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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


चक्रधर ने कहा–सिपाहियों को छोड़ दो।

धन्नासिंह-बहुत अच्छा, भैया! तुम्हारा जी कैसा है?

चक्रधर–देखना चाहिए, बचता हूँ या नहीं।

धन्नासिंह–दारोग़ा के बच जाने का कलंक रह गया।

सहसा मिस्टर जिम सशस्त्र पुलिस के साथ जेल में दाखिल हुए। उन्हें देखते ही सारे क़ैदी वहाँ से भागे। केवल दो आदमी चक्रधर के पास खड़े रहे। धन्नासिंह उसमें एक था। सिपाहियों ने छूटते ही अपनी-अपनी बन्दूक़ें सँभाली और एक कतार में खड़े हो गए।

जिम–वैल दारोग़ा, क्या हाल है?

दारोग़ा–हुज़ूर के इकबाल से फतह हो गई। क़ैदी भाग गए।

जिम–यह कौन आदमी पड़ा है?

दारोग़ा–इसी ने हम लोगों की मदद की है, हुज़ूर। चक्रधर नाम हैं।

जिम–अच्छा! यह चक्रधर है, जो बग़ावत के मामले में हमारे इजलास से सजा पाया था।

दारोग़ा–जी हाँ, हुज़ूर!  अभी उसी के बदौलत हमारी जान बची। जो जख्म उसके कन्धे में है, यह शायद इस वक़्त मेरे सीने में होता।

जिम–इसने क़ैदियों को भड़काया होगा?

दारोग़ा–नहीं हुज़ूर, इसने तो क़ैदियों को समझा-बुझाकर ठंडा किया।

जिम–तुम कुछ नहीं समझता। यह लोग पहले क़ैदियों को भड़काता है, फिर उनके तरफ़ से हाकिम लोगों से लड़ता है, जिससे क़ैदी समझें कि यह हमारी तरफ़ से लड़ रहा है। यह क़ैदियों को मिलाने का हिकमत है।
वह क़ैदियों को मिलाकर जेल का काम बन्द कर देना चाहता है।

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