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चन्द्रकान्ता सन्तति - 2

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8400
आईएसबीएन :978-1-61301-027-3

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चन्द्रकान्ता सन्तति 2 पुस्तक का ई-पुस्तक संस्करण...

आठवाँ बयान

अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहाँ जाकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उसका हाल पीछे लिखेंगे, इस भूतनाथ का कुछ हाल लिखकर हम अपने पाठकों के दिल में एक प्रकार का खुटका पैदा करते हैं।

भूतनाथ कमलिनी से बिदा होकर सीधे काशीजी की तरफ़ नहीं गया, बल्कि मायारानी से मिलने के लिए उसके खास बाग (तिलिस्मी बाग) की तरफ़ रवाना हुआ और दो पहर दिन चढ़ने के पहिले ही बाग के फाटक पर जा पहुँचा। पहरेवाले सिपाहियों में से एक की तरफ़ देखकर बोला, "जल्द इत्तिला कराओ कि भूतनाथ आया है।"इसके जवाब में उस सिपाही ने कहा, "आपके लिए रुकावट नहीं है, आप चले जाइए, जब दूसरे दर्जे के फाटक पर जाइएगा तो लौंडियों से इत्तिला कराइयेगा।"

भूतनाथ बाग के अन्दर चला गया। जब दूसरे दर्जे के फाटक पर पहुँचा तो लौंडियों ने उसके आने की इत्तिला की और वह बहुत जल्द मायारानी के सामने हाजिर किया गया।

माया : कहो भूतनाथ, कुशल से तो हो? तुम्हारे चेहरे पर खुशी की निशानी पायी जाती है, इससे मालूम होता है कि कोई खुशख़बरी लाये हो और तुम्हारे शीघ्र लौट आने का भी यही सबब है। तुम जो चाहो कर सकते हो। हाँ, क्या ख़बर लाये?

भूतनाथ : अब तो मैं बहुत कुछ इनाम लूँगा, क्योंकि वह काम कर आया हूँ, जो सिवा मेरे दूसरा कोई कर ही नहीं सकता था।

माया : बेशक, तुम ऐसे ही हो, भला कहो तो सही क्या काम कर आये?

भूतनाथ : वह बात ऐसी नहीं है कि किसी के सामने कही जाय।

माया : (लौंडियों को चले जाना का इशारा करके) बेशक, मुझसे भूल हुई कि इन सभों के सामने तुमसे खुशी का सबब पूछती थी। हाँ, अब तो सन्नाटा हो गया।

भूतनाथ : आपने अपने पति गोपालसिंह के साथ जो उद्योग किया था, वह तो बिल्कुल ही निष्फल हुआ। मैं अब कमलिनी के पास से चला आ रहा हूँ। उसे मुझ पर पूरा भरोसा और विश्वास है और वह मुझसे अपना कोई भेद नहीं छिपाती। उसकी जुबानी जो कुछ मुझे मालूम हुआ है, उससे जाना जाता है कि गोपालसिंह अभी किसी के सामने अपने को जाहिर नहीं करेगा, बल्कि गुप्त रहकर, आपको तरह-तरह की तकलीफें पहुँचावेगा और अपना बदला लेगा।

माया : (काँपकर) बेशक, वह मुझे तकलीफ देगा। हाय, मैंने दुनिया का सुख कुछ भी नहीं भोगा! ख़ैर, तुम कौन-सी खुशख़बरी सुनाने आये हो सो तो कहो।

भूतनाथ : कह तो रहा हूँ– पर आप स्वयं बीच में टोक देती हैं तो क्या करूँ। हाँ, तो इस समय आपको सताने के लिए बड़ी-बड़ी कार्रवाइयाँ हो रही हैं और रोहतासगढ़ से फौज चली आ रही है, क्योंकि गोपालसिंह और तेजसिंह ने कुमारों की दिलजमई करा दी है कि राजा बीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता को मायारानी ने क़ैद नहीं किया, बल्कि धोखा देने की नीयत से दो आदमीयों को नकली चन्द्रकान्ता और बीरेन्द्रसिंह बनाकर क़ैद किया है। अब कुँअर इन्द्रजीतसिंह के दो ऐयारों को साथ लेकर गोपालसिंह, किशोरी और कामिनी को छुड़ाने के लिए मनोरमा के मकान में गये हैं।

माया : बिना बोले रहा नहीं जाता! मैं न तो कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह या उनके ऐयारों से डरती हूँ और न रोहतासगढ़ की फौज से डरती हूँ, मैं अगर डरती हूँ तो केवल गोपालसिंह से, बल्कि उसके नाम से, क्योंकि मैं उसके साथ बुराई कर चुकी हूँ और वह मेरे पंजे से निकल गया है। ख़ैर, यह ख़बर तो तुमने अच्छी सुनायी कि वह किशोरी और कामिनी को छुड़ाने के लिए मनोरमा के मकान में गया है। मैं आज ही यहाँ से काशीजी की तरफ़ रवाना हो जाऊँगी और जिस तरह होगा उसे गिरफ़्तार करूँगी!

भूतनाथ : नहीं नहीं, अब आप उसे कदापि गिरफ़्तार नहीं कर सकतीं, आप क्या बल्कि आप-सी अगर दस हजार एक साथ हो जायँ तो भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती हैं।

माया : (चिढ़कर) सो क्यों?

भूतनाथ : कमलिनी ने उसे एक ऐसी अनूठी चीज़ दी है कि वह जो चाहे कर सकता है, और आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं।

माया : वह कौन ऐसी अनमोल चीज़ है?

इसके जवाब में भूतनाथ ने उस तिलिस्मी खंजर का हाल और गुण बयान किया, जो कमलिनी ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह को दिया था और कुँअर साहब ने गोपालसिंह को दे दिया था। अभी तक उस खँजर का पूरा हाल मायारानी को मालूम न था, इसलिए उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वह कुछ देर सोचने के बाद बोली–

माया : अगर ऐसा खंजर उसके हाथ लग गया है तो उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता। बस मैं अपनी जिन्दगी से निराश हो गयी। परन्तु मुझे विश्वास नहीं होता कि ऐसा तिलिस्मी खंजर कहीं से कमलिनी के हाथ लगा हो। यह असम्भव है, बल्कि ऐसा खंजर हो ही नहीं सकता। कमलिनी ने तुमसे झूठ कहा होगा।

भूतनाथ : (हँसकर) नहीं नहीं, बल्कि उसी तरह का एक खंजर कमलिनी ने मुझे भी दिया है। (कमर से खंजर निकालकर और हर तरह पर दिखाकर) देखिए यही है।

माया : (ताज्जुब से) हाँ हाँ, अब मुझे याद आया। नागर ने अपना और तुम्हारा हाल बयान किया था तो ऐसे खंजर का ज़िक्र किया था और मैं इस बात को बिल्कुल भूल गयी थी। ख़ैर, तो अब मैं उस पर किसी तरह फतह नहीं पा सकती।

भूतनाथ : नहीं घबड़ाइये मत, उसके लिए भी मैं बन्दोबस्त करके आया हूँ।

माया : वह क्या?

भूतनाथ ने कमलिनीवाली चीठी बटुए में से निकालकर मायारानी के सामने रक्खी, जिसे पढ़ते ही वह खुश हो गयी और बोली, " शाबाश भूतनाथ, तुमने बड़ा ही काम किया! अब तो तुम उस नालायक को मेरे पंजे में इस तरह फँसा सकते हो कि कमलिनी को तुम पर कुछ भी शक न हो।

भूतनाथ : बेशक, ऐसा ही है, मगर इसलिए अब हम लोगों को अपनी राय बदल देनी पड़ेगी अर्थात् पहिले जो यह बात सोची गयी थी कि किशोरी को छुड़ाने के लिए जो कोई वहाँ जायेगा, उसे फँसाते जायँगे सो न करना पड़ेगा।

माया : तुम जैसा कहोगे वैसा ही किया जायगा। बेशक, तुम्हारी अक्ल हम लोगों से तेज़ है। तुम्हारा खयाल बहुत ठीक है, अगर उसे पकड़ने की कोशिश की जायगी तो वह कई आदमियों को मारकर निकल जायगा और फिर कब्जे में न आवेगा और ताज्जुब नहीं कि इसकी ख़बर भी लोगों को हो जाय, जो हमारे लिए बहुत बुरा होगा।

भूतनाथ : हाँ, अस्तु, आप एक चीठी नागर के नाम लिखकर मुझे दीजिए और उसमें केवल इतना ही लिखिए कि किशोरी और कामिनी को निकाल ले जाने वाले से रोक-टोक न करें, बल्कि तरह दे जायँ और उस मकान के तहख़ाने का भेद मुझे बता दें, फिर जब ये दोनों किशोरी और कामिनी को ले जायँगे तो उसके बाद मैं उन्हें धोखा देकर दारोगावाले बँगले में जो नहर के ऊपर है, ले जाकर झट फँसा लूँगा। वहाँ के तहखानों की ताली आप मुझे दे दीजिए। कमलिनी की जुबानी मैंने सुना है कि वहाँ का तहखाना बड़ा ही अनूठा है, इसलिए मैं समझता हूँ कि मेरा काम उस मकान से बखूबी चलेगा। जब मैं गोपालसिंह को वहाँ फँसा लूँगा तो आपको ख़बर कर दूँगा, फिर आप जो चाहे कीजिएगा!

माया : बस बस, तुम्हारी यह राय बहुत ठीक है, अब मुझे निश्चय हो गया कि मेरी मुराद पूरी हो जायगी!

मायारानी ने दारोगावाले बँगले तथा तहख़ाने की ताली भूतनाथ के हवाले करके, उसे वहाँ का भेद बता दिया और भूतनाथ के कहे बमूजिब एक चीठी भी नागर के नाम की लिख दी। दोनों चीज़ें लेकर भूतनाथ वहाँ से रवाना हुआ और काशीजी की तरफ़ तेजी के साथ चल निकला।

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