लोगों की राय

उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास)

कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511
आईएसबीएन :978-1-61301-084

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


उसने डॉक्टर का हाथ पकड़कर कुरसी पर बैठाते हुए कहा–‘तो चूड़ियाँ पहनकर बैठो न, यह मूछें क्यों बढ़ा ली हैं?’

शान्तिकुमार ने हँसते हुए कहा–‘मैं तैयार हूँ, लेकिन मुझसे शादी करने के लिए तैयार रहिएगा। आपको मर्द बनना पड़ेगा।’

रेणुका ताली बजाकर बोली–‘मैं तो बूढ़ी हुई; लेकिन तुम्हारा ख़सम ऐसा ढूँढूँगी जो तुम्हें सात परदों के अन्दर रखे और गालियों से बात करे। गहने मैं बनवा दूँगी। सिर में संदूर डालकर घूँघट निकाले रहना। पहले खसम खा लेगा, तो उसका जूठन मिलेगा, समझ गये, और उसे देवता का प्रसाद समझकर खाना पड़ेगा। ज़रा भी नाक–भौं सिकोड़ी, तो कुलच्छनी कहलाओगे। उसके पाँव दबाने पड़ेंगे, उनकी धोती छाँटनी पड़ेंगी। वह बाहर से आयेगा तो उसके पाँव धोने पड़ेंगे, और बच्चे भी जनने पड़ेंगे, बच्चे न हुए, तो वह दूसरा ब्याह कर लेगा, फिर घर में लौंडी बनकर रहना पड़ेगा।’

शान्तिकुमार पर लगातार इतनी चोंटे पड़ीं कि हँसी भूल गये। मुँह ज़रा-सा निकल आया। मुर्दनी ऐसी छा गयी जैसे मुँह बँध गया। जबड़े फैलाने से भी न मिलते थे। रेणुका ने उनकी दो-चार बार पहले भी हँसी की थी; पर आज तो उन्होंने उन्हें रुलाकर छोड़ा।
परिहास में औरत अजेय होती है,खासकर जब वह बूढ़ी हो।

उन्होंने घड़ी देखकर कहा–‘एक बज रहा है। आज तो हड़ताल अच्छी रही।’

रेणुका ने फिर चुटकी ली–‘आप तो घर में लेटे थे, आपको क्या ख़बर?’

शान्तिकुमार ने अपनी कारगुजारी जताई–‘उन आराम से लेटने वालों में मैं नहीं हूँ। हरेक आन्दोलन में ऐसे आदमियों की भी ज़रूरत होती है, जो गुप्त रूप से उनकी मदद करते रहें। मैंने अपनी नीति बदल दी है और मुझे अनुभव हो रहा है कि इस तरह कुछ कम सेवा नहीं कर सकता। आज नौजवान सभा के दस-बारह युवकों को तैनात कर आया हूँ, नहीं इसकी चौथाई हड़ताल भी न होती।’

रेणुका ने बेटी की पीठ पर एक थपकी देकर कहा– ‘तब तू इन्हें क्यों बदनाम कर रही थी? बेचारे ने इतनी जान खपाई, फिर भी बदनाम हुए, मेरी समझ में भी यह नीति आ रही है। सबका आग में कूदना अच्छा नहीं।’

शान्तिकुमार कल के कार्यक्रम का निश्चय करके और सुखदा को अपनी ओर से आश्वस्त करके चले गए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book