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दरिंदे

हमीदुल्ला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8424
आईएसबीएन :0

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समाज और व्यवस्था के प्रति आक्रोश


बड़ा लड़का: सब सरकारी नौकरों का मँहगाई भत्ता बढ़ गया है, आपका भी बढ़ा है। इसलिए हमारा जेब-खर्च भी उसी अनुपात में बढ़ना चाहिए। कॉलेज जाना या न जाना हमारी मर्जी से होगा। आप ज़ोर-जबरदस्ती नहीं करेंगे। हम पढ़ना-लिखना बन्द कर कॉलेज में हड़ताल करेंगे और तोड़फोड़ की कार्रवाई करेंगे। कॉलेज से हमारे खिलाफ़ कोई रिपोर्ट आयेगी, तो आप उस पर कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। वह कभी नहीं पूछेंगे कि किताबें खरीदने के लिए दिये गये पैसों की किताबें कहाँ हैं।

(और सोचने लगता है।)

पति: जी हाँ, आगे कहिए.....और.....?
बड़ा लड़का: हम घर से कब जाते हैं और कब आते हैं, कौन-कौन हमारे दोस्त हैं, हम कहाँ जाते हैं, वग़ैरह, वग़ैरह के बारे में आप कभी कुछ भी नहीं पूछेंगे। यानी हम पूरी स्वतन्त्रता चाहते हैं। फुल लिबर्टी वी वाण्ट।

(लड़की का प्रवेश।)

बड़ी लड़की: हम चाहे जितनी पिक्चर देखें, चाहे कैसी ही पिक्चर देखें, आप इसके बारे में कुछ नहीं पूछेंगे, हम अपनी मर्जी के उपन्यास और पत्रिकाएँ पढ़ेंगे।
पति: बस, बिटिया रानी। क्या तुम्हारी सिर्फ़ दो ही माँगें हैं ?
बड़ी लड़की: नहीं, अभी और हैं। हमें याद करने दीजिए।
पति: ठीक है। याद कर लो।
बड़ी लड़की: हमें हर महीने नये डिजाइन के कपड़े सिलवाये जायें। चुस्त पोशाक पहनने पर आप भविष्य में नाक-भौं नहीं सिकोड़ेंगे और न ही इसके लिए हमें बुरा कहेंगे। सबको धूप के चश्में दिलवाये जायेंगे। अगर हम ‘फ़ॉर अडल्ट्स ओनली’ वाली फिल्म देखने जायें, तो आप मना नहीं करेंगे।

(छोटे बच्चे का प्रवेश)

छोटा लड़का: हम भी स्कूल पैदल नहीं जायेंगे। रिक्शे में जायेंगे। और दस पैसे रोज़ की बजाय बीस पैसे रोज़ जेब-खर्च लेंगे, महँगाई बहुत बढ़ गई है न !
पति: अच्छा भई, अच्छा। मैंने आपकी माँगें सुन लीं। अब मुझे इन पर विचार करने के लिए कुछ समय दीजिए। मेरे विचार से एक सप्ताह का समय-
पत्नी: नहीं, हम चक्करबाजी में नहीं आने के। हमें आज ही फ़ैसला चाहिए। बिना जवाब मिले न तो हम यहाँ से हटेंगे और न ही हड़ताल तोड़ेंगे।
पति: यह सब नहीं चलेगा। आप लोगों की माँगों पर विचार करने के लिए मुझे समय तो चाहिए ही।
पत्नी: नहीं, समय हरगिज़ नहीं मिलेगा। हमें अपनी माँगों का जवाब अभी चाहिए।
पति: यह तो अल्टीमेटम है। सरासर ज्यादती है।
पत्नी: जो भी हो........
पति: और अगर मैं अभी आप लोगों की माँगें न मानूँ तो ?
बड़ा लड़का: तो ‘घर बन्द’ जारी रहेगा। आपका तुरन्त घेराव किया जायेगा।
छोटा लड़का: मम्मी, मुझे तो भूख लगी है।
पत्नी: बस बेटे, थोड़ी ही देर की बात और है। अपनी माँगें मँजूर हुईं और ‘घर बन्द’ टूटा। हाँ, तो शुरू हो जाओ हमारी माँगें.......

सब बच्चे: पूरी हों। हमारी मांगें-पूरी हों।
छोटा लड़का: हमारी माँगें फौरन मानो, वरना हम तोड़फोड़ की कार्रवाई शुरू करते हैं। बोलो- हमारी माँगें........
सब: पूरी हों !
पति: सुनिए सुनिए। देखिए, इस नारेबाज़ी से आपका ही नुकसान होगा।
बड़ा लड़का और पत्नी-: होने दो जी, होने दो।
बड़ी लड़की: मेरी सारे माँगें उचित हैं। पिताजी के विचार दकियानूसी हैं। इसलिए मानने में आना-कानी कर रहे हैं।
बड़ा लड़का: तुमसे ज़्यादा उचित मेरी खुद की माँगें हैं।
बड़ी लड़की: तुम्हारी सारी माँगें उचित नहीं हैं।
बड़ा लड़का: तेरी भी सारी माँगें उचित नहीं हैं।
बड़ी लड़की: हैं।
बड़ा लड़का: नहीं हैं।

(लड़का और लड़की अपनी-अपनी बातें जोर-ज़ोर से कहने लगते हैं।, ‘हैं, नहीं हैं’ का अच्छा-खासा शोर होने लगता है।)

पत्नी: अगर हम इस तरह आपस में लड़ने लगे, तो ‘घर बन्द’ असफल हो जायेगा।

(शोर जारी रहता है।)

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