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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


मनोरमा–हाँ मानती हूँ, धन से अत्याचार भी होता है, लेकिन काँटे से फूल का आदर कम नहीं होता। संसार में धन सर्वप्रधान वस्तु है। ज़िन्दगी का कौन-सा काम है, जो धन के बिना चल सके? धर्म भी बिना धन के नहीं हो सकता। यही कारण है कि संसार ने धन को जीवन का लक्ष्य मान लिया है। धन का निरादर करके हमने प्रभुत्व खो दिया और यदि हमें संसार में रहना है, तो हमें धन की उपासना करनी पड़ेगी!  इसी से लोक-परलोक में हमारा उद्धार होगा।

मुंशीजी ने विजय-गर्व से हँसकर कहा–कहिए, दीवान साहब, मेरी डिग्री हुई कि अब भी नहीं।

ठाकुर–मुझे मालूम होता है, धन के माहात्म्य पर इसने कोई लेख लिखा था और वही पढ़ सुनाया। क्यों मनोरमा, है न यही बात?

मनोरमा–अभी तो मैंने लेख नहीं लिखा, लेकिन लिखूँगी तो उसमें यही विचार प्रकट करूँगी। मेरे शब्दों में कदाचित् आपको दुराग्रह का भाव झलकता हुआ मालूम होता हो। इसका कारण यह है कि मैं अभी एक अंग्रेज़ी की किताब पढ़े चली आती हूँ जिसमें सन्तोष ही का गुणानुवाद किया गया है।

मुंशीजी ने देखा, मनोरमा के मन की थाह लेने का अच्छा अवसर है। ठाकुर साहब की ओर आँखें मारकर बोले–मनोरमा, मेरे विचार तुम्हारे विचारों से बिल्कुल मिलते हैं। धन से जितना अधर्म होता है, अगर ज़्यादा नहीं, तो उतना ही धर्म भी होता है; लेकिन कभी-कभी ऐसे भी मौके आ जाते हैं, जब धन के मुक़ाबले में और  कितनी ही बातों का लिहाज़ करना पड़ता है। कन्या का विवाह ऐसा ही मौक़ा है। मेरी कन्या का विवाह होने वाला है। मेरे सामने इस वक़्त दो वर हैं। एक तो अधेड़ आदमी है; पर दौलत उसके घर में गुलामी करती रहती है, दूसरा एक सुन्दर युवक है, बहुत ही होनहार, लेकिन ग़रीब। बताओ, किससे कन्या का विवाह करूँ?

ठाकुर–अगर कन्या की बात है, तो मैं यही सलाह दूँगा कि आप दौलत पर न जाइए। उसी युवक से विवाह कीजिए।
लौंगी–ऐसा तो होना ही चाहिए। ब्याह जोड़े का अच्छा होता है। ऐसा ब्याह किस काम का कि वह बहू का बाप मालूम हो, बेचारी कन्या के दिन रोते ही बीतें।

मुंशी–और तुम्हारी क्या राय है, मनोरमा?

मनोरमा ने कुछ लजाते हुए कहा–आप जैसा उचित समझें, करें।

मुंशी–नहीं; इस विषय में तुम्हारी राय बुड्ढों की राय से बढ़कर है।

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