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भूतनाथ - खण्ड 5

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :277
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8364
आईएसबीएन :978-1-61301-022-8

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भूतनाथ - खण्ड 5 पुस्तक का ई-संस्करण

।। पन्द्रहवाँ भाग ।।

 

पहिला बयान

श्यामा को लिए हुए जब भूतनाथ उसके बताए हुए ठिकाने पर काशी पहुँचा तो उसने अपने को एक अंधेरी और सुनसान गली के अन्दर बने हुए एक बन्द मकान के दरवाजे पर पाया। श्यामा की इच्छानुसार बाबाजी की दी हुई ताली से भूतनाथ ने मकान का ताला खोला और दोनों व्यक्ति अन्दर घुसे।

अन्दर पहुँच कर भूतनाथ ने उस मकान को बहुत ही बड़ा कुशादा और आलीशान पाया और उसकी सजावट भी बहुत ऊँचे दर्जे की देखी। इस अँधेरी और तंग गली में इतने बड़े और इस तरह के आलीशान मकान के पाने की कोई भी उम्मीद न हो सकती थी अस्तु वह कुछ ताज्जुब और उत्कण्ठा से श्यामा के साथ-साथ उस मकान में घूम-घूम कर उसके हर हिस्से को देखने लगा।

श्यामा उस बड़े मकान के हर एक कोने से बखूबी वाकिफ जान पड़ती थी और उसकी बातचीत से भूतनाथ को यह भी मालूम हुआ कि यह उसका पैतृक मकान है और उस भयानक तिलिस्म में फँसने से पहिले वह इसी में रहती थी। मकान गर्द, धूल और गन्दगी से एकदम साफ था और ऐसा मालूम होता था मानों अभी-अभी कोई इसकी सफाई करके गया है।

भूतनाथ इस मकान को देख कर बहुत खुश हुआ और खास कर तब तो उसकी प्रसन्नता का कोई पारावार ही न रहा जब कई कोठरियाँ और तहखाने खोल-खोल कर श्यामा ने वह अगाध दौलत भी उसे दिखलाई जो उनमें भरी हुई थी और जिसका श्यामा के कथनानुसार अब भूतनाथ ही मालिक था। सामानों में से यहाँ किसी की कमी न थी अस्तु उन दोनों ने बहुत जल्द जरूरी कामों से छुट्टी पा ली और भूतनाथ संध्या-पूजा के काम में तथा श्यामा रसोई बनाने की धुन में लगी।

इसमें कोई शक नहीं कि श्यामा ने ठीक उसी तरह अपना कर्तव्यपालन किया जैसा कि एक सती स्त्री को करना चाहिए। भूतनाथ उसकी बातचीत और चाल-चलन बात-व्यावहार से बहुत ही प्रसन्न हुआ और अपनी किस्मत को सराहने लगा जिसने उसे ऐसी सुन्दर स्त्री के साथ-साथ इतना अगाध धन भी दिया था।

श्यामा की सेवा सुश्रुषा से मोहित हो वह एक दिन के बजाय तीन दिन तक उसके साथ उसी जगह रह गया और चौथे दिन भी बड़ी मुश्किल से तब श्यामा ने उसे छुट्टी दी जब भूतनाथ ने वादा किया कि वह कुछ बहुत ही जरूरी काम निपटा कर दूसरे ही दिन अवश्य वापस आ जायगा। उसने श्यामा से यह भी कहा कि वह बहुत जल्द कई नौकर और मजदूरनियाँ उसकी खिदमत के लिए भेज देगा और इसे श्यामा ने खुशी-खुशी मंजूर किया। दोपहर के कुछ पहिले ही भूतनाथ श्यामा के मकान के बाहर हो गया और श्यामा वहाँ अकेली रह गई।

कुछ देर तक श्यामा इधर-उधर घूमती रही और तब अपने सोने के कमरे में पहुँच कर फर्श पर बैठ गई। एक पेटी में से उसने लिखने का सामान निकाला और पत्र लिखने लगी। यह पत्र बहुत लम्बा-चौड़ा था और श्यामा ने इसे बड़े ध्यान से ठहर-ठहर और रुक-रुक कर बड़े सोच-विचार के बाद लिखा और पूरा किया चीठी समाप्त होने पर वह उसे पुनः शुरू से आखीर तक पढ़ गई और तब उसे एक बड़े लिफाफे में बन्द कर उसके जोड़ पर मुहर कर दी। चीठी का मजमून क्या था यह तो हम जान न सके पर लिफाफे का पता देखने से मालूम हुआ कि वह जमानिया के दारोगा साहब के नाम थी।

मुश्किल से श्यामा ने यह काम खतम किया था कि बाहर से किसी के कुण्डा के खटखटाने की आवाज आई जिसे सुनते ही श्यामा चौंक उठी। वह पत्र उसने उसी पेटी में बन्द कर दिया और तब एक खिड़की के पास पहुँची जहाँ से देखने पर मकान का बाहरी सदर दरवाजा बखूबी दिखाई पड़ता था।

श्यामा ने देखा कि दो आदमी दरवाजे पर खड़े हैं जो चाल-ढाल से ऐयार मालूम होते हैं और जिन्हें शायद वह पहिचानती भी थी क्योंकि उन्हें देखते ही उसने एक विचित्र तरह से सीटी बजाई। सीटी की आवाज सुनते ही उन लोगों ने ऊपर की तरफ देखा और श्यामा को झाँकते पाकर सीटी ही के इशारे में कुछ जवाब दिया।

श्यामा ने उसे सुन खड़े रहने का इशारा किया और तब नीचे उतर दरवाजा खोल उन्हें भीतर कर लिया। उन दोनों में से एक आदमी तो वहीं रह गया मगर दूसरे को लिए श्यामा ऊपर की मंजिल की एक दुछती में जा बैठी और बातें करने लगी।

श्यामा : कहो साधोराम, कुशल से तो हो?

साधो : (हाथ जोड़ कर) आपकी दया से सब कुशल है।

श्यामा : वह काम तो गया जिसके लिए तुम लोग आये थे?

साधो० : जी हाँ हो गया कभी का हो गया। रामदेई गिरफ्तार करके जमानिया भेज दी गई और आजकल उसकी गद्दी पर नागरजी विराज रही हैं।

श्यामा : (मुस्कुरा कर) अच्छा ही हुआ, वह रामदेई की गद्दी अच्छी तरह सम्हालने लायक भी है। अब उम्मीद है तुम लोगों का बाकी काम भी बखूबी हो जायगा।

साधो० : देखिये, आशा तो बहुत कुछ है। आप अपनी तरफ का कुछ हालचाल सुनाइये, भूतनाथ को तो थोड़ी देर हुई मैंने अपने घर की तरफ जाते देखा था।

श्यामा : हाँ वह एक दिन की छुट्टी लेकर गया है और कल आने को कह गया है।

साधो० : मालूम होता है वह अच्छी तरह आपके चंगुल में फँस गया है।

श्यामा : हाँ ऐसी ही बात है मगर वह है बड़ा धूर्त, मुझे उससे डर ही लगा रहता है।

साधो० : इसमें तो शक नहीं, मगर मुझे विश्वास है कि आपके सामने उसकी चालाकी काम न आवेगी।

श्यामा : देखो क्या होता है, मैं तो तब खुश होऊँ जब मेरा काम पूरा हो और बाबाजी से जो प्रतिज्ञा मैं करके आई हूँ उसे पूरा कर पाऊँ। इतना जरूर है कि शुरु अच्छे शगुन से हुआ है और भूतनाथ को मुझ पर पूरा विश्वास हो गया है। मैं उम्मीद करती हूँ कि अगर नागर ने अपना काम ठीक तरह से पूरा किया तो मुझे भी जरूर सफलता मिलेगी।

साधो० : नागरजी भी पूरी कोशिश में लगी हुई हैं, मगर मुश्किल इतनी ही हो गई है कि भूतनाथ के लड़के को कुछ शक हो गया है और वह इस फिराक में लग गया है कि हम लोगों के भेद का पता लगाये।

श्यामा : (चौंक कर) तुम लोगों के भेद का पता लगाये! तब क्या उसे मालूम हो गया कि उसकी माँ कैद हो गई और उसकी जगह नागर उसके घर पर हुकूमत कर रही है?

साधो० : मैं ठीक-ठीक तो नहीं कह सकता मगर इतना जरूर है कि उसे पता लग गया है कि उसके यहाँ कुछ चालाकी हो रही है। बात यह हुई कि जब हम लोग रामदेई को लेकर भागे उसी समय नागरजी रामदेई बनकर उसकी जगह पर जा बैठीं मगर नानक ने किसी तरह हमारे आदमियों को भागते देख लिया और पीछा किया।

इस सम्बन्ध में कितना कुछ उसे मालूम हुआ है सो तो मैं नहीं कह सकता परन्तु नागरजी की जुबानी इतना सुनने में आया कि वह लौटकर उनसे बहुत कुछ पूछताछ करता था। कुशल यही हुई कि नागरजी को भी मालूम हो गया कि नानक ने हम लोगों का पीछा किया है और उन्होंने कुछ ऐसा जाल रचा कि घर लौटकर नानक कुछ भी शक का मौका पा न सका, फिर भी हम लोगों को डर बना हुआ है।

श्यामा : यद्यपि नानक अभी लौंडा और पूरा बेवकूफ है फिर भी उसको काबू में रखना होगा। अगर उसने भूतनाथ के कान में कुछ भी सुनगुनी डाल दी तो मुश्किल हो जायगी। तुम लोगों ने नानक के लिए क्या प्रबन्ध किया?

साधो० : जी अभी तक तो कुछ भी नहीं मगर शीघ्र ही कुछ जरूर हो जायगा। आपको शायद रामखिलावनसिंह का नाम याद होगा जिससे पहिले!

श्यामा : हाँ-हाँ, वही रामखिलावनसिंह जिसकी जमींदारी चुनार की तरफ है और जो पहिले मेरे...

साधो० : जी हाँ वही

श्यामा : उसको मैं खूब जानती हूँ और उम्मीद है कि वह भी मुझे भूला न होगा। उससे क्या?

साधो० : उसके रिश्ते की एक गूंगी और बहरी लड़की है जो उसी के पास रहती है। उसका नाम रामभोली है। हम लोगों को पता लगा है कि इस रामभोली पर नानक बुरी तरह आशिक है और उसके लिए जान देता है। उसी रामभोली के जरिये शायद हम लोग नानक को राह पर ला सकेंगे।

श्यामा : हाँ यह तर्कीब हो सकती है। तुम जो कुछ कर रहे हो वह तो करते ही रहो मैं भी इसके सम्बन्ध में कोशिश करूँगी और जहाँ तक हो सकेगा तुम लोगों की मदद करूँगी। लेकिन मैं यह चाहती हूँ कि एक बार नागर से मिल लूँ चूँकि हम लोगों का काम करीब-करीब एक-सा ही है इससे हम लोगों के आपुस में सलाह करके चलने में काम जल्दी पूरा होगा।

साधो० : बहुत ठीक है, मैं नागरजी से मिलकर सब प्रबन्ध कर लूँगा और आपको खबर दूँगा, प्रायः दूसरे-तीसरे मैं उनसे अवश्य मिल लेता हूँ क्योंकि उस मकान के कई नौकर-मजदूरनियों को भी हम लोगों ने पकड़ लिया है और उनकी जगह अपने आदमी भरती कर दिए हैं। इधर दो-चार रोज भूतनाथ यहाँ रहेगा मगर उसके चले जाने के बाद फिर कोई असुविधा न रहेगी। आपसे तो मैं रोज ही मिल लिया करूँगा और जो कुछ कामकाज हो बजा लाया करूंगा।

श्यामा : हाँ, जरूर मिल लिया करो। इधर तुम्हारा कोई आदमी जमानिया तो नहीं जाने वाला है?

साधो० : जी हाँ क्यों, बराबर ही आदमी आते-जाते रहते हैं। क्या कोई काम है?

श्यामा : एक बहुत ही गुप्त जरूरी चीठी दारोगा साहब के पास भेजनी है, किसी विश्वासी आदमी से उनके पास भेजवाओ और जवाब माँगकर मुझे दो।

साधो० : बहुत खूब, दे दीजिए! उम्मीद है परसों तक जवाब आपको मिल जायगा!

श्यामा ने वह चीठी जो कुछ ही देर पहिले लिखी थी साधोराम को दे दी। तब कुछ और समझाने-बुझाने के बाद उसे बिदा किया।

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