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चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8403
आईएसबीएन :978-1-61301-030-3

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चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

दूसरा बयान


कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने एक लम्बी साँस लेकर भैरोसिंह से कहा, "भैरोसिंह इस बात का मुझे गुमान भी नहीं हो सकता कि तुम स्वप्न में भी हम लोगों के साथ बुराई करने का इरादा करोगे, मगर तुम्हारे झूठ बोलने ने हम लोगों को दुखी कर दिया। अगर तुमने झूठ बोलकर हम लोगों को धोखे में न डाला होता तो आज इन्द्रानी और आनन्दीवाले मामले में पड़कर हमने अपने मुँह में अपने हाथ से स्याही न मली होती। यद्यपि इन दोनों औरतों के बारे में तरह-तरह के विचार मन में उठते थे, मगर इस बात का गुमान कब हो सकता था कि ये दोनों मायारानी और माधवी होंगी! ईश्वर ने बड़ी कुशल की कि शादी होने के बाद आधी घड़ी के लिए भी उन दोनों कमबख्तों का साथ न हुआ, अगर होता बड़े ही धर्म-संकट में जान फँस जाती। मैं यह समझता था कि राजा गोपालसिंह की आज्ञानुसार आज-कल तुम कमलिनी वगैरह का साथ दे रहे हो, शायद ऐसा करने में भी कोई फायदा ही होगा, मगर इस बात का हमारा खयाल कभी नहीं जम सकता कि इतनी बढ़ी-चढ़ी दिल्लगी करने की किसी ने तुम्हें इजाजत दी होगी। नहीं नहीं, इसे दिल्लगी नहीं कहना चाहिए, यह तो इज्जत और हुर्मत को मिट्टी में मिला देनेवाला काम है। भला तुम ही बताओ कि किशोरी और कमलिनी वगैरह तथा और लोगों के सामने अब हम अपना मुँह क्योंकर दिखायेंगे।

भैरो : और लोगों की बातें तो जाने दीजिए, क्योंकि इस तिलिस्म के अन्दर जोकुछ हो रहा है, इसकी खबर बाहरवालों को हो ही नहीं सकती, हाँ किशोरी, कामिनी और कमला वगैरह अवश्य ताना मारेंगी क्योंकि उनको इस मामले की पूरी खबर है और वे लोग इसी बगलवाले बाग में मौजूद भी हैं, मगर मैं सच कहता हूँ कि इस मामले में मैं बिल्कुल बेकसूर हूँ। इसमें कोई शक नहीं कि कमलिनी की इच्छानुसार मैं बहुतसी बातें आप लोगों से छिपा गया हूँ, मगर इन्द्रानी के मामले मंम मैं भी धोखा खा गया। मैं ही नहीं बल्कि कमलिनी ने भी यही समझा था कि इन्द्रानी और आनन्दी इस तिलिस्म की रानी हैं। खैर, अब तो जो कुछ होना चाहिए था वह हो चुका, रंज को दूर कीजिए और चलिए, मैं आपकी कमलिनी से मुलाकात कराऊँ।

इन्द्रजीत : नहीं मैं अभी उन लोगों से मुलाकात न करूँगा, कुछ दिन के बाद देखा जायगा।

आनन्द : जी हाँ, मेरी भी यही राय है। अफसोस माधवी की बनावटी कलाई पर भी उस समय कुछ ध्यान नहीं गया, यद्यपि यह एक मामूली और छोटी बात थी।

भैरो : नहीं नहीं, ऐसा खयाल न कीजिए, जब आप अपना दिल इतना छोटा कर देंगे, तब किसी भारी काम को क्योंकर करेंगे? इसे भी जाने दीजिए, आप यह बताइए कि इसमें किशोरी या कमलिनी वगैरह का क्या कसूर है, जो आप उनसे मुलाकात तक भी न करेंगे? शादी-ब्याह का शौक बढ़ा आपको और भूल हुई आपसे, कमलिनी ने भला कया किया? और बोले, "मैं वह नकली गोपालसिंह नहीं हूँ, जिस पर इस तमंचे का असर हो, मैं असली गोपालसिंह हूँ और तुझसे यह पूछने के लिये आया हूँ कि बता अब तेरे साथ क्या सलूक किया जाय।" (चौंककर) खैर आप उनके पास जाइए, वह देखिए कमलिनी खुद ही आपके पास चली आ रही है!

कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने अफसोस और रंज से झुका सिर उठाकर देखा तो कमलिनी पर निगाह पड़ी जो धीरे-धीरे चलती और मुस्कुराती हुई, इन्हीं लोगों की तरफ आ रही थी।

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