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दरिंदे

हमीदुल्ला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8424
आईएसबीएन :0

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समाज और व्यवस्था के प्रति आक्रोश


पति: आखिर यह क्या बकवास है ?
पत्नी: आप हमारी माँगों को बकवास कह रहे हैं ? देखिए, आप अपने शब्दों को वापस ले लीजिए वरना कहे देती हूँ.......
पति: अच्छा भई, मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ। मुझसे गलती हुई। अब कृपा करके अपने जुलूस, मेरा मतलब है, इन बच्चों को थोड़ी देर के लिए बाहर भेज दीजिए। हम दोनों बैठकर माँगों पर बात कर लेते हैं। इस तरह नारे लगाने से पड़ोसी क्या समझेंगे ? इन बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजो।
छोटा लड़का और लड़की: हम आज स्कूल नहीं जायेंगे।
पति: अच्छा, बाबा अच्छा। पढ़ने नहीं जाना तो न जाओ। हमें तुम्हारी माँ से माँगों के बारे में तो बात कर लेने दो।
बड़ा लड़का: नहीं, हम हमेशा की तरह इस बार भी आपको माँ को फोड़ने नहीं देंगे।
लड़की: आप अकेले में माँ को डरा-धमकाकर अपनी तरफ़ कर लेंगे।
छोटा लड़का: नहीं, हम बिना अपनी माँगें मँजूर कराये, यहाँ से नहीं हटेंगे।
पत्नी: जब तक हमारी सारी माँगें मंज़ूर नहीं हो जातीं, ‘घर बन्द’ जारी रहेगा और यह भी यहाँ से नहीं हटेंगे।
पति: मैं कहता हूँ, आपकी इस नारेबाज़ी और चीख-चिल्लाहट से न तो आप मेरी बात समझ सकेंगे और न मैं आपकी। मैं आपकी सारी माँगों पर विचार करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन आप मुझे इसका मौका तो दें। मुझे आपके साथ सहानुभूति है।

पत्नी: तो फिर देर किस बात की है ?
पति: मेरा आप सबसे यही अनुरोध है कि एक-एक करके आयें और मुझे अपनी माँगें बतायें।
बड़ा लड़का: और अगर आपने हममें से किसी को डराया-धमकाया या हममें आपस में किसी तरह फूट डालने की कोशिश की तो....... ?
पति: तो आप लोगों के जो जी में आये, मेरे खिलाफ़ करना।
पत्नी: बोलो मनोज, क्या कहते हो ?
बड़ा लड़का: प्रस्ताव मेरे विचार से तो बुरा नहीं है। क्यों बिन्नी ?
लड़की: मैं तुमसे सहमत हूँ। क्यों बब्लू, तुम क्या कहते हो ?
छोटा लड़का: जब आप सब इस बात पर सहमत हैं, तो मैं भी आपसे सहमत हूँ।
पति: (खुश होकर) यह हुई न कोई बात। अच्छा अब आप सब बाहर चले जाइए। और एक-एक करके आइए।

(सब चले जाते हैं। पति अकेला मंच पर इधर-उधर कुछ सोचता-सा टहलने लगता है।)

पति: अपनी एक अदद पत्नी और तीन अदद बच्चों को आज इस मूड़ में देखकर अपनी भलाई इसी में नजर आती है कि पहले ठण्डे दिमाग से इनकी माँगें सुन ली जायें, फिर उसके बाद............

(पत्नी का प्रवेश)

पति: आइए, आइए, श्रीमतीजी। फरमाइए। आपको क्या शिकायत है, मुझसे ?
पत्नी: (त्यौरियाँ चढ़ाकर) शिकायत ?
पति: मेरा मतलब है, आपकी माँगें क्या हैं ? हाँ, पहले एक छोटी-सी अर्ज़ भी सुन लीजिए। अगर इस वक़्त एक कप चाय मिल जाय तो सोचने-समझने की ताकत आ जाये। आप तो जानती ही हैं चाय मेरे लिए......
पत्नी: जी नहीं। आपको चाय-वाय कुछ नहीं मिलेंगी। पहले आपको हमारी माँगें माननी होंगी।
पति: (मुसकराते हुए) कोई जबरदस्ती है, जो माननी ही पड़ेंगी......!
पत्नी: देखिए, आप धमकाने की कोशिश कर रहे हैं। आपने तो अभी सबके सामने वादा किया था कि आप किसी को डराये-धमकायेंगे नहीं। क्या मैं सबको बुला लूँ (मनोज को आवाज़ देने ही लगती है कि पति बोल पड़ता है।)
पति: अरे यह क्या गजब करती हो। अच्छा यहाँ आराम से बैठकर अपनी माँगें बताओ।
पत्नी: सुनिए और अपनी नोट बुक में नोट करते जाइए।
पति: जी नहीं, मुझे नोट करने की ज़रूरत नहीं है। मेरी याददाश्त आपके जैसी नहीं है।
पत्नी: देखिए, आप तानाकशी कर रहे हैं और इस तरह अनड्यू इनफ्लुएंस इस्तेमाल कर रहे हैं।
पति: मैं तो सिर्फ यह कह रहा हूँ कि मुझे अपनी याददाश्त पर भरोसा है।

पत्नी: तो सुनिए, मुझे हर महीने एक साड़ी, एक ब्लाउज, एक पेटीकोट और इन सबसे मैच करती हुई चप्पल आनी चाहिए। इतवार की शाम को घर में खाना नहीं बनेगा। सब दोपहर को पिक्चर देखेंगे और शाम को खाना किसी होटल में खाया करेंगे।
पति: ऐसा क्यों ?
पत्नी: जब दफ़्तर के चपरासियों तक को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी मिलती है, तो क्या हमें एक वक्त की छुट्टी भी न मिले।
पति: ठीक है। और ?
पत्नी: हर तीसरे महीने में अपने मायके जाया करूँगी। आप हर बार की तरह झूठे बहाने बनाकर जल्दी नहीं बुलवा लिया करेंगे।
पति: और ?
पत्नी: आप रात को आठ से पहले हर हालत में घर आ जाया करेंगे। अकेले दोस्तों के साथ पिक्चर नहीं देखेंगे। किसी दोस्त के घर अकेले नहीं जायेंगे, मुझे भी साथ लेकर जायेंगे। जब भी मुझे अपनी किसी सहेली के घर जाना होगा, तो आप मुझे वहाँ छोड़कर और फिर वहाँ से लेकर आयेंगे।
पति: बहुत खूब। और.........?
पत्नी: और अभी सुनते जाइए।
पति: आप कहती रहिए। क्या मैं सिगरेट पी सकता हूँ। (माचिस तलाश करता है) ओह, आज सुबह से एक सिगरेट भी तो नहीं पी। क्या आप माचिस ला देंगी ?
पत्नी: जी नहीं। माचिस रसोई में है और रसोई बन्द है, क्योंकि आज ‘घर बन्द’ है।
पति: अच्छा तो फिर अपनी माँगें आगे बताइए।
पत्नी: (याद करती हुई) हाँ, याद आया। मैं यह तो भूल ही गयी थी। जब कोई सहेली मेरे घर आयेगी, तो आप उसकी आवभगत में किये खर्च की निन्दा नहीं करेंगे। जब मैं किसी पड़ोसी से बातचीत कर रही होऊँ, तो आप बीच में डिस्टर्ब नहीं करेंगे।

(बड़े लड़के का प्रवेश।)
 

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