नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक) चन्द्रहार (नाटक)प्रेमचन्द
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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है
जालपा—कुछ नहीं, मैंने यों ही पूछा था। अच्छा, अब सो जाओ। चिंता मत करो।
रमानाथ—चिंता काहे की! नींद आ रही है।
(दोनों फिर झूठ– मूठ सोने का अभिनय करते हैं। जालपा को तो नींद आ जाती है, पर रमानाथ फिर उधेड़– बुन में लग जाता है। परदा गिरता है।)
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