लोगों की राय

उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास)

कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511
आईएसबीएन :978-1-61301-084

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


बच्चा भी कैसा खुश है। नैना के दुःख का वारापार नहीं!

उसने जाकर बाप से कहा–‘दादा भाभी तो सब गहने उतारकर रखे जाती हैं।’ लालाजी चिन्तित थे। कुछ बोले नहीं। शायद सुना ही नहीं।

नैना ने ज़रा और ज़ोर से कहा–‘भाभी अपने सब गहने उतारकर रखे देती हैं।’

लालाजी ने अनमने भाव से सिर उठाकर कहा–‘गहने क्या कर रही हैं?’

‘उतार-उतारकर रखे देती हैं।’

‘तो मैं क्या करूँ?’

‘तुम उनसे जाकर कहते क्यों नहीं?’

‘वह नहीं पहनना चाहती। तो मैं क्या करूँ!’

‘तुम्हीं ने उनसे कहा होगा, गहने मत ले जाना। क्या तुम उनके ब्याह के गहने भी ले लोगे?’

‘हाँ, मैं सब ले लूँगा। इस घर में उसका कुछ भी नहीं है।’

‘यह तुम्हारा अन्याय है।’

‘जा अन्दर बैठ, बक-बक मत कर!’

‘तुम जाकर उन्हें समझाते क्यों नहीं?’

‘तुझे बड़ा दर्द है, तू ही क्यों नहीं समझाती?’

‘मैं कौन होती हूँ समझाने वाली? तुम अपने गहने ले रहे हो, तो वह मेरे कहने से क्यों पहनने लगीं?’

दोनों कुछ देर तक चुपचाप रहे। फिर नैना ने कहा–‘ मुझसे यह अन्याय नहीं देखा जाता। गहने उनके हैं। ब्याह के गहने तुम उनसे नहीं ले सकते।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book