लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

देवकीनन्दन खत्री

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8403
आईएसबीएन :978-1-61301-030-3

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

17 पाठक हैं

चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

तीसरा बयान


नानक को लिए हुए, मायारानी दूसरी तरफ चली गयी, मगर जिस जगह जाना चाहती थी, वहाँ पहुँचने के पहिले ही उसने पुनः एक गोपालसिंह को अपने से कुछ दूर पर देखा और उसी समय तिलिस्मी तमंचे में गोली भरकर निशाना सर किया। गोली उसके घुटने पर लगकर फूट गयी और उसमें से निकला हुआ बेहोशी का धुआँ उसके चारों तरफ फैल गया, मगर उसका असर गोपालसिंह पर कुछ न हुआ। गोपालसिंह तेजी के साथ लपककर मायारानी के पास चले आये।

यह कैफियत देखकर मायारानी घबड़ा गयी और उसे निश्चय हो गया कि अब उसकी मौत सामने आ खड़ी हुई है, जो एक पल के लिए भी उसका मुलाहिजा न करेगी। अस्तु, वह गोपालसिंह की बात का कुछ जवाब न दे सकी और नानक की तरफ देखने लगी। गोपालसिंह ने यह कहकर कि नानक की तरफ क्या देख रही है मेरी तरफ देख'! एक तमाचा उसके गाल पर इस जोर से मारा कि वह इस सदमे को बर्दाश्त न कर सकी और चक्कर खाकर जमीन पर बैठ गयी। गोपालसिंह ने अपनी जेब में से कुछ निकाल कर उसे जबर्दस्ती सुँघाया, जिससे वह बेहोश होकर जमीन पर लेट गयी।

इसके बाद गोपालसिंह ने नानक की तरफ जो डर के मारे खड़ा काँप रहा था देखा और कहा—

गोपाल : कहो नानक, तुम यहाँ कैसे आ गये? क्या उस भुवनमोहिनी के प्रेम में कमी तो नहीं हो गयी या मनोरमा को खोजते हुए तो नहीं आ गये?

नानक : (डरता हुआ हाथ जोड़कर) जी मैं कमलिनीजी से मिलने के आया था, क्योंकि वह मुझपर कृपा रखती हैं, और जब-जब मुझे ग्रहदशा आकर घेरती है, तब-तब सहायता करती हैं। मुझे यह खबर लगी थी कि वे इस बाग में आयी हुई हैं।

गोपाल : मगर यहाँ आकर कमलिनी की जगह मायारानी से मदद माँगने की नौबत आ गयी, बल्कि क्या ताज्जुब कि इसी के साथ तुम यहाँ आये भी हो।

नानक : जी नहीं, मेरा इसका साथ भला क्योंकर हो सकता है, क्योंकि यह मेरी पुरानी दुश्मनी है, और इसने धोखा देखकर मेरे बाप को ऐसी आफत में डाल दिया है कि अभी तक उसे किसी तरह छुटकारा नहीं मिलता।

गोपाल : वह सब जोकुछ है, मैं खूब जानता हूँ। तुमने अपने बाप के लिए जो कुछ कोशिश की वह भी किसी से छिपी नहीं है तथा तारासिंह ने तुम्हारे यहाँ जाकर जोकुछ तुम्हारा हाल मालूम किया है, वह भी मुझे मालूम है। अब मैं समझा कि तुम तारासिंह से बदला लेने यहाँ आये हो। मगर यह तो बताओ कि किस राह से तुम यहाँ आये?

नानक : जी नहीं, यह बात नहीं है, भला मैं तारासिंह से क्या बदला ले सकूँगा? तारासिंह ही से नहीं बल्कि राजा बीरेन्द्रसिंह के किसी भी ऐयार का मुकाबला करने की हिम्मत मेरे में नहीं, मगर तारासिंह ने जोकुछ सलूक मेरे साथ किया है, उसका रंज जरूर है और मैं कमलिनीजी से इसी बात की शिकायत करने यहाँ आया था, क्योंकि मुझे उसका बड़ा भरोसा रहता है, और यहाँ आने का रास्ता भी उन्होंने ही उस समय मुझे बताया था, जब कमबख्त मायारानी की बदौलत आप यहाँ कैद थे और पागल बने हुए तेजसिंह यहाँ आये थे।

गोपाल : हाँ ठीक है, मगर मैं समझता हूँ कि साथ ही इसके तुम उन भेदों को जानने का भी इरादा करके आये होगे जो गूँगी रामभोली की बदौलत यहाँ आने पर तुमने देखा था...

नानक : जी हाँ, इसमें कोई शक नहीं है कि मैं उन भेदों को भी जानना चाहता हूँ, परन्तु यह बात बिना आपकी कृपा के...

गोपाल : नहीं नहीं, उन भेदों का जानना तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल है, क्योंकि तुम्हारी गिनती ईमानदार ऐयारों में नहीं हो सकती। यद्यपि वह सब हाल मुझे मालूम है, लाडिली ने तुम्हारा अनूठा हाल पूरा-पूरा बयान किया था और उसी को रामभोली समझकर तुम यहाँ आये भी थे, मगर जोकुछ तुमने यहाँ आकर देखा, उसका सबब बयान करना मैं उचित नहीं समझता, फिर भी इतना जरूर कहूँगा कि वह अनोखीं तस्वीर जो दारोगा बाले अजायबघर के बंगले में तुमने देखी थी वास्तव में कुछ न थी, या अगर थी तो केवल तुम्हारी रामभोली की निरी शरारत।

नानक : और वह कुएँवाला हाथ?

गोपाल : वह तुम्हारे बुजुर्ग धनपत का साया था। (कुछ सोचकर) मगर नानक, मुझे इस बात का अफसोस है कि तुम अपनी जवानी, हिम्मत, लियाकत और ऐयारी तथा बुद्धिमानी का खून बुरी तरह कर रहे हो। इसमें कोई शक नहीं कि अगर तुम इश्क और मुहब्बत के झगड़ों में न पड़े होते, तो समय पर अपने बाप की सहायता करने लायक होते। अब भी तुम्हारे लिए उचित यही है कि तुम अपने खयालों का सुधार कर इज्जत पैदा करने या बदला लेने का खयाल दिल से दूर कर दो। इस थोड़ी-सी जिन्दगी में मामूली ऐशोआराम के लिए अपना परलोक बिगाड़ना पढ़े-लिखे बुद्धिमानों का काम नहीं है। अच्छे लोग मौत और जिन्दगी का फैसला एक अनूठे ढंग पर करते हैं। उनका खयाल यह है कि दुनिया में वह कभी मरा हुआ तब तक न समझा जायगा, जब तक उसका नाम नेकी के साथ सुना या लिया जायगा, और जिसने अपने माथे पर बुराई का टीका लगा लिया वह मुर्दे से भी बढ़ कर है। दुष्ट लोग यदि किसी कारण मनुष्य को चींटी समझने लायक हो भी जाँय तो भी कोई बात नहीं, मगर ईश्वर की तरफ से वे किसी तरह निश्चिन्त नहीं हो सकते और मेरे किस्से से तुम यह नसीहत नहीं ले सकते?

 क्या तुम मायारानी, माधवी, अग्निदत्त और शिवदत्त वगैरह से भी अपने को बढ़कर समझते हो, और नहीं जानते कि उन लोगों का अन्त किस तरह हुआ और हो रहा है? फिर किस भरोसे पर तुम अपने को बुरी राह चलाया चाहते हो? निःसन्देह तुम्हारा बाप बुद्धिमान है, जो एक नामी और अद्भुत शक्ति रखनेवाला अमीर ऐयार होने और हर तरह की बेइज्जती सहने पर भी राजा बीरेन्द्रसिंह  का कृपापात्र बनने का ध्यान अपने दिल से दूर नहीं करता, और तुम उसी भूतनाथ के लड़के हो जा अपने दिल को काबू में नहीं रख सकते!

इस तरह की बहुत सी नसीहत-भरी बातें राजा गोपालसिंह ने इस ढंग से नानक को कहीं कि उसके दिल पर असर कर गयीं, वह राजा गोपालसिंह के पैरों पर गिर पड़ा और जब उन्होंने उसे दिलासा देकर उठाया तो हाथ जोड़के अपनी डबडबायी हुई आँखे नीचे किये हुए बोला, "मेरा अपराध क्षमा कीजिए! यद्यपि मैं क्षमा माँगने योग्य नहीं हूँ, परन्तु आपकी उदारता मुझे क्षमा देने योग्य है। अब मुझे अपनी ताबेदारी में लीजिए, और हर तरह से आजमा कर देखिए कि आपकी नसीहत का असर मुझपर कैसा पड़ा और अब मैं किस तरह आपकी खिदमत करता हूँ।"

इसके जवाब में गोपालसिंह ने कहा, "अच्छा हम तुम्हारा कसूर माफ करके तुम्हारी दर्खास्त कबूल करते हैं। तुम मेरे साथ आओ और जोकुछ मैं कहूँ करो।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book