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चन्द्रकान्ता सन्तति - 3

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8401
आईएसबीएन :978-1-61301-028-0

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चन्द्रकान्ता सन्तति 3 पुस्तक का ई-संस्करण...

पाँचवाँ बयान


सन्तति के छठवें भाग के पाँचवे बयान में लिख आये हैं कि कमलिनी ने जब कमला को मायारानी की कैद से छुड़ाया, तो उसे ताकीद दी कि तू सीधे रोहतासगढ़ चली जा और किशोरी की खोज में इधर-उधर घूमना छोड़के बराबर उसी के किले में बैठी रह। कमला ने यह बात स्वीकार कर ली और बीरेन्द्रसिंह के चुनारगढ़ चले जाने बाद कमला ने रोहतासगढ़ को नहीं छोड़ा, ईश्नर पर भरोसा करके उसी किले में बैठी रही।

यद्यपि उस किले का जनाना हिस्सा बिल्कुल सूना हो गया था, मगर जब से कमला ने उसमें अपना डेरा जमाया, तब से बीस-पचीस औरतें, जो कमला की खातिर के लिए राजा बीरेन्द्रसिंह की आज्ञानुसार लौंडियों के तौर पर रख दी गयी थीं, वहाँ दिखायी देने लगी थीं। जब राजा बीरेन्द्रसिंह यहाँ से चुनारगढ़ की तरफ रवाना होने लगे, तब उन्होंने भी कमला को ताकीद कर दी कि तू अपनी ऐयारी को काम में लाने के लिए इधर-उधर दौड़ा छोड़के बराबर इसी किले में बैठी रहियो और यदि चारों तरफ की खबर लिये बिना तेरा जी न माने तो हमारे जासूसों को जो ज्योतिषीजी के मातहत में हैं, जहाँ चाहें भेजा कीजियो। इसी तरह ज्योतिषीजी को भी ताकीद कर दी गयी थी कि कमला की खातिरदारी में किसी तरह की कमी न होने पावे, तथा यह जिस समय, जो कुछ चाहे, उसका इन्तजाम कर दिया करना और इसमें भी कोई शक नहीं कि पण्डित जगन्नाथ ज्योतिषी ने कमला की बड़ी खातिर की। कमला बड़े आराम से यहाँ रहने लगी और जासूसों के जरिये से जहाँ तक हो सकता था, चारों तरफ की खबर भी लेती रही।

आज बहुत दिनों बाद कमला के चेहरे पर हँसी दिखायी दे रही है। आज वह बहुत खुश है, बल्कि यों कहना चाहिए कि आज उसकी खुशी का अन्दाजा करना बहुत ही कठिन है, क्योंकि पण्डित जगन्नाथ ज्योतिषी ने तेजसिंह के हाथ की लिखी चीठी कमला के हाथ में दी और जब कमला ने उसे खोलकर पढ़ा तो यह लिखा हुआ पाया—

"मेरे प्रिय दोस्त ज्योतिषीजी,

आज हम लोगों के लिए बड़ी खुशी का दिन है, इसलिए कि हम ऐयार लोग किशोरी, कमलिनी, कामिनी, लाडिली और तारा को एक साथ लिए हुए रोहतासगढ़ की तरफ आ रहे हैं। अस्तु, जहाँ तक हो सके पालकियों और सवारियों के अतिरिक्त कुछ फौजी सवारों को भी साथ लेकर तुम स्वयं ‘डहना’ पहाड़ी के नीचे हम लोगों से मिलो।

तुम्हारा दोस्त—
तेजसिंह।"

इस चीठी के पढ़ते ही कमला हद्द से ज्यादे खुश हो गयी और उसकी आँखों से गर्म-गर्म आँसुओं की बूँदें गिरने लगीं, गला भर आया और कुछ देर तक बोलने या कुछ पूछने का सामर्थ्य न रही। इसके बाद अपने को सम्हालके उसने कहा—

कमला : यह चीठी आपको कब मिली? आप अभी तक गये क्यों नहीं?

ज्योतिषीजी : यह चीठी मुझे अभी मिली है, मैं तेजसिंह के लिखे बमूजिब इन्तजाम करने का हुक्म देकर तुम्हारे पास खबर करने के लिए आया हूँ और अभी चला जाऊँगा।

कमला : आपने बहुत अच्छा किया, मैं भी उनसे मिलने के लिए ऐसे समय अवश्य चलूँगी, मगर मेरे लिए भी पालकी का बन्दोबस्त कर दीजिए, क्योंकि ऐसे समय में दूसरे ढंग पर वहाँ जाने से मालिक की इज्जत में बट्टा लगेगा।

ज्योतिषी : बेशक, ऐसा ही है, मैं पहिले ही सोच चुका था कि तुम हमारे साथ चले बिना न रहोगी, इसलिए तुम्हारे वास्ते भी इन्तजाम कर चुका हूँ, पालकी ड्योढ़ी पर आ चुकी होंगी, बस तैयार हो जाओ देर मत करो।

कमला झटपट तैयार हो गयी और ज्योतिषीजी ने भी तेजसिंह के लिखे बमुजिब सब तैयारी बात-की-बात में कर ली। घण्टे ही भर बाद रोहतासगढ़ पहाड़ के नीचे पाँच-सौ सवार चाँदी-सोने के काम की पालकियों को बीच में लिए हुए ‘डहना’ पहाड़ी की तरफ जाते हुए दिखायी दिये और पहर-भर के बाद वहाँ जा पहुँचे, जहाँ तेजसिंह, किशोरी, इत्यादि को एक गुफा के अन्दर बैठाकर ऐयारों तथा बलभद्रसिंह को साथ लिये ज्योतिषीजी का इन्तजार कर रहे थे। तेजसिंह तथा ऐयार लोग खुशी-खुशी ज्योतिषीजी से मिले। कमला की पालकी उस गुफा के पास पहुँचायी गयी, जिसमें किशोरी और कमलिनी इत्यादि थीं और कहार सब वहाँ से अलग कर दिये गये।

वह गुफा, जिसमें कमलिनी और किशोरी इत्यादि थीं, ऐसी तंग न थी कि उनको किसी तरह की तकलीफ होती, बल्कि वह एक आड़ की जगह में बहुत ही लम्बी-चौड़ी थी और उसमें चाँदना भी बखूबी पहुँचता था। तारासिंह की जुबानी जब किशोरी ने यह सुना कि कमला भी आयी है, तो उससे मिलने के लिए बेचैन हो गयी और जब तक वह पालकी के अन्दर से निकले, तब तक किशोरी स्वयं खोह के बाहर निकल आयी। कमला ने किशोरी को देखा तो बड़े जोश और मुहब्बत से लपकके किशोरी के गले लिपट गयी और किशोरी ने भी बड़े प्रेम से उसे दबा लिया तथा दोनों की आँखों में आँसुओं की बूँदे टपाटप गिरने लगीं। कमलिनी ने दोनों को अलग किया और कमला को अपने गले से लगा लिया, इसके बाद कामिनी, लाडिली और तारा भी बारी-बारी से कमला से मिलीं। उस समय सभों के चेहरे खुशी से दमक रहे थे और सभों के दिल की कली खिली जाती थी। किशोरी, कामिनी, तारा और लाडिली को मालूम हो चुका था कि कमला भूतनाथ की लड़की है और वे सब भूतनाथ से बहुत रंज थीं, मगर कमला की तरफ से किसी का दिल मैला न था, बल्कि कमला को देखने के साथ ही उन पाँचों के दिल में ऐसी मुहब्बत पैदा हो गयी, जैसी सच्चे प्रेमियों के दिल में हुआ करती है। मगर अफसोस कि अभी तक कमला को इस बात की खबर नहीं हुई कि भूतनाथ उसका बाप है, और उसने बड़े-बड़े कसूर किये हैं।

किशोरी, कमलिनी और कमला इत्यादि की मुहब्बत-भरी बातचीत कदापि न पूरी होती, यदि तेजसिंह वहाँ पहुँचकर यह न कहते कि ‘अब तुम लोगों को यहाँ से बहुत जल्द चल देना चाहिए, जिससे सूर्यास्त के पहिले ही रोहतासगढ़ पहुँच जाँय’। पालकियाँ गुफा के आगे रक्खी गयीं, कमलिनी, किशोरी, कामिनी, कमला, लाडिली और तारा उन पर सवार हुईं। कहारों को आकर पालकी उठाने का हुक्म दिया गया और खुशी-खुशी सब कोई रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए।

सूर्य अस्त होने के पहिले ही सवारी रोहतासगढ़ किले के अन्दर दाखिल हो गयी। किले का जनाना भाग आज फिर रौनक हो गया, मगर जनाने महल में पैर रखते ही एक दफे किशोरी का कलेजा दहल उठा, क्योंकि इस समय उसने पुनः अपने को उसी मकान में पाया, जिसमें कुछ दिन पहिले बेबसी की अवस्था में रहकर तरह-तरह की तकलीफें उठा चुकी थी और इसके साथ-ही-साथ उसको लाली और कुन्दन की वे बातें याद आ गयीं। केवल किशोरी ही को नहीं, बल्कि लाडिली को भी वह जमाना याद आ गया, क्योंकि यही लाडिली लाली बनकर उन दिनों इस महल में रहती थी, जिन दिनों किशोरी यहाँ मुसीबत के दिन काट रही थी। लाडिली तो किशोरी को पहिचानती थी, मगर किशोरी को इस बात का गुमान भी न था कि वह लाली वास्तव में यही लाडिली थी, जो आज हमारे महल में दाखिल है।

महल में पैर रखने के साथ ही किशोरी को वे पुरानी बातें याद आ गयीं, और इस सबब से उसके खूबसूरत चेहरे पर थोड़ी देर के लिए उदासी छा गयी, साथ ही पुरानी बातें याद आ जाने के कारण लाडिली की निगाह भी किशोरी के चेहरे पर जा पड़ी। वह उसकी अवस्था देखकर समझ गयी कि इस समय इसे पुरानी बातें याद आ गयी हैं। उन्हीं बातों को खुद भी याद करके इस समय अपने को, और किशोरी को, मालिक की तरह या दूसरे ढंग से इस मकान में आये देखके, और किशोरी के चेहरे पर ध्यान पड़ने से लाडिली को हँसी आ गयी। उसने चाहा कि हँसी रोके, परन्तु रोक न सकी और खिलखिलाकर हँस पड़ी, जिससे किशोरी को ताज्जुब हुआ और उसने लाडिली से पूछा—

किशोरी : क्यों, तुम्हें हँसी कि बात पर आयी?

लाडिली : यों ही हँसी आ गयी।

किशोरी : ऐसा नहीं है, इसमें जरूर कोई भेद है, क्योंकि कई दिनों से हमारा-तुम्हारा साथ है पर इस बीच में व्यर्थ हँसते हुए हमने तुम्हें कभी नहीं देखा। बताओ तो सही क्या बात है?

लाडिली : तुम्हें विचित्र ढंग से घबड़ाए हुए चारों तरफ देखते-देख मुझे हँसी आ गयी।

किशोरी : केवल यही बात नहीं है, जरूर कोई दूसरा सबब भी इसके साथ है।

कमलिनी : मैं समझ गयी! बहन, मुझसे पूछो, मैं बताऊँगी! बेशक लाडिली के हँसने का दूसरा सबब है, जिसे वह शर्म के मारे नहीं कहा चाहती।

किशोरी : (कमलिनी की कलाई पकड़कर) अच्छा बहिन, तुम ही बताओ कि इसका क्या सबब है?

कमलिनी : इसके हँसने का सबब यही है कि जिन दिनों तुम इस मकान में बेबसी और मुसीबत के दिन काट रही थीं, उन दिनों यह लाडिली भी यहाँ रहती थी, और इससे-तुमसे बहुत मेल-मिलाप था।

किशोरी : (ताज्जुब से) तुम भी हँसी करती हो! क्या मैं ऐसी बेवकूफ हूँ, जो महीनों तक इस महल में लाडिली मेरे साथ रहे, और मैं उसे पहिचान न सकूँ।

कमलिनी : (हँसकर) यह तो मैं नहीं कहती कि उन दिनों इस महल में लाडिली अपनी सूरत में थी! मेरा मतलब लाली से है, वास्तव में यह लाडिली उन दिनों लाली बनकर यहाँ रहती थी।

किशोरी : (ताज्जुब से घबराकर और लाडिली का हाथ पकड़कर) हैं—क्या वास्तव में लाली तुम ही थीं!

लाडिली : इसके जवाब में ‘हाँ’ कहते मुझे शर्म मालूम होती है। अफसोस उन दिनों मेरी नीयत आज की तरह साफ़ न थी, क्योंकि मैं दुष्टा मायारानी के आधीन थी। उसे मैं अपनी बड़ी बहिन समझती थी, और उसी की आज्ञानुसार एक काम के लिए यहाँ आयी थी।

किशोरी : ओफ ओह! तब तो आज बड़े-बड़े भेदों का पता लगेगा, जिन्हें याद करके मेरा जी बेचैन हो जाता था, और इस सबब से मैं और भी परेशान थी कि उन भेदों का असल मतलब कुछ मालूम न होता था, अब तो मैं तुमसे बहुत-कुछ पूछूँगी, और तुम्हें बताना पड़ेगा।

कमलिनी : हाँ हाँ, तुम्हें सब-कुछ मालूम हो जायगा, मगर घबराती क्यों हो, इस समय हम लोगों को केवल यही काम है कि ईश्वर को धन्यवाद दें, जिसकी कृपा से हम लोग हजारों दुःख उठाकर ऐसी जगह आ पहुँचे हैं, जहाँ हमारे दुश्मन रहते थे और जिसे अब हम अपना घर समझते हैं।

लाडिली : (किशोरी से) बेशक ऐसा ही है, केवल एक यही बात नहीं और भी कई अद्भुत बातें तुम्हें मालूम होंगी। जरा सब्र करो, सफर की हरारत मिटाओ और आराम करो, जल्दी क्यों करती हो!

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