उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
नौ बजे कथा आरम्भ हुई। यह देवी–देवताओं और अवतारों की कथा न थी। ब्रह्य-ऋषियों के तप और तेज का वृतान्त न था, क्षत्रियों के शौर्य और दान की गाथा न थी। यह उस पुरुष का पावन चरित्र था, जिसके यहाँ मन और कर्म की शुद्धता ही धर्म का मूल तत्त्व हैं। वही ऊँचा है, जिसका मन शुद्ध है, वही नीचा है, जिसका मन अशुद्ध है–जिसने वर्ण का स्वाँग रचकर समाज के एक अंग को मदान्ध और दूसरे को म्लेच्छ नहीं बनाया? किसी के लिए उन्नति या उद्धार का द्वार नहीं बन्द किया–एक के माथे पर बड़प्पन का तिलक और दूसरे के माथे पर नीचता का कंलक नहीं लगाया। इस चरित्र में आत्मोंन्नति का एक सजीव सन्देश था, जिसे सुनकर दर्शकों को ऐसा प्रतीत होता था, मानो उनकी आत्मा के बन्धन खुल गये हैं, संसार पवित्र और सुन्दर हो गया है।
नैना को भी धर्म के पाखण्ड से चिढ़ थी। अमरकान्त उससे इस विषय पर अकसर बातें किया करता था। अछूतों पर यह अत्याचार देखकर उसका ख़ून भी खौल उठा था। समरकान्त का भय न होता, तो उसने ब्रह्मचारीजी को फटकार बतायी होती, इसलिए जब शान्तिकुमार ने तिलकधारियों को आड़े हाथों लिया, तो उसकी आत्मा जैसे मुग्ध होकर उनके चरणों पर लोटने लगी। अमरकान्त से उनका बखान कितनी ही बार सुन चुकी थी। इस समय उनके प्रति उसके मन में ऐसी श्रद्धा उठी कि जाकर उनसे कहे–‘तुम धर्म के सच्चे देवता हो, तुम्हें नमस्कार करती हूँ।’ अपने आसपास के आदमियों को क्रोधित देख-देखकर भय हो रहा था कि कहीं लोग उन पर टूट न पड़ें। उसके जी में आता था, जाकर डॉक्टर के पास खड़ी हो जाय और उनकी रक्षा करे। जब वह बहुत से आदमियों के साथ चले गये, तो उसका चित्त शान्त हो गया। वह भी सुखदा के साथ घर चली आयी।
सुखदा ने रास्ते में कहा–‘ये दुष्ट न जाने कहाँ से फट पड़े? उस पर डॉक्टर साहब उल्टे उन्हीं का पक्ष लेकर लड़ने को तैयार हो गये।’
नैना ने कहा–‘भगवान् ने तो किसी को ऊँचा और किसी को नीचा नहीं बनाया?’
‘भगवान ने नहीं बनाया, तो किसने बनाया?’
‘अन्याय ने।’
‘छोटे बड़े संसार में सदा रहे हैं और सदा रहेंगे।’
नैना ने वाद-विवाद करना उचित न समझा।
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