उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
राजा साहब यह तिरस्कार सुनकर काँप उठे। कातर होकर बोले–मुझे किस बात का कष्ट होगा। अभी जाता हूँ।
मनोरमा–लौटिएगा कब तक?
राजा–कह नहीं सकता।
यह कहकर राजा साहब मोटर पर जा बैठे और शोफ़र से मिस्टर जिम के बँगले पर चलने को कहा। मनोरमा की निष्ठुरता से उनका चित्त बहुत खिन्न था। मेरे आराम और तक़लीफ़ का इसे ज़रा भी ख़याल नहीं। चक्रधर से न जाने क्यों इतना स्नेह है। कहीं उससे प्रेम तो नहीं करती? नहीं, यह बात नहीं। सरल हृदय बालिका है। ये कौशल क्या जाने। चक्रधर आदमी ही ऐसा है दूसरों को उससे मुहब्बत हो जाती है। जवानी में सहृदयता कुछ अधिक होती ही है। कोई मायाविनी स्त्री होती, तो मुझसे अपने मनोभावों को गुप्त रखती। जो कुछ करना होता,चुपके-चुपके करती; पर इसके निश्छल हृदय में पट कहाँ? जो कुछ कहती है, मुझी से कहती है; जो कष्ट होता है, मुझी को सुनाती है। मुझ पर पूरा विश्वास करती है। ईश्वर करे, साहब से मुलाक़ात हो जाये और वह मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लें? जिस वक़्त मैं आकर यह शुभ समाचार कहूँगा, कितनी खुश होगी।
यह सोचते हुए राजा साहब मिस्टर जिम के बँगले पर पहुँचे। शाम हो गई थी। साहब बहादुर सैर करने जा रहे थे। उनके बँगले में वह ताज़गी और सफ़ाई थी कि राजा साहब का चित्त प्रसन्न हो गया। उनके यहाँ दर्जनों माली थे, पर बाग़ इतना हरा-भरा न रहता। यहाँ की हवा में आनन्द था। इकबाल हाथ बाँधे हुए खड़ा मालूम होता था। नौकर-चाकर कितने सलीकेदार थे, घोड़े कितने समझदार, पौधे कितने सुन्दर, यहाँ तक कि कुत्तों के चेहरे पर भी इक़बाल की आभा झलक रही थी।
राजा साहब को देखते ही जिम साहब ने हाथ मिलाया और पूछा–आपने जेल में दंगे का हाल सुना?
राजा–जी हाँ! सुनकर बड़ा अफ़सोस हुआ।
जिम–सब उसी का शरारत है, उसी बाग़ी नौजवान का।
राजा–हुज़ूर का मतलब चक्रधर से है?
जिम–हाँ, उसी से! बहुत ही ख़ौफ़नाक आदमी है। उसी ने क़ैदियों को भड़काया है।
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