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दरिंदे

हमीदुल्ला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8424
आईएसबीएन :0

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समाज और व्यवस्था के प्रति आक्रोश




घरबन्द


अ.भा. प्रतियोगिता में 1970-71 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त एकांकी


पात्र



1.    पति
2.    पत्नी
3.    बड़ा लड़का
4.    बड़ी लड़की
5.    छोटा बच्चा
6.    देवेन्द्र

समय: सुबह सात बजे।

[परदा उठने पर- सामने बैठी पत्नी और तीनों बच्चे आपस में खुसर-पुसर कर रहे हैं। तभी जीने से पति हाथ से आँखें मलता ऊपर के कमरे से उतरता है। वह अभी सोकर उठा है। उसे देखकर पत्नी और तीनों बच्चे बिना उससे नज़रे मिलाये उठकर तेजी से विंग्स में चले जाते हैं। वह आश्चर्य से चारों ओर देखता है।]
पति: (स्वलाप) ये सब मुझे देखकर चले क्यों गये ? (आवाज़ देता है) रंजना, मनोज, बिन्नी......न जाने क्यों चले गये सब यहाँ से उठकर। (सामने रखे सोफ़े पर बैठ जाता है) मैंने कहा जी, आज क्या चाय नहीं मिलेगी ?

(पत्नी का प्रवेश।)

पत्नी: (त्यौरियाँ चढ़ाकर) जी हाँ, आज चाय नहीं मिलेगी, कुछ भी नहीं मिलेगा।
पति: नहीं मिलेगी ? कुछ भी नहीं मिलेगा ? क्या मैं पूछ सकता हूँ कि चाय क्यों नहीं मिलेगी, श्रीमतीजी ?
पत्नी: कह दिया न कि नहीं मिलेगी।
पति: (विनम्र स्वर में) हे भगवान्, रक्षा करना। मैंने कहा आज दुश्मनों की तबीयत तो ठीक है न ?

(पति चारों ओर दृष्टि डालता है। मंच पर हलका प्रकाश धीरे-धीरे निखरता है) मैंने कहा, दुश्मनों की तबीयत को तो कहीं कुछ नहीं हुआ जो मेरी बात नहीं सुनी गयी। क्या कान में कोई.............
पत्नी- दुश्मनों की तबीयत को झाड़ू मारो। मेरी तबीयत की बात कीजिए। मुझे कुछ नहीं हुआ है। मैं भली-चंगी हूँ।
पति: भली-चंगी हो ? तो फिर आज चाय क्यों नहीं मिलेगी ? आख़िर कोई वजह तो होगी इसकी।
पत्नी: जी हाँ, चाय नहीं मिलेगी। आज घर बन्द है।
पति: घर बन्द ? यह क्या होता है ? अच्छा, अच्छा, समझ गया। आज पिकनिक का इरादा है। मौसम भी आज अच्छा है।

(खिड़की के पास आता है।)

पत्नी: (व्यंग्य से) जी हाँ। पिकनिक ! क्या कहने हैं पिकनिक के। अकेले ही चले जाना।
पति: अकेले क्यों ? आप जो साथी होंगी। बड़ा मजा आयेगा। सच कहता हूँ, कभी-कभी तुम बड़ी दूर की सोचती हो। मनोज, बिन्नी, बबलू.....ये सब तो स्कूल चले ही जायेंगे।

(बड़े लड़के और बड़ी लड़की का प्रवेश)
बड़ा लड़का,
बड़ी लड़की: जी नहीं, हम आज स्कूल नहीं जायेंगे। आज घर बन्द है।
पति: क्या....यह क्या है......कैसा घर बन्द। मैं तुम लोगों का मतलब नहीं समझा।
पत्नी: अहहहा ! बड़े भोले बन रहे हैं। (व्यंग्य से दोहराते हुए) मतलब नहीं समझे। इसमें समझने और न समझने की कौन-सी बात है। जिस तरह आज सारे देश में कभी ‘बंगाल बन्द’ तो कभी ‘बम्बई बन्द’ है। अब तो समझ गये आप ‘घर बन्द’ का मतलब।
पति: हूँ, ‘घर बन्द’।
पत्नी: बिलकुल।
पति: (कुढ़ते हुए) ‘घर बन्द’।
पत्नी: जी हाँ, ‘घर बन्द’। यानी आज घर पूरी तरह से बन्द रहेगा। न कुछ खाने-पीने को बनेगा और न ही कोई काम होगा।
पति: (लम्बी साँस खींचकर) ठीक है। तो आज ‘घर बन्द’ है। मगर इसका कारण क्या है, आख़िर ?
बड़ा लड़का: हमारी माँगें.......
(माँ, बेटे, सब एक साथ चिल्लाते हैं) पूरी हों, हमारी माँगें पूरी हों। हमारी माँगें....पूरी हों।
पति: अरे, अरे, यह क्या बदतमीज़ी है। मैं कहता हूँ, क्या हो रहा है, यह सब ?
पत्नी: इस तरह हमें डाँटने-डपटने से कुछ नहीं होगा। आज ‘घर बन्द’ होकर रहेगा।
पति: यह क्या ‘घर बन्द’ की रट लगा रखी है, तुम लोगों ने। बात समझ में तो आये कि आख़िर.....
पत्नी: आज हम साफ़-साफ़ कहे देते हैं, जब तक हमारी माँगें पूरी नहीं होगी, ‘घर बन्द’ जारी रहेगा। क्यों ठीक है न बिन्नी ?
बड़ी लड़की: हाँ जी, हाँ।
 पति: ये सब क्या बदतमीजी है। शायद साढ़े सात से भी ज़्यादा का वक्त हो गया है और तुम लोग अभी तक स्कूल नहीं गये ?
पत्नी: पहले हमारी माँगें.............
लड़का-लड़की: पूरा हों...........
पति: (गुस्से से) आप लोग आखिर मुझसे चाहते क्या हैं ?
हमारी माँगें......
लड़का-लड़की- पूरी हों !
पति: ओह, आपकी इस नारेबाजी से तो मेरा दिमाग़ ख़राब हो जायेगा। मैं कहता हूँ, आज बिन्नी स्कूल क्यों नहीं गयी ?
उसके भविष्य की भी कोई चिन्ता है ?
पत्नी लड़का-लड़की: हमारी माँगें पूरी हों !
पति: तो यह जवाब हुआ, मेरे सवाल का....माँगें पूरी हों।

(पति परेशान-सा होकर सोफ़े पर बैठ जाता है। तभी सोफ़े के पीछे से छोटा बच्चा बबलू चिल्लाता हुआ निकलता है- हमारी माँगें.....पूरी हों। पति चौंककर उठता है। परिस्थिति को समझने की कोशिश करता हुआ बबलू को अपने पास बैठा लेता है।)

पति: (विषय बदलता है) अरे भाई, आओ बब्लू, कल रात हम तुम्हारे लिए ढेर सारी मीठी-मीठी मिठाई की गोलियां लाये हैं। तुम तो रात बहुत जल्दी सो गये थे।
छोड़ा लड़का: पिताजी, आज हम आपकी मीठी-मीठी बातों में आनेवाले नहीं हैं।
पति: हैं ? अरे आज यह क्या कह रहे हो बेटे ? लगता है, आज घर-भर ने मेरे खिलाफ षड्यन्त्र रचा है। इसलिए कोई समझौता तो करना ही होगा। अब मेरी एक बात मानो। आप सब खड़े क्यों हो ? पहले आराम से शान्ति से बैठ जाइए। उसके बाद आपकी सारी माँगों पर विचार करेंगे।
छोटा लड़का: नहीं, पिताजी, आज हम आपकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाले नहीं हैं। आज तो अपनी माँगें मनवाकर ही रहेंगे।
पति: (आश्चर्य से) अरे, यह तू बोल रहा है। बब्लू, लगता है, तेरी माँ ने पहले से ही आज के लिए डायलॉग रटा दिये हैं।
छोटा लड़का: हमारी माँगें.......
पत्नी, लड़का, लड़की: पूरी हों।
पति: मैं यह कब कहता हूँ कि मेरी चिकनी-चुपड़ी बातों में आओ। पर बैठकर शान्ति से बातें करने में कोई बुराई तो नहीं है। देखिए, आप लोगों ने अपनी माँगें मनवाने का जो ढंग अपनाया है, वह किसी भी तरह उचित नहीं है।
बड़ा लड़का: उचित नहीं है ? क्यों उचित नहीं है ? जब और जगहों पर बेकार और ऊल-जुलूल बातों पर ‘बन्द’ हो सकता है, तो ‘घर बन्द’ क्यों नहीं हो सकता ? क्यों बिन्नी ?
लड़की: मनोज सही कहता है। जब अपनी-अपनी उल्टी-सीधी माँगों को लेकर सब जगह ‘बन्द’ हो सकता है, तो ‘घर बन्द’ क्यों नहीं हो सकता।
पति: ठीक है, ठीक है, मगर आप लोग नहीं जानते कि इन ‘बन्दों’ से देश को कितना नुकसान होता है। देश के उत्पादन में कमी आती है। देश की भारी........
पत्नी: (बात काटकर) लेकिन हमारी बात तो सुनिए, हमें देश के उत्पादन.......
पति: पहले मुझे अपनी बात तो पूरी कर लेने दो......इन ‘बन्दों’ की वजह से दफ़्तर जाने वाले दफ़्तर नहीं जा पाते।
उनकी एक दिन की तनख्वाह मारी जाती है, अगर के रोजनदारी पर हों तो। बच्चे स्कूल-कॉलेज नहीं जा पाते। बीमारों को दवा नहीं मिल पाती और......
बड़ा लड़का: आप तो राष्ट्रीय स्तर की बात कर रहे हैं, पिताजी, और हमारा बन्द तो स्थानीय स्तर का है- यानी ‘घर बन्द’ है।

पति: यही को मैं आपको बताना चाहता हूँ कि ‘बन्द’ कैसा भी हो, हर हालत में बुरा है। उससे नुकसान होता है। अब इस ‘घर बन्द’ को ही लीजिए। आप लोगों ने ‘घर बन्द’ किया। कितना नुकसान हुआ है, इससे घरवालों को।
पत्नी: आप भाषण तो बहुत अच्छा दे लेते हैं।
पति: शुक्रिया।
बड़ा लड़का: हम सब यह सुनने के लिए तैयार नहीं, पिताजी।
पति: लेकिन तुम्हें यह तो मानना ही पड़ेगा कि इस ‘घर बन्द’ से घर का कितना ज़्यादा नुकसान हुआ है। सुबह दूध आया होगा, वह बेकार पड़ा है। बच्चे स्कूल नहीं गये। इससे पढ़ाई का हर्ज होगा।
छोटा लड़का: पिताजी, आप हमारी पढ़ाई की बात रहने दें। आप तो अपनी चिन्ता कीजिए।
पति: मैं भी दफ़्तर नहीं जा पाऊँगा। इससे मेरी एक दिन की छुट्टी मारी जायेगी। यह छुट्टी में आप लोगों के साथ घूमने या पिकनिक मनाने के लिए ले सकता था। घर में खाना नहीं बनेगा, तो बाहर खाना पड़ेगा, जो बहुत महँगा पड़ेगा। इससे घर का बजट बिगड़ेगा।
पत्नी और बड़ा लड़का: हम आपका भाषण सुनना नहीं चाहते। हमारी माँगें.........
सब: पूरी हों।

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