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भूतनाथ - खण्ड 5

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :277
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8364
आईएसबीएन :978-1-61301-022-8

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भूतनाथ - खण्ड 5 पुस्तक का ई-संस्करण

सातवाँ बयान


रात आधी से ज्यादा जा चुकी है। काले-काले बादलों ने आकाश को एकदम ढक लिया है इस बात का पता भी नहीं लगता कि चन्द्रदेव आकाश में हैं या नहीं। रह-रह कर बिजली चमकती है और उसकी तड़प कानों को बहरा कर देती है। ठंडी हवा के झोंके बतला रहे हैं कि पास ही में कहीं पानी बरस चुका था या बरस रहा है और यहाँ भी शीघ्र ही बरसना चाहता है।

उस पहाड़ी के लगभग कोस भर उत्तर में जिस पर इन्द्रदेव की कैलाश-भवन नाम की सुन्दर इमारत है, एकदम ऊँची पहाड़ियों का लम्बा सिलसिला है जो दूर तक चला गया है।

ऐसी रात और बदली के समय इस पहाड़ी पर चढ़ना बड़े साहस और जीवट का काम है क्योंकि जंगली जानवरों का डर चाहे न भी हो तो भी साँप-बिच्छू आदि का डर किसी तरह पर कम नहीं है और चिकने तथा काई लगे हुए पत्थर के ढोकों पर से पैर फिसल कर नीचे गड्ढे में जा गिरना कुछ असम्भव नहीं, फिर भी हम इस समय पाँच आदमियों की एक छोटी मंडली को इस बीहड़ पहाड़ी रास्ते से दक्खिन की तरफ जाते हुए देख रहे हैं।

अन्धकार के कारण हाथ को हाथ नहीं दिखाई पड़ता, फिर भी जब-जब बिजली चमकती है तो हम देखते हैं कि इनमें से हर एक के मुँह पर नकाब पड़ी हुई है तथा बदन काले कपड़ों से अच्छी तरह ढंका हुआ है। बदन पर किस तरह के हर्बे सजे हुए हैं यह तो मालूम नहीं हो सकता पर हर एक के हाथ में एक-एक लम्बा बरछा है जिससे इस बीहड़ रास्ते पर चलने में कुछ मदद मिल सकती है। इनमें से एक आदमी तो आगे है और बाकी के चार उसके पीछे-पीछे जा रहे हैं। जब-जब बिजली चमकती है वे सब रुक जाते हैं और अपने चारों तरफ आहट लेकर पुन: आगे बढ़ते हैं।

लगभग आधे घण्टे तक वे सब इसी तरह बढ़ते गये और तब बिजली की तेज चमक में उन्होंने अपने सामने की पहाड़ी पर दूर से कैलाश-भवन की सुन्दर इमारत की एक झलक देखी। उस समय आगे जाने वाला आदमी रुक गया और हलकी आवाज में पीछे की तरफ देख कर उसने कहा- ‘‘रामू, कैलाश-भवन तो आ गया। सामने वाला मैदान पार करते ही हम लोग वहाँ पहुँच जायेंगे।’’ पीछे से एक आदमी जिसे रामू के नाम से सम्बोधित किया गया था आगे बढ़ आया और बोला, ‘‘जी हाँ, अब आगे बढ़ना उचित नहीं है। वह स्थान जिसका पता दिया गया है इसी तरफ कहीं होना चाहिए, मगर अंधेरे में उस जगह को खोजना ही बड़ा कठिन होगा!’’

वे पाँचों आदमी इकट्ठे हो गये और कुछ देर तक आपस में सलाह करते रहे। इसके बाद वे सब अलग-अलग हो गये और अंधेरे में ही न जाने किस चीज या जगह की खोज करते हुए पाँचों पाँच तरफ फैल गये। इस समय हवा बन्द हो गई थी और हलकी-हलकी बूँदे गिरने लग गई थीं। अपने साथियों की तरह इस मंडली का सरदार भी अलग हो गया और चारों तरफ घूम-घूम कर किसी बात की आहट या टोह लेने लगा।

परन्तु जब पानी बरसना आरम्भ हो गया और बिजली का चमकना बन्द हो जाने के कारण कुछ पता लगना लगभग असम्भव हो गया तो उसने अपना काम होने की आशा छोड़ दी और कोई आड़ की जगह तलाश करने लगा जहाँ रुक कर वह और उसके साथी पानी के थमने की राह देख सकें। इधर-उधर घूमता और अपने बरछे का सहारा लेता हुआ वह कुछ निचाई तक उतर आया और तब पत्थर के एक बड़े ढोंके की आड़ में कुछ विश्राम लेने की नीयत से खड़ा हो गया।

उसे खड़े हुए कुछ ही देर बीती होगी कि उसको अपने बाई तरफ कुछ दूरी पर कोई आहट लगी। उसे किसी जंगली जानवर के होने का गुमान हुआ और इस लिहाज से उसने अपने बरछे को सम्भाल कर पकड़ा और कुछ दाहिनी तरफ हट गया पर उसी समय आवाज के ढंग से वह समझ गया कि यह दो आदमियों के बहुत ही धीरे-धीरे बात करने की आवाज है।

वह यह समझते ही चौकन्ना हो गया और बड़ी होशियारी से कान लगा कर सुनने लगा। बात करने वाले यद्यपि दूर न थे पर बहुत ही धीमे स्वर में बात कर रहे थे, दूसरे पानी की टपटप भी बाधा पहुँचा रही थी जिससे साफ-साफ तो सुनाई न पड़ा पर दो-चार टूटे-फूटे शब्द कान में जरूर गए- ‘‘....के लिए....इन्द्रदेव.... की मौत....के काबू.... मेरी जान।’’

शब्द टूटे-फूटे और बेजोड़ थे पर जान पड़ता है कि सुनने वाले ने उनका मतलब समझ लिया क्योंकि वह आहट बचाता हुआ उन लोगों की तरफ कुछ और धसक गया पर फिर कुछ आवाज न आई और अन्दाज से मालूम हुआ कि वे बात करने वाले कहीं दूसरी जगह चले गए, या पास ही की किसी गुफा में घुस गये हैं।

यह आदमी जिसका नाम जब तक कि उसका असल नाम और हाल न मालूम हुआ हो घनश्याम रख देते हैं, कुछ देर तक तो रुका रहा पर फिर न जाने क्या सोच कर आगे बढ़ा और बहुत धीरे-धीरे कदम रखता हुआ उसी तरफ चला जिधर से आहट आई थी। उस बड़े पहाड़ी ढोंके के बगल घूमते ही गुफा के मुहाने तरह एक काला स्थान दिखाई पड़ा और अन्दाज से उसने समझा कि हो न हो यह किसी खोह का मुँह है और इसी के अन्दर वे लोग गये हैं।

वह मुहाने के पास ही चुपचाप खड़ा हो गया और आहट लेने लगा कुछ देर बाद उसे मालूम हुआ कि वह वहाँ अकेला नहीं है बल्कि और भी एक आदमी उस जगह मौजूद है। घनश्याम ने धीरे से चुटकी बजाई और जवाब में तीन बार चुटकी की आवाज सुनकर समझ गया कि उसका साथी रामू भी पास ही में मौजूद है। यह जान उसे कुछ इत्मीनान हो गया और वह कुछ बेखटके होकर गौर के साथ देखने लगा कि गुफा के अन्दर से कौन निकलता है या क्या आवाज आती है।

यकायक अन्दर की तरफ कुछ रोशनी मालूम हुई और वह धीरे-धीरे बढ़ने लगी, जिससे मालूम हुआ कि कोई आदमी रोशनी को लिए बाहर को आ रहा है। घनश्याम और रामू चौकन्ने हो गए पर फिर भी कौतूहल ने उन्हें हटने न दिया और वे देखने लगे कि किसकी सूरत दिखाई पड़ती है, अन्दर का उजाला बढ़ने लगा, कुछ ही देर बाद मालूम हुआ कि वह गुफा जिसका मुहाना तो बहुत तंग और नीचा है पर जो अन्दर से बहुत खुलासा चौड़ी और लम्बी है कुछ ही दूर जाकर दाहिनी तरफ को घूम गई है और उधर ही से रोशनी भी आ रही है, साथ ही यह भी दिखाई पड़ा कि उस मोड़ के पास ही दो आदमी दीवार के साथ चिपके खड़े हैं जिनके बदन काले कपड़े और नकाब से बिल्कुल ढँके हैं और जिनमें से एक के हाथ में एक तेज छुरा चमक रहा है।

रोशनी आते देख ये दोनों होशियार हो गये और रंग-ढंग से घनश्याम ने समझ लिया कि अब शीघ्र ही इस गुफा में कोई भयानक घटना होने वाली है। पल-पल में रोशनी बढ़ने लगी और साथ ही आने वाले के पैरों की आहट भी सुनाई पड़ने लगी। जिस आदमी के हाथ में छुरा था उसने अपना हाथ ऊँचा किया और साथ ही वह आदमी भी मोड़ घूम कर सामने हुआ जिसके हाथ में रोशनी थी। छुरी वाले ने छुरी मारने को जोर से हाथ बढ़ाया पर उसी समय उसका हाथ रुक गया और उसके मुँह से एक चीख की आवाज निकल पड़ी।

हमारे घनश्याम और उसके साथी की भी डर के मारे अजीब हालत हो गई। उन दोनों ने देखा कि रोशनी लिये जो सामने खड़ा हुआ है वह कोई आदमी नहीं बल्कि हड्डियों का एक खौफनाक ढाँचा है, जिसके बिना माँस और चमड़े वाले मुँह के दाँत भयानक हँसी हँस रहे थे और आँखों के काले गड़हे मानो देखने वाले की हँसी उड़ा रहे थे।

यह एक ऐसा डरावना दृश्य था जिसने इन लोगों के रोंगटे खड़े कर दिये और खास कर वह आदमी तो जो कि छुरी से उस पर वार करने वाला था एकदम ही काँप गया और छुरी फेंक दोनों हाथों से अपना मुँह ढाँप पीछे को भागा। उसके साथी ने भी एक चीख मारी और उसी के पीछे बाहर की तरफ भागा। उसी समय ऐसा मालूम हुआ मानो वह हड्डियों का ढाँचा विकट रूप से हँसा क्योंकि भयानक और डरावनी हँसी से गुफा गूँज उठी और वह आवाज दूर-दूर तक फैल गई। भागने वाले दम छोड़ कर भागे और उसी समय आसेब के हाथ का चिराग जमीन पर गिर कर फूट गया जिससे चारों तरफ पुन: अन्धकार छा गया।

यद्यपि घनश्याम और रामू पर भी उस भयानक नर-कंकाल ने कम असर न किया पर ये दोनों दिलावर और बहादुर थे अतएव इन्होंने अपने होशहवास ठिकाने रक्खे। जैसे ही वे दोनों भागने वाले इनके पास पहुँचे, दोनों ने एक-एक आदमी को पकड़ लिया, उन दोनों की घबराहट और भी बढ़ गई और डर के मारे वे बदहवास हो गये पर घनश्याम और रामू ने इस बात का कुछ भी खयाल न किया। दोनों के पास बेहोशी की दवा मौजूद थी जिसकी सहायता से दोनों ने अपने-अपने कैदी को बेहोश कर दिया और तब उनको उठा कर वे भागे। पानी जो अब तक धीरे-धीरे गिर रहा था अब यकायक तेज हुआ और मूसलाधार होकर बरसने लगा पर इन्होंने इसका कुछ भी खयाल न किया।

लुढ़कते, गिरते, उठते और भीगते हुए दोनों आदमी उन दोनों को पीठ पर लादे पहाड़ी के नीचे उतर आये। यहाँ एक पेड़ के नीचे खड़े होकर घनश्याम ने जफील बजाई। तुरन्त ही कुछ दूर से उसका जवाब मिला और थोड़ी ही देर बाद घनश्याम के तीनों साथी भी वहाँ आ पहुँचे। सभों में जल्दी-जल्दी कुछ बात हुई और तब आगे घनश्याम और उसके पीछे दो-दो आदमी एक-एक बेहोश को उठाये हुए तेजी के साथ मूसलाधार पानी में भीगते हुए शिवदत्त गढ़ की तरफ रवाना हो गए।

इनके जाने के कुछ ही देर बाद एक दूसरा आदमी उस जगह जा पहुँचा। इसके हाथ में एक चोर लालटेन थी जिसकी रोशनी में इसने गौर से चारों तरफ देखा और तब जमीन पर पड़े हुए निशानों पर गौर करके निश्चय कर लिया कि ये लोग शिवगढ़ की तरफ गये हैं। यह जान उसने एक लम्बी साँस खींची और कहा। मुझे थोड़ी देर हो गई जिससे काम बिगड़ गया, पर खैर कोई हर्ज नहीं- क्या कोई भूतनाथ से भी भाग कर बच सकता है।’’

यह नया आने वाला आदमी वास्तव में भूतनाथ था जो बहुत देर तक उसी जगह घूमता हुआ न जाने क्या-क्या सोचता रहा और तब मन ही मन यह कह कर कि ‘इस समय पीछा करना फजूल है’ बरसते पानी और बीहड़ रास्ते का कुछ भी खयाल न कर कैलाश-भवन की तरफ रवाना हुआ।

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