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चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8403
आईएसबीएन :978-1-61301-030-3

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चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

बारहवाँ बयान


दूसरे दिन अपने मामूली समय पर पुनः दोनों नकाबपोशों के आने की इत्तिला मिली। उस समय जीतसिंह, बीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह, राजा गोपालसिंह, बलभद्रसिंह,  इन्द्रदेव और बद्रीनाथ वगैरह अपने यहाँ के कुछ ऐयार लोग भी महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास बैठे हुए थे और उन्हीं नकाबपोशों के बारे में तरह तरह की बातें हो रही थीं। आज्ञानुसार दोनों नकाबपोश हाजिर किये गये और फिर इस तरह बातचीत होने लगी—

तेज : (नकाबपोशों की तरफ देखकर) तारासिंह की जुबानी सुनने में आया कि भूतनाथ ने आपके दो आदमियों को ऐयारी करके गिरफ्तार कर लिया है।

एक नकाबपोश : जी हाँ, हम लोगों को भी इस बात की खबर लग चुकी है, मगर कोई चिन्ता की बात नहीं है। गिरफ्तार होने और बेइज्जती उठाने पर भी वे दोनों भूतनाथ को किसी तरह की तकलीफ न देंगे और न भूतनाथ ही उन्हें किसी तरह की तकलीफ दे सकेगा। यद्यपि उस समय भूतनाथ ने उन दोनों को नहीं पहिचाना, मगर उनका परिचय पायेगा और पहिचानेगा तो उसे बड़ा ही ताज्जुब होगा। जो हो मगर भूतनाथ को ऐसा करने की जरूरत न थी। ताज्जुब है कि ऐसे फजूल के कामों में भूतनाथ का जी क्योंकर लगता है। ऐयारी करके जिस समय भूतनाथ ने दो को गिरफ्तार किया था, उस समय उन दोनों की सूरतें देखने के साथ ही छोड़ देना चाहिए था, क्योंकि एक दफे भूतनाथ इस दरबार में उन दोनों सूरतों को देख चुका था,  और जानता था कि आखिर इन दोनों का हाल मालूम होगा ही। अब दोनों को गिरफ्तार करके ले जाने से भूतनाथ की बेचैनी कम न होगी, बल्कि और ज्यादे बढ़ जायगी।

तेज : हाँ, हम लोगों ने यही सुना था कि जिन सूरतों को देखकर मायारानी का दारोगा और जैपाल बदहवास हो गये थे, उन्हीं दोनों को भूतनाथ ने गिरफ्तार किया है।

नकाबपोश : जी हाँ ऐसा ही है।

तेज : तो क्या वे दोनों स्वयं इस दरबार में आये थे या आप लोगों ने उन दोनों के जैसी सूरत बनायी थी?

नकाबपोश : जी वे लोग स्वयं यहाँ नहीं आये थे, बल्कि हम ही दोनों उन दोनों की तरह सूरत बनाये हुए थे। दारोगा और जैपाल इस बात को समझ न सके।

तेज : असल में दोनों कौन हैं, जिन्हें भूतनाथ ने गिरफ्तार किया है?

नकाबपोश : (कुछ सोचकर) आज नहीं, अगर हो सकेगा तो दो-एक दिन में मैं आपकी इस बात का जवाब दूँगा, क्योंकि इस समय हम लोग ज्यादा देर तक यहाँ ठहरना नहीं चाहते। इसके अतिरिक्त सम्भव है कि कल तक भूतनाथ भी उन दोनों को लिये हुए यहीं आ जाय अगर वह अकेला ही आवे तो हुक्म दीजियेगा कि उन दोनों को भी यहाँ ले आये, उस समय कमबख्त दारोगा और जैपाल के सामने उन दोनों का हाल सुनने से आप लोगों को विशेष आनन्द मिलेगा। मैं भी...(कुछ रुककर) मौजूद ही रहूँगा, जो बात समझ में न आवेगी तो समझा दूँगा। (कुछ रुककर) हाँ भैरोसिंह और तारासिंह के विषय में क्या आज्ञा होती है? क्या आज वे दोनों हमारे साथ भेजे जाँयगे? क्योंकि इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को उन दोनों के बिना सख्त तकलीफ है।

सुरेन्द्र : हाँ भैरों और तारा तुम दोनों के साथ जाने के लिए तैयार है।

इतना कहकर महाराज ने भैरोसिंह और तारासिंह की तरफ देखा, जो उसी दरबार में बैठे हुए नकाबपोशों की बातें सुन रहे थे। महाराज को अपनी तरफ देखते दोनों भाई उठ खड़े हुए और महाराज को सलाम करने बाद दोनों नकाबपोशों के पास आकर बैठ गये।

नकाबपोश : (महाराज से) तो अब हम लोगों को आज्ञा मिलनी चाहिए।

सुरेन्द्र : क्या आज दोनों लड़कों का हाल हम लोगों को न सुनाओगे?

नकाबपोश : (हाथ जोड़कर) जी नहीं, क्योंकि देर हो जाने से आज भैरोसिंह और तारासिंह को इन्द्रजीतसिंह के पास हम लोग पहुँचा न सकेंगे।

सुरेन्द्र : खैर, क्या हर्ज है, कल तो तुम लोगों का आना होगा ही?

नकाबपोश : अवश्य !

इतना कहकर दोनों नकाबपोश उठ खड़े हुए और सलाम करके बिदा हुए। भैरोसिंह और तारासिंह भी उनके साथ रवाना हुए।

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