अतिरिक्त >> दरिंदे दरिंदेहमीदुल्ला
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समाज और व्यवस्था के प्रति आक्रोश
नेता : चमचे ! चमचे :
(सभी पात्र अपनी-अपनी जगह पर फ्रीज़ हो
जाते हैं।)
नेता : चमचे, कहाँ हो भाई ?
(कठपुतली की तरह चमचे का प्रवेश। शब्दों
में उच्चारण भी कठपुतली जैसे।)
चमचा : इस बार कौन आफत आ गयी ?
नेता : देख रहे हो ?
चमचा : देख रहा हूँ।
नेता : कोई तरकीब सोचो।
चमचा : ध्यान हटा दो।
नेता : हाँ, ध्यान हटा दो।
(फ्रीज़ समूह से) सुनिए, सुनिए, सुनिए।
(सभी पात्रों में एक साथ हरकत होती है।
स्त्री चौकी पर चढ़ जाती है। सभी पात्र उसके इर्द-गिर्द खड़े हो जाते हैं।)
स्त्री : (भाषण देने की मुद्रा में) भाइयो और बहनो ! विश्व की अनेक
समस्याएँ हमारे सामने हैं। विश्व-समुदाय के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारियाँ
हैं। इन जिम्मेदारियों को हम सबको बड़ी जिम्मेदारी से निभाना है। इसलिए आप
सबको पहले इन बातों की तरफ़ ध्यान देना है।
(स्त्री फ्रीज़ होकर चौकी पर खड़ी रहती
है। पुरुष मंच की दायीं ओर कुरसी पर खड़ा होकर भाषण जारी रखता है। शेष
पात्र उसकी तरफ़ मुड़कर उसे सुनते हैं।)
पु. : विश्व एक नाजुक दौर से गुजर रहा है। इसने उसपर, उसने उसपर, इसने
इसपर, उसने उसपर, हमला कर दिया है। शान्ति के लिए हमें हर युद्ध में भाग
लेना है।
(पुरुष अपने स्थान पर फ्रीज़ हो जाता है।
अन्य पुरुष मंच की बायीं ओर रखी स्टूल पर चढ़कर भाषण जारी रखता है। शेष
पात्र पूर्ववत उसकी तरफ़ मुड़ जाते हैं।)
अ.पु. : सारे संसार में डॉलर की कीमत गिर रही है। मँहगाई बढ़ी है। हम
चाहते हैं, डॉलर की क़ीमत के साथ-साथ क़ीमतें भी गिरें ताकि सबको राहत
मिले।
(अन्य पुरुष, फ्रीज़ हो जाता है। स्त्री
अपनी फ्रीज़ तोड़कर भाषण का क्रम जारी रखती है। पुनः एक बार उसी तरह।)
स्त्री : हमें चाहिए, हम हड़तालें करना बन्द करें। तालाबन्दी छोड़ें।
पु. : विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता में हमारा अटूट विश्वास है।
अ.पु. : मिट्टी के तेल के दाम इसलिए बढ़ाये गये हैं ताकि लोग पेट्रोल में
मिट्टी के तेल की मिलावट न करें।
स्त्री : पेट्रोल के दाम इसलिए बढ़ाये गये हैं ताकि लोग पेट्रोल का
इस्तेमाल कम करें।
पु : अनाज का दम इसलिए बढ़ाये गये हैं ताकि लोग ...।
(अकालसूचक ध्वनि-प्रभाव। सभी पात्र मुँह
बाये शून्य में आकाश की ओर देखते हैं। चौकी, कुरसी और स्टूल पर खड़े पात्र
‘अकाल ! सूखा ! भूख !’ कहते नीचे उतर आते हैं और शेष
पात्रों के साथ शामिल हो जाते हैं, जो मंच पर यहाँ-वहाँ ‘रोटी,
भूख, प्यास’ चिल्लाते घबराये हुए फिर रहे हैं। यह क्रम कुछ
क्षणों तक जारी रखकर बादलों की गड़गड़ाहट के साथ समाप्त होता है। बादलों
की गड़गड़ाहट के तुरन्त बाद वर्षा-सूचक ध्वनि-प्रभाव। सभी पात्र
हर्षोल्लास के साथ आकाश की ओर देखकर खुशी से झूमने लगते हैं।
‘पानी, बारिश, बरसात’ अनेक ध्वनियाँ मंच पर फैल जाती
हैं। स्त्री-पात्राएँ एक-दूसरे हाथ पकड़े पार्श्व में बजती वर्षा-गीत की
धुन पर नृत्यलीन हो जाती हैं। शेष पात्रों में भालू और शेर को बैलों की
तरह जोतकर पुरुष (मूकाभिनय) हल चलाता है। अन्य पुरुष फावड़े से मिट्टी
खोदता है। दार्शनिक और ढोलकिया भी अपने को किसी न किसी रूप में व्यस्त
रखते हैं। कुछ क्षणों यही क्रम। अचानक तीव्र वर्षा-सूचक ध्वनि-प्रभाव।
इसके साथ बिजली कड़कने की आवाज़। वातावरण के अनुकूल प्रकाश। मौन। बाढ़ के
प्रभाव। सभी पात्र इस प्रकार व्यवहार करते हैं मानो जान बचाने की चेष्टा
में ‘बचाओ !’, बाढ़ !’, सैलाब!’,
‘तूफान !,’ ‘मुन्ना !’ आदि शब्द
चिल्लाते हैं। बाढ़-सूचक ध्वनि-प्रभाव समाप्त होने तक लगभग सभी मानव पा
कुरसियों और स्टूल पर तथा पशु पात्र मंच के बीच रखी चौकी पर चढ़ जाते हैं।
मौन।
मौन को तोड़ती दार्शनिक की आवाज़।)
वि.दा. : सब नष्ट हो रहा है। सब कुछ। सब।
(स्त्री अपने स्थान से उठकर सामने आती है।)
स्त्री : कुछ भी नष्ट नहीं होता। न वह, जो हमने जिया है। न वह जो हम जी
रहे हैं।
शेर : हम जहाँ थे वहीं हैं।
भालू : वही अभाव और माँगों की लम्बी सूची।
लोमड़ी : वही सम्भावनाओं भरा आकाश शून्य।
स्त्री : उठो...उठो....उठो...
(सभी पात्र उठकर खड़े हो जाते हैं)
हम सच्चाई जान गये हैं। मुखौटे पहचान गये
हैं।
अन्य.पु. : हम सच्चाई जान गये हैं। मुखौटे पहचान गये हैं।
स्त्री : हाँ। हम सच्चाई जान गये हैं। मुखौटे पहचान गये हैं।
(नेता और चमचे के अतिरिक्त सभी पात्र
चारों दिशाओं में-‘हम सच्चाई जान गये हैं। मुखौटे पहचान गये हैं
!’ हवा में दोहराते हैं। अचानक एक भगदड़ सी मचती है और नेता
पात्रों के हुजूम से बाहर निकलकर चमचे को आवाज़ देता है। इसके साथ ही चमचे
के आलावा सभी पात्र अपने-अपने स्थान पर फ्रीज़ हो जाते हैं।)
नेता : चमचे ! चमचे !
(चमचा पात्रों के जमघट से निकल कर बाहर
आता है। दोनों पहले-ही जैसे कठपुतलियों की तरह व्यवहार करते संवाद बोलते
हैं।)
नेता : अब क्या करें ?
चमचा : चिन्ता की कोई बात नहीं है। इन्हें सत्य की खोज और क्रान्ति के लिए
संगठित होने को कहो।
नेता : हाँ। (सभी पात्रों को सम्बेधित करता है। पात्रों में हलचल होती है।
नेता अपनी बात हरेक से उसके पास जाकर कहता है। पात्र अपनी ओर से
‘हाँ’ में सिर हिलाते हैं।)
तो भाइयों और बहनों !
सत्य क्या है, यह हमें जानना है। असत्य क्या है, यह हमें पहचानना है। इसके
लिए ज़रूरत है, सत्य की खोज और क्रान्ति की। एक ऐसी क्रान्ति की जो समाज
को तह से सतह तक झकझोर डाले। तो आओ, हम सब सत्य की खोज और क्रान्ति के लिए
संगठित हो जायें।
(सभी पात्र ‘सत्य की खोज और
क्रान्ति के लिए संगठित हो जाओ’ कहते, हर ओर जन-जन का आवाहन
करते, अपने दोनों हाथ सलीब की तरह शून्य में फैला देते हैं। पार्श्वध्वनि।
सभी पात्र अपनी-अपनी मुद्रा में जड़वत्। मौन। एकाएक नेता और चमचे का
अट्ठाहस भरा स्वर। दोनों सभी पात्रों को देखकर व्यंग्य पूर्ण हँसी हँसते
हैं। ध्वनि-प्रभाव। दोनों जड़वत्। मौन। दार्शनिक अपने स्थान से चलकर मंच
के कोने पर दर्शकों के समीप आता है। मंच पर जड़वत् खड़े पात्रों पर एक
उचटती-सी दृष्टि डालता है।)
वि.दा. : एक ही क्रम की पुनरावृत्ति।
एक ही क्रम की पुनवरावृत्ति।
एक ही क्रम।
(ध्वनि-प्रभाव)
(जड़वत्)
(समाप्ति-सूचक
संगीत)
समाप्त
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