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चन्द्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

पाँचवाँ बयान

तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी के जाने के बाद कुंवर वीरेन्द्रसिंह इन लोगों के वापस आने के इन्तज़ार में रात भर जागते रहे। ज्यों-ज्यों रात गुज़रती थी कुमार की तबीयत घबराती थी। सवेरा हुआ ही चाहता था जब ये तीनों ऐयार लश्कर में पहुंचे। तेजसिंह की राय हुई कि इस तरह नंग-धड़ंग कुमार के पास चलना चाहिए, आखिर तीनों उसी तरह उनके खेमे में गये।

कुंवर वीरेन्द्रसिंह जाग रहे थे, शमादान जल रहा था, इन तीनों ऐयारों की विचित्र सूरत देखकर हैरान हो गये। पूछा, ‘‘यह क्या हाल है? तेजसिंह ने कहा, ‘‘अभी तो सूरत देख लीजिए, बाकी हाल ज़रा दम ले के कहेंगे।’’

तीनों ऐयारों ने अपने कपड़े मंगवाकर पहने, इतने में साफ सवेरा हो गया, कुमार ने तेजसिंह से पूछा, ‘‘अब बताओ तुम लोग किस बला में फंस गये?’’

तेजसिंह : ऐसा धोखा खाया कि जन्म भर याद करेंगे।

कुमार : वह क्या?

तेजसिंह: जिनके ऊपर आप जान दिये बैठे हैं, जिनकी खोज में हम लोग मारे-मारे फिरते हैं, इसमें तो कोई शक नहीं कि उनका भी प्रेम आपके ऊपर बहुत है, मगर न मालूम इतनी छिपी क्यों फिरती हैं और इसमें इन्होंने क्या फायदा सोचा है?

कुमार : क्या कुछ पता लगा?

तेजसिंह : पता क्या, आंख से देख आये हैं, तभी तो इतनी सजा मिली है। उसके साथ ही एक-से-एक बढ़ के ऐयार हैं, अगर ऐसा जानते तो होशियारी से जाते।

कुमार : भला खुलासा कहो तो कुछ मालूम भी हो।

तेजसिंह ने सब हाल कहा, कुमार सुनकर हंसने लगे और ज्योतिषीजी से बोले, ‘‘आपके रमल को भी उन लोगों ने धोखा दिया?’’

ज्योतिषी : कुछ न पूछिये, सब-की-सब आफत हैं।

कुमार : उन लोगों का खुलासा हाल नहीं मालूम हुआ तो भला इतना ही विचार लेते कि शिवदत्त के ऐयारों से और उन लोगों से कोई वास्ता नहीं बल्कि उन लोगों को इनकी खबर भी न होगी, इस बात को मैं खूब विचार चुका हूँ।

तेजसिंह : इतनी ही खैरियत है।

ज्योतिषी : आज दिन ही को चलकर पता लगायेंगे।

तेजसिंह : तिलिस्म तोड़ने का काम कैसे चलेगा?

कुमार : एक रोज काम बन्द रहेगा तो क्या होगा?

तेजसिंह : इसी से तो मैं कहता हूं कि चन्द्रकान्ता की मुहब्बत आपके दिल से कम हो गई है।

कुमार : कभी नहीं, चन्द्रकान्ता से बढ़कर मैं दुनियां में किसी को नहीं चाहता मगर न मालूम क्या सबब है कि वनकन्या का हाल मालूम करने के लिए भी जी बेचैन रहता है।

तेजसिंह : (हंसकर) खैर, पहले तो पंडित बद्रीनाथ ऐयार को ले जाकर उस खोह में क़ैद करना है फिर दूसरा काम देखेंगे, कहीं ऐसा न हो कि वह छूट के चले दें।

कुमार : आज ही लेकर जाकर छोड़ आओ।

तेजसिंह : हाँ, अभी उनको ले जाता हूँ, वहां रखकर रातों-रात लौट आऊंगा, पन्द्रह कोस का मामला ही क्या है, तब तक देवीसिंह और ज्योतिषीजी वनकन्या की खोज में जायें।

तेजसिंह की राय पक्की ठहरी, वे स्नान-पूजा से छुट्टी पाकर तैयार हुए, खाने की चीज़ों में बेहोशी की दवा मिलाकर बद्रीनाथ को खिलाई और जब वे बेहोश हो गये तब तेजसिंह गट्ठर बांधकर पीठ पर लाद खोह की तरफ रवाना हुए। कुमार ने देवीसिंह और ज्योतिषी को वनकन्या की टोह में भेजा।

तेजसिंह पंडित बद्रीनाथ की गठरी लिये शाम-होते तहखाने पहुंचे। शेर के मुंह में हाथ डाल जुबान खींची और तब दूसरा ताला खोला, मगर दरवाज़ा न खुला। अब तेजसिंह के होश उड़ गये, फिर कोशिश की, लेकिन किवाड़ न खुला। बैठ के सोचने लगे, मगर कुछ समझ में न आया। आखिर लाचार हो बद्रीनाथ की गठरी लादे वापिस हुए।

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