उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
जिम–कुछ परवाह नहीं।
यह कहकर साहब दफ़्तर की ओर चले। धन्नासिंह अब तक इन्तज़ार में खड़ा था कि डॉक्टर साहब आते होंगे। जब देखा कि जिम साहब इधर मुखातिब भी न हुए, तो उसने चक्रधर को गोद में उठाया और अस्पताल की ओर चला।
१९
ठाकुर हरिसेवकसिंह दावत खाकर पहुँचे, तो डर रहे थे कि लौंगी पूछेगी तो क्या जवाब दूँगा। अगर यह कहूँ कि मुंशीजी ने मेरे साथ चाल चली, तो ज़िन्दा न छोड़ेगी, तानों से कलेजा छलनी कर देगी। जो कहूँ कि मनोरमा को पसन्द है, तो मैं क्या करता, तो न बचने पाऊँगा। चुड़ैल वकीलों की तरह तो बहस करती है। बस, उसे राजी करने की एक ही तरकीब है। किसी पंडित को फाँसना चाहिए, जो उसके सामने यह कह दे कि राजा साहब की आयु १२५ वर्ष की है। जब तक इस बात का उसे विश्वास न आ जायेगा, वह किसी तरह न राजी होगी।
ज्यों ही ठाकुर साहब घर में पहुँचे, लौंगी ने पूछा–वहाँ क्या बातचीत हुई?
दीवान–शादी ठीक हो गई और क्या!
लौंगी–और मैंने इतना समझा जो दिया था?
दीवान–भाग्य भी तो कोई चीज़ है!
लौंगी–भाग्य पर वह भरोसा करता है, जिसमें पौरुष नहीं होता। लड़की को डुबा दिया, ऊपर से शरमाते नहीं, कहते हो भाग्य भी कोई चीज़ है!
दीवान–तुम मुझे जैसा गधा समझती हो, वैसा गधा नहीं हूँ। मैंने राजा साहब की कुंडली एक बड़े विद्वान ज्योतिषी को दिखलायी और जब उसने कह दिया कि राजा साहब की उम्र बहुत बड़ी है, कोई संकट नहीं है, तब आकर मैंने मंजूर कर लिया।’
लौंगी–राजा ने किसी पंडित को सिखा-पढ़ाकर खड़ा कर दिया होगा।
दीवान–क्या मुझे बिलकुल अनाड़ी ही समझ लिया है?
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