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कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511
आईएसबीएन :978-1-61301-084

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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


मेरे मुँह से आवाज़ न निकली।

कुली ने मेरे मुँह की ओर ताकते हुए फिर पूछा– ‘ज़नाने डब्बे में रख दूँ असबाब?’

मैंने कातर होकर कहा–‘मैं इस गाड़ी से न जाऊँगी।’

‘अब दूसरी गाड़ी कितने बजे मिलेगी।’

‘मैं उसी गाड़ी से जाऊँगी।’

‘तो असबाब बाहर ले चलूँ या मुसाफ़िर ख़ाने में?’

अमर ने पूछा–‘तुम उस गाड़ी से चली क्यों न गयीं?’

मुन्नी काँपते हुए स्वर में बोली–‘न जाने कैसा मन होने लगा। जैसे कोई मेरे हाथ-पाँव बाँधे लेता हो। जैसे मैं गऊ-हत्या करने जा रही हूँ। इन कोढ़ भरे हाथों से मैं अपने लाल को कैसे उठाऊँगी? मुझे अपने पति पर क्रोध आ रहा था। वह मेरे साथ आया क्यों नहीं? अगर उसे मेरी परवाह होती, तो मुझे अकेली आने देता? इस गाड़ी से वह भी आ सकता था। जब उसकी इच्छा नहीं है, तो मैं भी न जाऊँगी। और न जाने कौन-कौन-सी बातें मन में आकर मुझे जैसे बलपूर्वक रोकने लगीं। मैं मुसाफ़िरख़ाने में मन मारे बैठी थी कि एक मर्द अपनी औरत के साथ आकर मेरे ही समीप दरी बिछाकर बैठ गया। औरत की गोद में लगभग एक साल का बालक था। ऐसा सुन्दर बालक! ऐसा गुलाबी रंग, ऐसी कटोरे-सी आँखें, ऐसी मक्खन-सी देह! मैं तन्मय होकर देखने लगी और अपने पराये की सुधि भूल गयी। ऐसा मालूम हुआ, यह मेरा बालक है। बालक माँ की गोद से उतरकर धीरे-धीरे रेंगता हुआ मेरी ओर आया। मैं पीछे हट गयी। बालक फिर मेरी तरफ़ चला। मैं दूसरी ओर चली गयी। बालक ने समझा, मैं उसका अनादर कर रही हूँ। रोने लगा। फिर भी मैं उसके पास न आयी। उसकी माता ने मेरी ओर रोषभरी आँखों से देखकर बालक को दौड़कर उठा लिया; पर बालक मचलने लगा और बार-बार मेरी ओर हाथ बढ़ाने लगा। पर मैं दूर खड़ी रही। ऐसा जान पड़ता था, मेरे हाथ कट गये हैं। जैसे मेरे हाथ लगाते ही वह सोने-सा बालक कुछ और हो जायेगा, उसमें से कुछ निकल जायेगा।’

स्त्री ने कहा–‘लड़के को ज़रा उठा लो देवी, तुम तो जैसे भाग रही हो, जो दुलार करते हैं, उनके पास तो अभागा जाता नहीं, जो मुँह फेर लेते हैं, उनकी ओर दौड़ता है।’

बाबूजी, मैं तुमसे नहीं कह सकती कि इन शब्दों ने मेरे मन को कितनी चोट पहुँचायी। कैसे समझा दूँ कि मैं कलंकिनी हूँ, पापिष्ठा हूँ, मेरे छूने से अनिष्ट होगा, अमंगल होगा। और यह जानने पर क्या वह मुझसे फिर अपना बालक उठा लेने को कहेगी!

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