने को हाज़िर हूँ। मेरी अर्ज कबूल कीजिए।
जिम–कबी नईं होगा, कबी नईं होगा। तुम मतलब का आदमी है। हम तुम्हारी चालों को खूब समझता है।
राजा–इतना तो आप कर ही सकते हैं कि मैं उनका इलाज करने के लिए अपना डॉक्टर जेल के अन्दर भेज दिया करूँ?
जिम–ओ डैमिट! बक-बक मत करो। सुअर, अभी निकल जाओ, नहीं तो हम ठोकर मारेगा।
अब राजा साहब से ज़ब्त न हुआ। क्रोध ने सारी चिन्ताओं को, सारी कमजोरियों को निगल लिया। राज्य रहे या जाये, बला से! जिम ने ठोकर चलायी ही थी कि राजा साहब ने उसकी कमर पकड़कर इतने ज़ोर से पटका कि वह चारों खाने चित्त जमीन पर गिर पड़ा। फिर उठना चाहता था कि राजा साहब छाती पर चढ़ बैठे और उसका गला ज़ोर से दबाया। कौड़ी-सी आँखें निकल आयीं। मुँह से फिचकुर बहने लगा। सारा नशा, सारा क्रोध, सारा रौब सारा अभिमान, रफूचक्कर हो गया।
राजा ने गला छोड़कर कर कहा–गला घोंट दूँगा, इस फेर में मत रहना। कच्चा ही चबा जाऊँगा। चपरासी या अहलकार नहीं हूँ कि तुम्हारी ठोकरें सह लूँगा।
जिम–राजा साहब, आप सचमुच नाराज हो गया। मैं तो आपसे दिल्लगी करता था। आप तो पहलवान है। आप दिल्लगी में बुरा मान गया!
राजा–बिलकुल नहीं। मैं भी दिल्लगी कर रहा हूँ। अब तो आप फिर मेरे साथ दिल्लगी न करेंगे?
जिम–कबी नई, कबी नई।
राजा–मैंने दो अर्ज़ की थी, वह आप मानेगें या नहीं?
जिम–मानेंगे, मानेंगे, हम सुबह होते ही हुक्म देगा।
|