नई पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता चन्द्रकान्तादेवकीनन्दन खत्री
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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण
चौथा बयान
तिलिस्मी खण्डहर में घुसकर पहले वे लोग दालान में गये जहाँ पत्थर के चबूतरे पर पत्थर ही का आदमी सोया हुआ था। कुमार ने इसी जगह से तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाया।
जिस चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया हुआ था उसके सिरहाने की तरफ पाँच हाथ हटकर कुमार ने अपने हाथ से ज़मीन खोदी। गज भर खोदने के बाद एक सफेद पत्थर की चट्टान दिखी जिसमें उठाने के लिए एक मज़बूत लोहे की कड़ी लगी हुई भी दिखाई पड़ी। कड़ी में हाथ डालकर पत्थर उठाकर बाहर किया। तहखाना मालूम हुआ जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी थीं।
तेजसिंह ने मशाल जला ली, उसी की रोशनी में सब कोई नीचे उतरे। खूब खुलासा कोठरी देखी, कहीं गर्द या कूड़े का नामो-निशान नहीं, बीच में संगमरमर पत्थर की खूबसूरत पुतली एक हाथ में काटा दूसरे हाथ में हथौड़ी लिये खड़ी थी।
कुमार ने उसके हाथ से हथौड़ी कांटा लेकर उसी के बाएँ कान में कांटा डाल हथौड़ी से ठोक दी, साथ ही उस पुतली के होंठ हिलने लगे और उसमें से बाजे की सी आवाज़ आने लगी, मालूम होता था मानो वह पुतली गा रही है।
थोड़ी देर तक यही कैफियत रही, एकाएक पुतली के बायें दाहिनें दोनों अंग के दो टुकड़े हो गये उसके पेट में सात-आठ अंगुल का छोटा-सा गुलाब का पेड़ जिसमें कई फूल भी लगे हुए थे और डाल में एक ताली लटक रही थी, निकला साथ ही इसके एक छोटा-सा ताबें का पत्र भी मिला जिस पर लिखा हुआ था। कुमार ने उसे पढ़ा।
इस पेड़ को हमारे यहाँ के वैद्य अजायबदत्त ने मसाले से बनाया है। इन फूलों से बराबर गुलाब की खुशबू निकल कर दूर-दूर तक फैला करेगी। दरबार में रखने के लिए यह एक नायाब पौधा सौगात तौर पर वैद्यजी ने तुम्हारे वास्ते रक्खा है।
इसको पढ़कर कुमार बहुत खुश हुए और ज्योतिषी जी की तरफ देख कर बोले, ‘‘यह खुशबू अच्छी चीज़ मुझको मिली, देखिए, इस वक़्त भी फूलों में से कैसी अच्छी खुशबू निकल कर फैल रही है।
तेजसिंह : इसमें तो कोई शक नहीं।
देवीसिंह : एक-से-एक कारीगरी दिखाई पड़ती है।
अभी कुमार बात कर रहे थे कि कोठरी के एक तरफ का दरवाज़ा खुल गया। अँधेरी कोठरी में अभी तक इन लोगों ने कोई दरवाज़ा या निशान नहीं देखा था, पर इस दरवाज़े के खुलने से कोठरी में बखूबी रोशनी पहुँची। मशाल बुझा दी गई और ये लोग उस दरवाज़े की राह से बाहर हुए। एक छोटा-सा खूबसूरत बाग देखा। यह बाग वही था जिसमें चपला आई थी और जिसका हाल हम दूसरे हिस्से में लिख चुकें हैं।
बमूजिब लिखे तिलिस्मी किताब के, कुमार ने उस ताली में एक रस्सी बाँधी जो पुतली के पेट से निकली थी। रस्सी हाथ में थाम ताली को ज़मीन में घसीटते हुए कुमार बाग में घुसने लगे। हर एक रविशों और क्यारियों में घूमते हुए एक फौहारे के पास ताली ज़मीन से चिपक गई। उसी जगह ये लोग भी ठहर गये। कुमार के कहे मुताबिक सभी ने उस ज़मीन को खोदना शुरू किया, दो-तीन हाथ खोदा था कि ज्योतिषीजी ने कहा, ‘‘अब पहर भर दिन बाकी रह गया, तिलिस्म से बाहर होना चाहिए।
कुमार ने ताली उठा ली और चारों आदमी कोठरी की राह से होते हुए ऊपर चढ़ के उस दालान में पहुँचे जहाँ चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया हुआ था, उसके सिरहाने की तरफ ज़मीन खोद कर जो पत्थर की चट्टान निकली थी उसी को उलटकर तहखाने उलटी तरफ पर ताला भी बना हुआ था। उसी ताली से जो पुतली के पेट से निकली थी यह ताला भी बन्द कर दिया।
चारों आदमी खण्डहर से निकल कर कुमार के खेमें में आये। थोड़ी देर आराम कर लेने के बाद तेजसिंह, देवीसिंह, ज्योतिषीजी कुमार से कह के वनकन्या की टोह में जंगल की तरफ रवाना हुए। इस समय दिन अनुमान दो घंटे बाकी होगा।
ये तीनों ऐयार थोड़ी ही दूर गये होंगे कि एक नकाबपोश जाता हुआ दिखा, देवीसिंह वगैरह पेड़ की आड़ दिए उसी के पीछे-पीछे रवाना हुए। वह सवार कुछ पश्चिम हटता हुआ सीधे चुनार की तरफ जा रहा था। कई दफे रास्ते में रुका, पीछे फिर कर देखा और फिर आगे बढ़ा।
सूरज अस्त हो गया। अँधेरी रात ने अपना दखल कर लिया, घना जंगल अँधेरी रात में डरावना मालूम होने लगा। अब ये तीनों ऐयार सूखे पत्तों की आवाज़ पर जो टापों के पड़ने से होती थी, जाने लगे। घंटे भर रात जाते-जाते उस जंगल के किनारे पहुँचे।
नकाबपोश सवार घोड़े पर से उतर पड़ा। उस जगह बहुत से घोड़े बंधे थे। वहीं पर अपना घोड़ा भी बाँध दिया, एक तरफ घास का ढेर लगा हुआ था, उसमें से घास उठाकर घोड़े के आगे रख दी और वहाँ से पैदल रवाना हुआ।
उस नकाबपोश के पीछे-पीछे चलते हुए ये तीनों ऐयार पहर रात बीते गंगा किनारे पहुँचे। दूर से जल में दो रोशनियाँ दिखाई पड़ी, मालूम होता था जैसे चन्द्रमा गंगाजी में उतर आये हैं। सफेद रोशनी जल पर फैल रही थी। जब पास पहुँचे, देखा कि एक सजी हुई नाव पर कई खूबसूरत औरतें बैठी हैं, बीच में ऊँची गद्दी पर एक कमसिन नाज़ुक औरत जिसका रौआब देखने वालों पर छा रहा है बैठी है, चाँद-सा चेहरा दूर से चमक रहा है। दोनों तरफ दो महताब जल रहे हैं।
नकाबपोश ने किनारे पहुँचकर ज़ोर से सीटी बजाई, साथ ही इस नाव में से भी इस तरह सीटी की आवाज़ आई जैसे किसी ने जवाब दिया हो। उन कई औरतों में जो उस नाव पर बैठी थीं दो औरतें उठ खड़ी हुईं तथा नीचे उतर कर एक डोंगी उस नाव के साथ बँधी हुई थी, खोल कर किनारे ला नकाबपोश को उस पर चढ़ा ले गईं।
अब ये तीनो ऐयार आपस में बातें करने लगे–
तेजसिंह : वाह, इस नाव के छूटते हुए दो महताबों के बीच ये औरतें कैसी भली मालूम होती हैं?
ज्योतिषी : परियों का अखाड़ा मालूम होता है, चलो तैर के उनके पास चलें।
देवीसिंह : ज्योतिषीजी, कहीं ऐसा न हो कि परियाँ आपको उड़ा ले जायें, फिर हमारी मण्डली में एक दोस्त कम हो जाएगा।
तेजसिंह : मैं जहाँ तक खयाल करता हूँ यह उन्हीं लोगों की मंडली है जिन्हें कुमार ने देखा था।
देवीसिंह : इसमें तो कोई शक नहीं है।
ज्योतिषी : तो तैर के चलते क्यों नहीं? तुम तो जल से ऐसा डरते हो जैसे कोई बुढ्ढा आफियूनी डरता हो।
देवीसिंह: फिर तुम्हारे साथ आने से क्या फायदा हुआ? तुम्हारी तो बड़ी तारीफ सुनते थे कि ज्योतिषीजी ऐसे हैं, वैसे हैं, पहिया हैं, चर्खें हैं, मगर कुछ नहीं अदनी सी मंडली का पता नहीं लगा सकते।
ज्योतिषी : मैं क्या खाक बताऊँ, वे लोग तो मुझसे भी ज़्यादा उस्ताद मालूम होती हैं। सभी ने अपने-अपने नाम ही बदल दिये हैं, असल नाम का पता लगाना चाहते हैं तो अजीब-अजीब नामों का पता लगता है। किसी का नाम वियोगिनी, किसी का नाम योगिनी, किसी का नाम डाकिनी। भला बताइये, क्या मैं मान लूँ कि इन लोगों का यही नाम है?
तेजसिंह : तो इन लोगों ने अपना नाम क्यों बदल दिया?
ज्योतिषी : हम लोगों को उल्लू बनाने के लिए।
देवीसिंह : अच्छा नाम जाने दीजिए, इनके मकान का पता लगाइए।
ज्योतिषी : मकान के बारे में जब रमल से दरियाफ्त करते हैं तो मालूम होता है कि लोगों का मकान जल में है, तो क्या हम समझ लें कि ये लोग जलवासी अर्थात् मछली हैं?
तेजसिंह : यह तो ठीक है, देखिए जलवासी हैं कि नहीं?
ज्योतिषी : भाई सुनो, रमल के काम में चारों पदार्थ-हवा, पानी, मिट्टी और आग हमेशा विघ्न डालते हैं। अगर कोई आदमी ज्योतिषी या रम्माल को छकना चाहे तो इन चारों के हेर-फेर से खूब ही छका सकता है। ज्योतिषी बेचारा खाक न कर सके, पोथी-पत्रा बेकार का बोझ हो जाये।
तेजसिंह : यह कैसे? खुलासा बताओ तो कुछ हम लोग भी समझें, वक़्त पर काम ही आवेगा।
ज्योतिषी : बता देंगे, इस वक़्त जिस काम को आये हो वह करो। चलो तैरकर चलें।
तेजसिंह : चलो।
ये तीनों ऐयार तैर कर नाव के पास जाने लगे। ऐयारी का बटुआ कमर में बाँध कपड़ा-लत्ता किनारे रख जल में उतर गये। मगर दो ही चार हाथ गये होंगे कि पीछे से सीटी की आवाज़ आई, साथ ही नाव पर जो महताब जल रहे थे बुझ गये, जैसे किसी ने उन्हें जल्दी से जल में फेंक दिया हो। अब बिल्कुल अँधेरा हो गया, नाव नज़रों से छिप गई। देवीसिंह ने कहा, ‘‘लीजिए चलिए तैर के!’’
तेजसिंह : ये सब बड़ी शैतान मालूम होती हैं।
ज्योतिषी : मैंने तो पहले ही कहा कि ये सब-की-सब आफत हैं, अब आपकों मालूम हुआ न कि मैं सच कहता था, इन लोगों ने हमारे नजूम को मिट्टी कर दिया है।
देवीसिंह : चलिये किनारे, इन्होंने तो बेढव छकाया, मालूम होता है किनारे पर कोई पहरे वाला खड़ा देखता था। जब हम लोग तैर कर जाने लगे उसने सीटी बजाई, बस अँधेरा हो गया, पहले ही से इशारा बँधा हुआ था।
ज्योतिषी : इस नालायक को यह क्या सूझी कि हम लोग पानी में उतर चुके तब सीटी बजाई, पहले बजाता तो हम लोग क्यों भींगते?
ये तीनों ऐयार लौटकर किनारे आये, पहनने के वास्ते अपने कपड़े खोजते हैं तो मिलते नहीं।
देवीसिंह : ज्योतिषीजी पालागी, लीजिए कपड़े भी गायब हो गये। हाय, इस वक़्त अगर इन लोगों में से किसी को पाऊँ तो कच्चा ही चबा जाऊँ?
तेजसिंह : हम को उन लोगों की तारीफ करेंगे। खूब ऐयारी की।
देवीसिंह : हाँ हाँ, खूब तारीफ कीजिये जिससे उन लोगों में से अगर कोई सुनता हो तो अब भी आप पर रहम करे और आगे न सतावे।
ज्योतिषी : अब क्या सताना बाकी रह गया? कपड़े तक तो उतरवा लिए।
तेजसिंह : चलिए, अब लश्कर में चलें, इस वक़्त और कुछ करते न बन पड़ेगा। आधी रात जा चुकी होगी जब ये लोग ऐयारी के सताये, बदन से नंगे-धड़ंगे काँपते-कलपते लश्कर की तरफ रवाना हुए।
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