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दरिंदे

हमीदुल्ला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8424
आईएसबीएन :0

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समाज और व्यवस्था के प्रति आक्रोश


पति: (स्वयं से) आज पहली बार जीवन में परिवार-नियोजन का महत्त्व समझ में आया। न कम्बख्त इतने बच्चे होते और न आज इनकी ये ऊल-जलूल बातें सुननी पड़तीं। (बच्चों से) सुनिए, सुनिए। मैं आपक माँगों का जवाब देने के लिए तैयार हूँ। आप बिल्कुल चुप हो जाइए।

पत्नी: हाँ, यह ठीक है।
बड़ा लड़का: दैट्स राइट।
बड़ी लड़की: यह हुई न कोई बात।
पति: तो सुनिए, श्रीमती जी। जहाँ तक आपको हर महीने नये डिज़ाइन की साड़ी, ब्लाउज़, उनसे मैच करते रंगों की चप्पलें आदि लाने की माँग की बात है, मुझे खेद है कि धनाभाव के कारण इन माँगों को अभी पूरा करना मुमकिन नहीं है। यही बात बच्चों के कपड़ों के बारे में भी लागू होती है।

पत्नी: (बीच में टोकते हुए) लेकिन..........
पति: पहले आप मेरी पूरी बात सुन लीजिए। (अपनी बात आगे कहते हुए) हाँ, तो ये माँगें फ़िलहाल स्वीकार नहीं की जा सकतीं। वैसे साल में एक बार ये माँगें पूरी की जा सकती हैं।
इसमें नयी बात क्या हुई ? कपड़े तो हर साल बनते ही हैं।
पति: पहले मेरी बात सुन लीजिए। दूसरी माँगें, जैसे रविवार को बाहर खाना खाने और पिक्चर देखने, बच्चों का जेब-खर्च बढ़ाने की माँगें हैं, मुझे खेद है, धन की कमी की वजह से इन्हें भी पूरा नहीं किया जा सकता। घर की आर्थिक स्थिति आपके सामने है।
पत्नी: मेरे मायके जाने की माँग ?
पति: हर तीसरे महीने आप मायके जायेंगी, यह माँग नहीं मानी जा सकती। हाँ, साल में एक बार पन्द्रह की बजाय बीस दिन मायके में रुक सकती हैं। बाक़ी माँगों पर मैं सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का आश्वासन देता हूँ।
बड़ा लड़का: और हमारी माँगें ?
पति: आपकी यह माँग बिलकुल बेबुनियाद है कि मैं आपके कॉलेज और स्कूल जाने न जाने के बारे में चिन्ता न करूँ। मैं पिता होने के नाते अपना यह कर्तव्य समझता हूँ कि अपने बच्चों की भलाई की चिन्ता करूँ। आप लोगों को हड़ताल करने से रोकूँ। और सुनो, आप लोगों को किताबों की ख़रीद के लिए दिये गये पैसों का भी हिसाब देना होगा।
बड़ा लड़का: शेम, शेम, शेम !

पति: मैं एक बात ज़रूरत कहता हूँ। मैं अपने बच्चों में पूरे अनुशासन की आशा करता हूँ।
छोटा लड़का: और मेरी माँग का क्या हुआ ?
पति: रिक्शे से स्कूल जाने की माँग मंज़ूर नहीं की जा सकती। जेब खर्च की रकम बढ़ाने पर विचार किया जायेगा।
बड़ा लड़का: विचार किया जायेगा......आपकी ख़ुद की मँहगाई पिछले दो सालों में तीन बार बढ़ी है, जब कि हमारे जेब खर्च की रकम पिछले तीन साल से वही चली आ रही है।
पति: मैं इसके बारे में गम्भीरता से विचार करूँगा।
बड़ा लड़का और लड़की: हमारी बाकी माँगें, उनका क्या होगा ?
पति: आपकी वे सारी माँगें जिनमें कोई फाईनेंशियल इमप्लीकेशन्स नहीं हैं, मुझे सिद्धान्त रूप में स्वीकार हैं। हाँ, मार्च के आखिर में अगले वर्ष का बजट बनाते समय, मैं उन पर फिर से विचार कर लूँगा। अब मैं आप सबसे अनुरोध करता हूँ कि आप कृपया ‘घर बन्द’ आन्दोलन वापस ले लें, क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति और यह विरोधी दल के नेता से छिपा नहीं है कि चाय के बिना हमारी क्या हालत होती है।
बड़ा लड़का: हम आपके उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हैं। उनमें कोई नवीनता नहीं है। हम अपना आन्दोलन जारी रखेंगे।
पत्नी: और हमारा यह आन्दोलन तब तक जारी रहेगा जब तक कि हमारी सारी माँगें स्वीकार नहीं की जाती। हमारी माँगें.......

सब: पूरी हों ! हमारी माँगें......पूरी हों !..............

(बाहर से दरवाज़ा खट खटाने की आवाज़।)

पति: अरे रे रे, सुनने तो दो, बाहर कौन दरवाज़ा खटखटा रहा है। देखना कौन है ?
पत्नी: मैं दरवाजा खोलने नहीं जाऊँगी। आज ‘घर बन्द’ है।
बड़ा लड़का और छोटा लड़का: हम भी ‘घर बन्द’  चालू रहने तक आपकी किसी आज्ञा का पालन नहीं करेंगे, हमारी माँगें.......
सब: पूरी हों !

(दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ बदस्तूर आती रहती है।)

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