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भूतनाथ - खण्ड 5

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :277
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8364
आईएसबीएन :978-1-61301-022-8

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भूतनाथ - खण्ड 5 पुस्तक का ई-संस्करण

तीसरा बयान


पौ फटने के पहिले ही भूतनाथ उस कमेटी वाले उस स्थान से दूर निकल गया। यद्यपि उसके साथियों के भी बदन पर हलके-हलके कई जख्म लग चुके थे पर उसे इनकी परवाह न थी और वह इन्दिरा को छुड़ाने की फिक्र में था जिसके दारोगा साहब के घर में होने की खबर उसके शागिर्द ने उसे दी थी।

एक हिफाजत की जगह में पहुँच भूतनाथ रुका और अपना जिरह और फौलादी कवच-आदि उतार अपने हाथ-मुंह धोए तथा कपड़े बदले। इसके बाद वह कलमदान और अन्य कागजात जो उस सभा से लूट लाया था अपने शागिर्दों के सुपुर्द कर बहुत हिफाजत के साथ सम्हाल कर रखने की ताकीद कर पुन: घोड़े पर सवार हुआ और जमानिया की तरफ रवाना हुआ।

जिस समय वह दारोगा के शैतान की आँत की तरह पेचीले और आलीशान मकान के पास पहुँचा उस समय सुबह हो चुकी थी और आदमियों की आवाज भी शुरू हो गई थी जिस पर खयाल कर भूतनाथ ने बेचैनी के साथ कहा, ‘‘सूर्यदेव मेरे काम में बाधा डालना चाहते हैं।’’

भूतनाथ को देखते ही उसका वह साथी जिसे उसने इस मकान पर निगाह रखने के लिए सफर के शुरू में भेज दिया था और जो अब तक न जाने कहाँ छिपा था उस जगह पहुँचा। गुप्त इशारे से उसने अपने को भूतनाथ पर प्रकट किया और तब पूछा, ‘‘गुरुजी, वह काम हो गया? जवाब में भूतनाथ ने थोड़े में सब हाल और सभा को लूटने का किस्सा बयान किया और तब कहा, सर्यू को लेकर इन्द्रदेव तो निकल गये, अब इन्दिरा को छुड़ाना बाकी रह गया।

यह सुन उसके शागिर्द ने कहा, ‘‘उसका उपाय भी मैं ठीक कर चुका हूँ। इन्दिरा जिस जगह कैद की गई है सो मुझे मालूम है और किस तरह वहाँ पहुँचेंगे सो भी प्रबन्ध हो चुका है, आप मेरे साथ आइये। इसके घड़ी भर के बाद हम एक पालकी को दारोगा साहब के मकान की तरफ आते देखते हैं।

यह पालकी दरवाजे पर पहुँचकर रुकी और उसके अन्दर से सफेद मुड़ासे और अचकन आदि पहने एक आदमी उतरा जिसकी आकृति बता रही थी कि वह वैद्य है। उसके आते ही दरवाजे पर के नौकरों में से एक ने आगे बढ़ कर उसकी अगवानी की और कहा, ‘‘आइये-आइये हरीजी, दारोगा साहब बड़ी बेचैनी के साथ आपकी राह देख रहे हैं।’’

हरीजी (वैद्य) ने पूछा, ‘‘क्यों क्या बात है जो इतनी सुबह-सुबह की बुलाहट हुई?’’ जिसके जवाब में उस आदमी ने कहा, ‘‘वे छत से नीचे गिर कर बहुत चुटीले हो गये हैं।’’ और फिर इस तरह घूम कर मकान के भीतर की तरफ चल पड़ा कि वैद्यराज को और कुछ पूछने का मौका ही न मिला। वे उसके पीछे-पीछे चल पड़े और उनकी दवाओं की पेटी उठाये एक कहार उनके साथ हो लिया।

एक छोटी कोठरी में मसहरी के ऊपर पड़े हुए दारोगा साहब कराह रहे थे। उनके सिर और बदन में जगह-जगह पट्टियाँ बंधी हुई थीं जो खून से तर हो रही थीं और वे बहुत ही कमजोर और बदहवास हो रहे थे। जिस समय वैद्यजी को लिए उनका नौकर पहुँचा उस समय केवल एक लौंडी धीरे-धीरे पंखा झल रही थी जो इन लोगों को आते देख कोठरी के बाहर निकल गई। वैद्यजी के लिए एक चौकी रख दी गई और दारोगा ने रोनी आवाज में अपना हाल सुनाना शुरू किया। वह कहार जो वैद्यजी की दवा की पेटी उठा लाया था बक्स वहाँ रख बाहर निकल गया और नौकर ने दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया। मरीज और वैद्य का साथ छोड़ हम इस कहार के साथ चलते और देखते हैं कि वह अब कहाँ जाता या क्या करता है।

दारोगा साहब की कोठरी के बाहर आ उस कहार ने एक दालान पार किया और तब रुक कर खड़ा हो गया। यहाँ पर सन्नाटा था और कहीं कोई आदमी दिखाई नहीं पड़ता था अस्तु अपने चारों तरफ किसी को न देख वह फुर्ती के साथ बगल की एक कोठरी में जा घुसा और वहाँ से बढ़ एक लम्बी दालान पार कर बिल्कुल सन्नाटा था और ऐसा मालूम होता था मानों इधर कोई रहता ही नहीं पर वास्तव में यह बात नहीं थी और दारोगा के विचित्र मकान का वही हिस्सा था जो गुप्त रूप से कैदियों को रखने के काम में आता था जिससे हमारे पाठक पहिले भी कई बार आ चुके हैं।

यहाँ पहुँच उस आदमी ने अपने बटुए से कुछ सामान निकाला और एक रुमाल किसी अर्क से तर कर अपने चेहरे पर फेरा जिसके साथ ही बनावटी रंग छूट गया और भूतनाथ की सूरत दिखाई पड़ने लगी। भूतनाथ ने एक नकाब अपने चेहरे पर लगाई और कुछ औजार निकाल पास ही के एक दरवाजे में लगे ताले को खोला। दरवाजा खुलने पर नीचे उतरने के लिए सीढ़िया नज़र आई।भूतनाथ बेधड़क नीचे उतर गया। पुन: एक कोठरी मिली जहाँ से फिर सीढ़ियों का सिलसिला नीचे को गया हुआ था।

भूतनाथ ने इसे भी तय किया और तब एक दालान में पहुँचा जिसमें चिराग की रोशनी हो रही थी। बगल में एक कोठरी थी जिसमें लोहे का छड़दार जंगला और दरवाजा लगा हुआ था।

अपने औजारों की मदद से भूतनाथ ने इसके ताले को भी खोला और तब सामने ही जमीन पर बेचारी कमसिन इन्दिरा को पड़े सिसक-सिसक कर रोते हुए पाया। एकाएक नकाबपोश को सामने आते देख इन्दिरा डर गई पर भूतनाथ ने उसे दिलासा दिया और अपना परिचय देकर ढांढस बंधाया, ज्यादा बातचीत का समय न था अस्तु भूतनाथ ने इन्दिरा को गोद में उठा लिया और उस जगह से बाहर ले आया।

सीढ़ियों का सिलसिला तय किया और ऊपरी मंजिल में पहुँचा जहाँ से उसने से उस मकान के बाहर का रास्ता लिया, सदर दरवाजे का नहीं बल्कि एक दूसरे ही चोर दरवाजे का जिसका हाल उसे मालूम था। दारोगा ने अपने सुभीते के लिए इस मकान में आने-जाने के लिए कई गुप्त रास्ते बनवा रक्खे थे जिनमें से एक की राह भूतनाथ इन्दिरा को लिए सहज ही में बाहर हो गया और तब मैदान की तरफ बढ़ा। एकान्त स्थान में भूतनाथ का वह शागिर्द तथा एक दूसरा आदमी घोड़ा लिए मौजूद था।

भूतनाथ ने संक्षेप में इन्दिरा को पाने का हाल सुनाया और तब यह कह कर कि ‘उस कहार को होश में लाकर छोड़ देना जिसकी सूरत बन मैंने काम निकाला है’ घोड़े पर जा बैठा। इन्दिरा को गोद में बिठा लिया और उन आदमियों से और भी कुछ बातें कर एक तरफ घोड़ा छोड़ दिया।

कई कोस चले जाने के बाद भूतनाथ एक ऐसे स्थान पर पहुँचा जहाँ एक छोटी-सी नदी थी जिसके किनारे पर ही भूतनाथ का अड्डा भी था और उसके कई शागिर्द बराबर मौजूद रहा करते थे। जहाँ इन्दिरा को उतार कर उसे कुछ जलपान कराया और खुद भी आराम किया। इसी जगह उसके वे पहिले आदमी भी मौजूद थे जिनसे लेकर भूतनाथ ने वे चीजें जो सभी से लूटी थीं पुन: अपने कब्जे में कर लीं और उनकी गठरी अपने साथ रख ली।

दो घण्टे बाद पुन: सफर शुरू हुआ और अबकी कई घण्टे चल पुन: एक दूसरे अड्डे पर पहुँच कर भूतनाथ ने दम लिया। यहाँ पर भी उसके कई शागिर्द मौजूद थे जिन्होंने बात की बात में सब तरह का प्रबन्ध कर दिया। स्नान ध्यान और भोजन इत्यादि से छुट्टी पा भूतनाथ ने इन्दिरा को तो आराम करने के लिए एक तरफ लेट लिया और स्वयं उन चीजों की जाँच में लगा जिन्हें वह सभा से लूट लाया था।

जो कलमदान सब आफतों की जड़ था और जिसे दामोदरसिंह ने इन्दिरा की माँ सर्यू को दिया था उसे तो सभापति के सामने से ही भूतनाथ ने उठा लिया था पर उसके अलावे और भी बहुत सी बहुत से कागज-पत्र उठा लाया था जिन्हें उसने इस समय जांचना-पढ़ना और नकल करना शुरू किया। हम नहीं कह सकते कि उन कागजों से भूतनाथ को क्या-क्या बातें मालूम हुईं या किन गुप्त भेदों का उसे पता लगा पर समय-समय पर उसकी भावभंगी देखने से यह अवश्य मालूम होता था कि कुछ बहुत ही विचित्र और आश्चर्यजनक बातें उन कागजों से प्रकट हो रही थीं जो भूतनाथ को और ताज्जुब में डाल रही थीं।

कई घंटे तक भूतनाथ उन कागजों को देखता-पढ़ता और नकल करता रहा। कलमदान के अन्दर से जितने कागजात निकले उनमें से हर एक की भूतनाथ ने नकल कर डाली और इसके अलावा भी जो कुछ कागजात थे उनमें से जिसे जरूरी समझा उसकी नकल कर ली, कुछ जला कर खाक कर दिए और कुछ को केवल पढ़ कर ही छोड़ दिया। इस काम में कई घण्टे लग गये और सूर्य डूब गया था जब यह काम खतम हुआ। उस समय भूतनाथ ने उस कलमदान के कागजों को पुन: उसी में बन्द किया और बाकी कागजों के साथ एक गठरी में बाँध शागिर्द के हवाले कर कहा, ‘‘इसे लामाघाटी में ले जाकर खूब हिफाजत से रक्खो। तीन-चार दिन में मैं स्वयं आऊँगा और जो कुछ आगे करना है उसका निश्चय करूँगा।’’ इसके बाद उन कागजों की जो नकल तैयार की थी उसे अपनी कमर में बांधा और सफर की तैयारी की घण्टे भर रात जाते-जाते पुन: उसी तरह इन्दिरा को लेकर सफर शुरू हुआ। इस बार भूतनाथ रात भर चला गया यहाँ तक कि सुबह होते-होते बलभद्रसिंह के मिर्जापुर वाले उस मकान पर जा पहुँचा जहाँ वे आजकल रहा करते थे।

बलभद्रसिंह के पास भूतनाथ ने अपने आने की इत्तिला कराई। इस तरह बेमौके भूतनाथ का आना सुन उन्हें हद्द से ज्यादा ताज्जुब हुआ और वे तुरंत भूतनाथ के पास पहुँचे। तखलिया करा के भूतनाथ ने बहुत ही संक्षेप में इन्दिरा को दारोगा के कब्जे से छुड़ाने का कुछ हाल कहा मगर सभा को लूटने या कलमदान छीनने वगैरह का हाल कुछ भी न बताया। इसके बाद बातचीत होने लगी।

भूत० : कदाचित आप ताज्जुब करेंगे कि इस लड़की (इन्दिरा) को सीधा इन्द्रदेव के पास न ले जाकर मैं आपके पास ले आया हूँ। इसके दो सबब हैं। एक तो कई नाजुक बातों की खबर देने के लिए मुझे आपके पास आना जरूरी था और दूसरे यह भी मुझे मालूम हुआ कि इन्द्रदेव का मकान अब दुश्मनों की पहुँच से बाहर नहीं रह गया है।

इन्दिरा से जब आप उसका हाल सुनेंगे तो यह जान आपको ताज्जुब होगा कि खास इसके मकान ही से इसे और इसकी माँ को दुश्मनों ने फँसा लिया अस्तु यदि यह वहाँ जायगी तो पुन: फँसेगी परन्तु यदि आपके पास रहेगी तो दुश्मनों को कभी शक भी न होगा कि वह यहाँ है और वे इधर आने का ध्यान भी मन में न लायेंगे।

बल० : बेशक वे इसे मेरे मकान में न ढूँढेंगे, परन्तु फिर भी इन्द्रदेवजी को यह खबर हो जानी चाहिए कि इन्दिरा मेरे मकान पर है।

भूत० : यहाँ से लौट कर मैं सीधा उन्हीं के पास जाऊँगा और सब हाल सुनाऊँगा, आप इसकी चिन्ता न करें।

बल० : बहुत ठीक, हाँ अब यह बताइये कि वे बातें कौन सी हैं जिनके लिये आपको मेरे पास आने की जरूरत पड़ी?

भूत० : जी हाँ, सुनिये और बहुत गौर से सुनिये। आपकी बड़ी लड़की लक्ष्मी देवी का शादी राजा गोपालसिंह से ठीक हुई है।

बल० : हाँ।

भूत० : और इस काम में कुछ आदमी आपके बर्खिलाफ कोशिश कर रहे हैं।

बल० : हाँ।

भूत० : अब यह भी सुन लीजिए कि उन्होंने निश्चय कर लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाय यह शादी न होने पावे। इसके लिए उन्हें जो कुछ करना पड़े और आपको, आपकी लड़की को, राजा गोपालसिंह तक को भी चाहे कितना कष्ट पहुँचाना पड़े, पर वे लोग अपनी बात से न टलेंगे, मैंने तो यहाँ तक सुना है कि वे लोग अगर जरूरत पड़े तो आपकी जान तक लेने पर तुल गये हैं।

बल० : (घबड़ाकर) क्या सचमुच!

भूत० : जी हाँ, अस्तु मेरी प्रार्थना है कि आप बहुत ही होशियारी के साथ रहें।

बल० : मगर ऐसा करने वाले आखिर हैं कौन लोग? अभी तक तो मैं यह समझ रहा था कि केवल दारोगा साहब ही मेरे बर्खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं मगर आपकी बातों से जान पड़ता है कि वे लोग कई आदमी हैं।

भूत० : मैं इस बात को जानने की कोशिश कर रहा हूँ कि कौन-कौन से लोग इस काम में लगे हुए हैं। पर अभी तक ठीक-ठीक कुछ पता नहीं लगा है, फिर भी मैं आपको होशियार किये देता हूँ कि खूब ही चौकन्ने रहें और किसी अनजान आदमी का कभी जरा भी विश्वास न करें। मैं खुद इस मौके पर आपकी मदद करता पर क्या बताऊँ ऐसी झंझट में फँसा हुआ हूँ कि दम मारने की फुर्सत नहीं मिलती। अच्छा तो यह बताइए कि राजा गोपालसिंह ने अपना कोई ऐयार आपकी निगहबानी के लिए भेजा है?

बल० : हाँ आजकल उनके हरनामसिंह नामक ऐयार मेरे घर की चौकसी करते हैं।

भूत० : बिहारी और हरनाम! आप उन पर जरा भी भरोसा न करियेगा। ऐयारी का नाम बदनाम करने और मालिक के साथ दगा करने वाले वे दोनों दगाबाज आपके दुश्मनों से मिले हुए हैं इसकी मुझे पक्की खबर लग चुकी है।

बलभद्रसिंह यह बात सुनकर भूतनाथ का मुँह देखने लगा। भूतनाथ उनके आश्चर्य को देख बोला, ‘‘आप चाहें तो मैं इस बात का सबूत भी दे सकता हूँ।’’

इतना कह भूतनाथ ने बलभद्रसिंह के कान के पास मुँह ले जाकर न जाने क्या कहा कि वे एकदम चौंक कर उछल पड़े और उनके चेहरे पर हवाई उड़ने लगी।

भूतनाथ और भी कुछ देर तक बलभद्रसिंह से बातें करता रहा, इसके बाद इन्दिरा को बिहारी और हरनाम की निगाहों से भी बचा रखने की बहुत ताकीद कर सुबह होने के पहिले ही वहाँ से रवाना हो गया।

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