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चन्द्रहार (नाटक)
चन्द्रहार (नाटक)
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2014 |
पृष्ठ :222
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 8394
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आईएसबीएन :978-1-61301-149 |
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9 पाठकों को प्रिय
336 पाठक हैं
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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है
जालपा—कुछ नहीं, मैंने यों ही पूछा था। अच्छा, अब सो जाओ। चिंता मत करो।
रमानाथ—चिंता काहे की! नींद आ रही है।
(दोनों फिर झूठ– मूठ सोने का अभिनय करते हैं। जालपा को तो नींद आ जाती है, पर रमानाथ फिर उधेड़– बुन में लग जाता है। परदा गिरता है।)
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पुस्तक का नाम
चन्द्रहार (नाटक)
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