लोगों की राय

उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास)

कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511
आईएसबीएन :978-1-61301-084

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


शान्तिकुमार ने जैसे सिहरकर कहा–‘अच्छा, नैना देवी का विवाह होने वाला है? यह तो बड़ी शुभ सूचना है। मैं कल ही आपसे मिलकर सारी बातें तय कर लूँगा। अमर को भी सूचना दे दूँ?

सुखदा ने कठोर स्वर में कहा–‘कोई ज़रूरत नहीं।’

रेणुका बोलीं–‘नहीं, आप उनको सूचना दे दीजिए। शायद आयें मुझे तो आशा है, ज़रूर आयेंगे।’

डॉक्टर साहब यहाँ से चले, तो नैना बालक को लिए मोटर से उतर रही थी।

शान्तिकुमार ने आहत कण्ठ से कहा–‘तुम अब चली जाओगी नैना?

नैना ने सिर झुका लिया; पर उसकी आँखें सजल थीं।

छः महीने गुज़र गये।

सेवाश्रम का ट्रस्ट बन गया। केवल स्वामी आत्मानन्दजी ने, जो आश्रम के प्रमुख कार्यकर्ताओं और एक-एक पोर समष्टिवादी थे, इस प्रबन्ध से असन्तुष्ट होकर इस्तीफ़ा दे दिया। वह आश्रम में धनिकों को नहीं घुसने देना चाहते थे। उन्होंने बहुत ज़ोर मारा कि ट्रस्ट न बनने पाये। उनकी राय में धन पर आश्रम की आत्मा को बेचना, आश्रम के लिए घातक होगा। धन ही की प्रभुता से तो हिन्दू–समाज ने नीचों को अपना गुलाम बना रखा है, धन ही के कारण तो नीच–ऊँच भेद आ गया है; उसी धन पर आश्रम की स्वाधनीता क्यों बेची जाय; लेकिन स्वामीजी की कुछ न चली और ट्रस्ट की स्थापना हो गयी। उसका शिलान्यास रखा सुखदा ने। जलसा हुआ, दावत हुई, गाना–बजाना हुआ। दूसरे दिन शान्तिकुमार ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

सलीम की परीक्षा भी समाप्त हो गयी। और उसने जो पेशीनगोई की थी, वह अक्षरशः पूरी हुई। ग़जट में उसका नाम सबसे नीचे था। शान्तिकुमार के विस्मय की सीमा न रही। अब उसे क़ायदे के मुताबिक दो साल के लिए इंग्लैण्ड जाना चाहिए था, पर सलीम इंगलैण्ड न जाना चाहता था। दो-चार महीने के लिए सैर करने तो वह शौक से जा सकता था; पर दो साल तक वहाँ पड़े रहना उसे मंजूर न था। उसे जगह न मिलनी चाहिए थी; मगर यहाँ भी उसने कुछ ऐसी दौड़-धूप की, कुछ ऐसे हथकण्डे खेले कि वह इस क़ायदे से मुस्तसना कर दिया गया। जब सूबे का सबसे बड़े डॉक्टर कह रहा है कि इंगलैण्ड की ठण्डी हवा में इस युवक का दो साल तक वहाँ पड़े रहना उसे मंजूर न था। उसे जगह न मिलनी चाहिए थी; मगर यहाँ भी उसने कुछ ऐसी दौड़–धूप की, कुछ ऐसे हथकण्डे खेले कि वह इस क़ायदे से मुस्तसना कर दिया गया। जब सूबे का सबसे बड़ा डाक्टर कह रहा रहा है कि इंगलैण्ड की ठण्डी हवा में इस युवक का दो साल रहना ख़तरे से खाली नहीं, तो फिर कौन इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी लेता। हाफ़िज हलीम लड़के को भेजने को तैयार थे, रुपए ख़र्च करने को तैयार थे; लेकिन लड़के का स्वास्थ्य बिगड़ गया, तो वह किसका दामन पकड़ेंगे। आख़िर यहाँ भी सलीम की विजय रही। उसे उसी हलके का चार्ज भी मिला, जहाँ उसका दोस्त अमरकान्त पहले से मौजूद था। उस ज़िले को उसने ख़ुद पसन्द किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book