उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
मैकू ने तीखे होकर कहा–‘लो, अब चुप रहो चौधरी: नहीं सारी कलई खोल दूँगा। घर में बैठकर बोतल के बोतल उड़ा जाते हो और यहाँ आकर शेखी बघारते हो।’
मेहतरों का जमादार मतई खड़े होकर अपनी जमादारी की शान दिखाकर बोला–‘पंचों, यह बखत बदहवाई बातें करने का नहीं है। जिस काम के लिए देवीजी ने बुलाया है, उसको देखो और फैसला करो कि अब हमें क्या करना है। उन्हीं बिलों में पड़े सड़ते रहें, या चलकर हाकिमों से फरियाद करें।’
सुखदा ने विद्रोह–भरे स्वर में कहा–‘हाकिमों से जो कुछ कहना-सुनना था, कह-सुन चुके, किसी ने भी कान न दिया। छः महीने से यही कहासुनी हो रही है। जब अब तक उसको कोई फल न निकला, तो अब क्या निकलेगा। हमने आरजू–मिन्नत से काम निकालना चाहा था, पर मालूम हुआ, सीधी उँगली से घी नहीं निकलता। हम जितना दबेंगे, यह बड़े आदमी हमें उतना ही दबायेंगे, आज तुम्हें तय करना है कि तुम अपने हक़ के लिए लड़ने को तैयार हो या नहीं।’
चमारों का मुखिया सुमेर लाठी टेकता हुआ, मोटे, चश्में लगाये पोपलो मुँह से बोला, ‘अरज-मारूद करने के सिवा और हम कर ही क्या सकते हैं? हमारा क्या बस है।’
मुरली खटिक ने बड़ी-बड़ी मूछों पर हाथ फेरकर कहा-‘बस कैसे नहीं है। हम आदमी नहीं हैं कि हमारे बाल–बच्चे नहीं हैं। किसी को तो महल और बँगला चाहिए, हमें कच्चा घर भी न मिले। मेरे घर में पाँच जने हैं; उनमें से चार आदमी महीने-भर से बीमार हैं। उस कालकोठरी में बीमार न हों, तो क्या हों। सामने से गन्दा नाला बहता है। साँस लेते नाक फटती है।’
ईदू कुंजड़ा अपनी झुकी हुई कमर को सीधी करने की चेष्टा करते हुए बोला–‘अगर मुकद्दर में आराम करना लिखा होता, तो हम भी किसी बड़े आदमी के घर न पैदा होते। हाफ़िज हलीम आज बड़े आदमी हो गये हैं, नहीं मेरे सामने जूते बेचते थे। लड़ाई में बन गये। अब रईसों के टाठ हैं। सामने चला जाऊँ तो पहचानेंगे भी नहीं। नहीं तो पैसे–धैले की मूली–तुरई उधारले जाते थे। अल्लाह बड़ा कारसाज है। अब तो लड़का भी हाकिम हो गया है। क्या पूछना है।’
जंगली घोसी पूरा काला देव था शहर का मशहूर पहलवान। बोला–‘मैं तो पहले ही जानता था, कुछ होना–हवाना नहीं है। अमीरों के सामने हमें कौन पूछता है।’
अमीर बेग पतली, लम्बी गरदन निकालकर बोला– ‘बोर्ड के फ़ैसले की अपील तो कहीं होती होगी। हाईकोर्ट में अपील करनी चाहिए। हाईकोर्ट न सुने, तो बादशाह से फ़रियाद की जाये।’
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