लोगों की राय

उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


लौंगी–अनाड़ी तो तुम हो ही, न जाने किस तरह दीवानी कर लेते हो। अच्छा बताओ, वह कौन पंडित था?

दीवान–इसी शहर के नामी पंडित हैं। मेरी उनसे पुरानी मुलाक़ात है। वह मुझे कभी धोखा न देंगे। अगर कोई बात गड़बड़ होती, तो वह साफ़-साफ़ कह देते। हम और वह अलग एक कमरे में बैठे थे। उन्होंने बड़ी देर तक कुँडली को देखकर कहा–कोई शंका की बात नहीं, आप भगवान का नाम लेकर विवाह स्वीकार लीजिए। राजा साहब की आयु १२५ वर्ष की है।

लौंगी–तुम कल उन पंडितजी को यहाँ बुला लेना। जब तक मेरे सामने न कह देंगे, मुझे विश्वास न आएगा।

दूसरे दिन प्रातःकाल लौंगी ने पंडित की रट लगायी और दीवान साहब को विवश होकर मुंशी वज्रधर के पास जाना पड़ा।

वज्रधर सारी कथा सुनकर बोले–आपने यह बुरा रोग पाल रखा है। एक बार डाँटकर कह दीजिए–चुपचाप बैठी रह, तुझे इन बातों में क्या मतलब? फिर देखूँ वह कैसे बोलती है!

दीवान–भाई, इतनी हिम्मत मुझमें नहीं है। वह कभी ज़रा रूठ जाती है, तो मेरे हाथ-पाँव फूल जाते हैं। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि बिना उसके मैं ज़िन्दा कैसे रहूँगा। मैं तो उससे बिना पूछे भोजन भी नहीं कर सकता। वह मेरे घर की लक्ष्मी है। आपकी किसी ज्योतिषी से जान-पहचान हैं?

मुंशी–जान-पहचान तो बहुतों से हैं, लेकिन देखना तो यह है कि काम किससे निकल सकता है। कोई अच्छा आदमी तो यह स्वाँग भरने न जायेगा। कोई पंडित बनाना पड़ेगा।

दीवान–वह तो बड़ी मुश्किल हुई।

मुंशी–मुश्किल क्या हुई। मैं अभी बनाए देता हूँ। ऐसा पंडित बना दूँगा कि कोई भाँप न सके। इन बातों में क्या रखा है?

यह कहकर मुंशीजी ने झिनकू को बुलाया। वह एक ही छँटा हुआ था। फ़ौरन तैयार हो गया। घर जाकर माथे पर तिलक लगाया। गले में रामनामी चादर डाली, सिर पर एक टोपी रखी और एक बस्ता बगल में दबाए आ पहुँचा। मुंशीजी उसे देखकर बोले–यार, ज़रा-सी कसर रह गई। तोंद के बग़ैर पंडित कुछ जँचता नहीं। लोग यही समझते हैं कि इनको तर माल नहीं मिलते, तभी तो ताँत हो रहे हैं। तोंदल आदमी की शान ही और होती है, चाहे पंडित बने, चाहे सेठ, चाहे तहसीलदार ही क्यों न बन जाए। उसे सब कुछ भला मालूम होता है। मैं तोंदल होता तो अब तक न जाने किस ओहदे पर होता। सच पूछो, तो तोंद न रहने के कारण अफ़सरों पर मेरा रौब न ज़मा। बहुत घी-दूध खाया, पर तकदीर में बड़ा आदमी होना न बदा था, तोंद न निकली, न निकली। तोंद बना लो, नहीं तो उल्लू बनाकर निकाल दिये जाओगे, या किसी तोंदूमल को पकड़ो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book