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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


दारोग़ा–देखने में तो हुज़ूर, बहुत सीधा मालूम होता है, दिल का हाल खुदा जाने।

जिम–खुदा के जानने कुछ नहीं होगा, तुमको जानना चाहिए। तुमको हर एक क़ैदी पर निग़ाह रखनी चाहिए। यही तुम्हारा काम है। यह आदमी क़ैदियों से मज़हब की बातचीत तो नहीं करता?

दारोग़ा–मज़हबी बातें तो बहुत करता है, हुज़ूर !  इसी से क़ैदियों ने उसे ‘भगत’ का लकब दे दिया है।

जिम–ओह!  तब तो यह बहुत ही खतरनाक आदमी है। मज़हब वाले आदमी पर बहुत कड़ी निग़ाह रखनी चाहिए। कोई पढ़ा-लिखा आदमी दिल से मज़हब को नहीं मानता। मज़हब पढ़े-लिखे आदमियों के लिए नहीं है। उनके लिए तो Ethics काफ़ी है। जब कोई पढ़ा-लिखा आदमी मज़हब की बात करे, तो फौरन समझ लो कि वह कोई साजिश करना चाहता है। Religion (धर्म) के साथ Politics (राजनीति) बहुत खतरनाक हो जाती है। यह आदमी क़ैदियों से बड़ी हमदर्दी करता होगा।’

दारोग़ा–जी हाँ, हमेशा!

जिम–सरकारी हुक्म को खूब मानता होगा।

दोराग़ा–जी हाँ, हमेशा!

जिम–कभी कोई शिकायत न करता होगा? कड़े-से-कडे काम खुशी से करता होगा?

दारोग़ा–जी हाँ, शिकायत नहीं करता। ऐसा बेज़बान आदमी को मैंने कभी देखा ही नहीं।

जिम–ऐसा आदमी निहायत ख़ौफ़नाक होता है। उस पर कभी एतबार नहीं करना चाहिए। हम इस पर मुकद्दमा चलाएगा। इसको बहुत कड़ी सज़ा देगा। सिपाहियों को दफ़्तर में बुलाओ। हम सबका बयान लिखेगा।

दारोग़ा–हुज़ूर, पहले तो उसे डॉक्टर साहब को दिखा लूँ? ऐसा न हो कि मर जाये, गुलाम को दाग़ लगे।

जिम–वह मरेगा नहीं। ऐसा ख़ौफ़नाक आदमी कभी नहीं मरता, और मर भी जायेगा, तो हमारा कोई नुकसान नहीं।

दारोग़ा-ज़रा हुज़ूर उसकी हालत देखे। चेहरा ज़र्द हो गया है, खून से ज़मीन लाल हो गई हैं।

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