लोगों की राय

उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास)

कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511
आईएसबीएन :978-1-61301-084

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


पयाग का सूजा चलना बन्द हो गया–‘मरजाद लेके चाटो। इधर-उधर से कमा के लाओ, वह भी खेती में झोंक दो।’

चौधरी ने फ़ैसला किया–‘घाटा-नफा तो हरेक रोजग़ार में है भैया। बड़े-बड़े सेठों का दिवाला निकल जाता है। खेती के बराबर कोई रोजगार नहीं जो कमाई और तकदीर अच्छी हो। तुम्हारे यहाँ भी नज़र-नजराने का यही हाल है भैया?’

अमर बोला–‘हाँ, दादा सभी जगह यही हाल है; कहीं ज़्यादा, कहीं कम: सभी गरीबों के लहू चूसते हैं।’
चौधरी ने स्नेह का सहारा लिया–‘भगवान् ने छोटे-बड़े का भेद क्यों लगा दिया, इसका मरहम समझ में नहीं आता। उनके तो सभी लड़के हैं। फिर सबको एक आँख से क्यों नहीं देखता?’

पयाग में शंका-समाधान की–‘पूरब जनम का संस्कार है। जिसने जैसे कर्म किए, वैसे फल पा रहा है।’

चौधरी ने खण्डन किया–‘यह सब मन को समझाने की बातें हैं बेटा, जिसमें गरीबों को अपनी दशा पर सन्तोष रहे और अमीरों के राग-रंग में किसी तरह की बाधा न पड़े। लोग समझते रहें कि भगवान् ने हमको ग़रीब बना दिया, आदमी का क्या दोष; पर यह कोई न्याय नहीं है कि हमारे बाल-बच्चे तक काम में लगे रहें और पेट भर भोजन न मिले और एक-एक अफसर को दस-दस हज़ार तलब मिले। दस थोड़े रुपये हुए। गधे से भी न उठे।’

अमर ने मुस्कराकर कहा–‘तुम तो दादा नास्तिक हो।’

चौधरी ने दीनता से कहा–‘बेटा, चाहे नास्तिक कहो, चाहे मूरख कहो; पर दिल पर चोट लगती है, तो मुँह से आह निकलती ही है। तुम तो पढ़े-लिखे हो जी?

‘हाँ, कुछ पढ़ा तो है।’

‘अंग्रेज़ी तो न पढ़ी होगी?’

‘नहीं, कुछ अंग्रेजी भी पढ़ी है।’

चौधरी प्रसन्न होकर बोले–‘तब तो भैया, हम तुम्हें न जाने देंगे। बाल-बच्चों को बुला लो और यहीं रहो। हमारे बाल-बच्चे भी कुछ पढ़ जायेंगे। फिर शहर भेज देंगे। वहाँ जात-बिरादरी कौन पूछता है। लिख दिया–हम छत्तरी हैं।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book