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भूतनाथ - खण्ड 4

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :300
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8363
आईएसबीएन :978-1-61301-021-1

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भूतनाथ - खण्ड 4 पुस्तक का ई-संस्करण

नौवाँ बयान


भूतनाथ जब होश में आया उसने अपने को उसी चश्मे के किनारे पड़ा पाया।

इस समय वह बहुत ही सुस्त और उदास था इधर थोड़े समय के भीतर जो कुछ उसके देखने में आया था उसको याद कर वह काँप रहा था, पिछली बातों की याद कलेजा मुँह को ला रही थी और अपनी हालत की तरफ ध्यान देने में आँसू गिरने लगते थे, वह देर तक उसी तरह बैठा हुआ रोता रहा और बिलखता रहा पर अन्त में उठा और चश्में के पानी से हाथ-मुँह धो एक तरफ को रवाना हो गया।

अभी बहुत दूर नहीं गया था कि पीछे किसी की आहट मालूम पड़ी, घूमकर देखा तो शेरसिंह पर निगाह पड़ी, वह पलट पड़ा और उसे गले से लिपटा बेतहाशा आँसू गिराने लगा, शेरसिंह उसकी यह हालत देख घबड़ा गया और बोला, ‘‘गदाधरसिंह, यह क्या मामला है!

तुम रो क्यों रहे हो?’’

भूत० : (अलग होकर) बस एक तुम्हीं से मिलने की आस थी सो पूरी हो गई, अब मैं इस दुनिया को छोड़ दूँगा और किसी को अपना काला मुँह नहीं दिखाऊँगा।

शेर० : (आश्चर्य से) आज तक ऐसी हालत तो तुम्हारी मैंने कभी नहीं देखी थी! तुम्हें हो क्या गया है?

भूत० : अब मैं क्या बताऊँ कि मुझे क्या हो गया है, अगर तुम्हें फुरसत हो तो बैठ जाओ और मेरा हाल सुन लो।

शेर० : मैं बिल्कुल खाली हूँ, जो कुछ तुम्हें कहना हो कहो।

शेरसिंह एक साफ जगह देख कर बैठ गया, भूतनाथ उसके सामने जा बैठा और हाल कहने लगा।

शुरू से अब तक का सब हाल भूतनाथ ने साफ-साफ और सच-सच शेरसिंह से कह सुनाया। प्रभाकरसिंह के चुनार से भागने से लेकर जमना-सरस्वती और इन्दुमति का तिलिस्म में फँसना और भैयाराजा का उनकी मदद करना वगैरह सब हाल कहा। अन्त में जमना और सरस्वती का मरना, गौहर की गिरफ्तारी, दारोगा की बातें और गौहर का भागना तक- सब हाल जो कुछ पाठक ऊपर पढ़ चुके हैं खुलासा कहा और तब वह हाल पूरा-पूरा कह सुनाया जो रात को उसके ऊपर गुजरा था।

शेरसिंह बड़े गौर से सब हाल चुपचाप सुनता रहा। बीच-बीच में भूतनाथ की बातें सुन उसका चेहरा तरह-तरह के भाव धारण करता और कभी लाल, कभी पीला और कभी सफेद होकर उसके दिल के भाव को जाहिर कर रहा था, पर मुँह से कुछ भी न कहा और न भूतनाथ को अपना हाल कहने में किसी तरह टोका या रोका ही।

जब सब हाल कह भूतनाथ चुप हो गया तो शेरसिंह ने एक लम्बी साँस ली और कहा, ‘‘गदाधरसिंह, मैं नहीं जानता था कि तुम ऐसे-ऐसे काम कर चुके या कर रहे हो। यद्यपि बीच-बीच में मैं तुम्हारी हालत का पता बराबर लेता रहता था पर तुम यहाँ तक कर गुजरोगे इसका मुझे स्वप्न में भी गुमान न था।

अगर मुझे इन बातों का पता लगता तो बेशक मैं जिस तरह बन पड़ता तुम्हें उन कामों के करने से रोकता जिनके लिए आज तुम बिलख रहे हो, मगर अफसोस, मुझे कुछ भी खबर न थी कि तुम्हारे हाथ से ऐसे काम हो रहे हैं जिनके कारण तुम हद्द दरजे की मुसीबत में हो और बदनामी का पहाड़ गिराकर तुम्हें अपने नीचे कुचल दिया चाहता है। गदाधरसिंह, सच तो यह है कि तुम्हारे इन कर्मों को सुन मुझे तुमसे घृणा हो गई है और तुम्हारा मुँह देखना पसन्द नहीं करता हूँ।

भूत० : (गर्दन झुका कर) बस जब तुम्हीं मुझसे ऐसी बातें करने लगे तो हो चुका। अब मैं कुछ न कहूँगा और न तो तुम्हें और न अपने किसी साथी को ही कभी अपना मुँह दिखाऊँगा। मालूम हो गया है कि मेरी दुनिया बस इतनी ही थी अब मैं तुमसे विदा होता हूँ और किसी घने जंगल में छिपकर...!

इतना कहता हुआ भूतनाथ उठ खड़ा हुआ मगर लपककर शेरसिंह ने उसे पकड़ लिया और यह कहते हुए अपने स्थान पर बैठाया, ‘‘नहीं-नहीं, गदाधरसिंह, मेरे कहने का वह मतलब नहीं है जो तुम समझ बैठे हो। मेरा मतलब यह है कि जब तक तुम अपनी अवस्था में परिवर्तन नहीं करोगे, अपने को नहीं सुधारोगे, अपने दुष्ट और पतित साथियों को नहीं छोड़ोगे और भले कामों में मन नहीं लगाओगे, तब तक न तो मैं तुम्हारा साथ दूँगा और न तुम्हें ही इस संसार में कभी शान्ति मिलेगी।

भूत० : तब आप क्या चाहते हैं? मैं क्या करूँ मैंने तो सोच लिया था कि अब इस दुनिया को ही छोड़ दूँगा।

शेर० : भला ऐसा करने का क्या नतीजा निकलेगा? ऐसा करोगे तो और भी बदनाम हो जाओगे। आदमी के हाथ से अगर कोई खराब काम हो जाए तो दृढ़ता और साहस के साथ उस किए हुए को मिटाने का उद्योग करना चाहिए। जो कुछ तुम कर चुके हो उसका जवाब यह नहीं है कि दुनिया से गायब हो जाओ।

नहीं, नहीं यह नामर्दों का काम है जो मुसीबत को काल समझते हैं और आफतों से ही घबड़ाते हैं जितना चोर सजा से। नहीं दुष्कर्मों का जवाब इस दुनिया में यदि कुछ है तो सुकर्म है! अगर तुम्हारे हाथ से एक या दो चार खराब काम हो गए हैं तो दस-बीस या चालीस भले काम करके उनके कलंक को धो डालो और दुनिया को बता दो कि मैंने अगर दो काम बुरे किए हैं तो सौ काम अच्छे किए हैं।

जिस रोज तुम ऐसा कर सकोगे उस दिन तुम दुनिया को दिखा सकोगे कि तुम्हारी जिन्दगी के तराजू में पाप का पलड़ा ऊपर को और पुण्य का पलड़ा नीचे को झुका हुआ है, उसी रोज कोई फिर तुम्हें उँगली दिखाने का साहस न करेगा, कोई यह कहने की हिम्मत न करेगा कि गदाधरसिंह पातकी है।

क्योंकि ऐसा इस दुनिया में कोई भी नहीं है जो दृढ़ता के साथ यह कह सके कि मेरे हाथ से कभी कोई दुष्कर्म हुआ ही नहीं! दुनिया में हर एक छोटे से लेकर बड़ा तक, किसी न किसी दुष्कर्म के बोझ से दबा हुआ है। मुझे या इन्द्रदेव को ही लो, क्या हमें एकदम से पवित्र समझते हो? नहीं, कभी नहीं, फिर तुम्हें घबड़ाने की क्या जरूरत है? उठो, होश सम्भालो, और अपने पिछले कर्मों का बदला इस तरह पर अदा करो कि दुनिया कहे- गदाधरसिंह ने अगर एक काम बुरा किया तो सौ काम अच्छे किए हैं।

वह उंगली दिखाने के लायक नहीं है।’ बताओ यह तरकीब अच्छी है या कहने का मौका देना कि ‘गदाधरसिंह ने ऐसे पाप किए कि वह दुनिया में किसी को मुँह देखाने के काबिल नहीं रह गया’, तुम्हीं विचार करो और बताओ कि दोनों में क्या अच्छा है?

भूत० : आपकी बातें मेरी हिम्मत बढ़ाती हैं, मुझे मालूम होता है कि अब भी मेरे कर्मों का प्रायश्चित है।

शेर० : बेशक है, हजार बार है, और वह यही है कि सुकर्म करके पिछली बदनामी को धो डालो, ऐसे-ऐसे काम करो कि दुश्मनों के भी दाँत खट्टे और उन्हें भी कहना पड़े- ‘‘बेशक गदाधरसिंह सचमुच मर्द निकला! उसने सब पापों को धोकर बहा दिया।’’

भूत० : तो आप मुझे क्या करने का उपदेश देते हैं?

शेर० : बस यही कि अब तक जो कुछ तुम कर चुके हो उसे बिल्कुल ही भूल जाओ, समझ लो कि वह एक दुखान्त नाटक का अन्तिम दृश्य था जिस पर सदा के लिए पर्दा पड़ गया। दारोगा और जैपाल जैसे बेईमानों का साथ एकदम छोड़ दो और पिछली किसी बात का ख्याल न कर उनके साथ किसी तरह का रहम और मुरौवत का बर्ताव करना भी भूल जाओ।

आजकल दामोदर सिंह के मारे जाने से जमानिया भर में हलचल मच गई है, सब लोग घबड़ाए हुए हैं, राजा गिरधरसिंह बेचैन हो रहे हैं, कुँवर गोपालसिंह बदहवास हो रहे हैं, बलभद्रसिंह घबड़ा गये हैं। इन लोगों की मदद करो, दामोदर सिंह के खूनी का पता लगाओ, महाराज गिरधरसिंह से मुनासिब समझो तो मिलो और ऐसे आड़े वक्त पर उनके काम आओ, इन्द्रदेव पर कई तरह की मुसीबतें आ पड़ी हैं, (जिनके मुख्य कारण तुम्हीं हो)- उनकी मदद करो।

समझ रक्खो कि लाख हो पर वे तुम्हारे साथ बराबर दोस्ती का ही बर्ताव रखेंगे। तुम पर भरोसा करेंगे। तुम्हारी मदद करेंगे, तुम्हारे पिछले कलंकों को दूर करके तुम्हारी नेकनामी के बायस बनेंगे। तुम उनसे मिलो और जो कुछ मैंने कहा है उनको सुना कर उनकी राय लो। जहां तक मैं समझता हूँ वे भी मेरी तरह तुमसे कहेंगे, गदाधरसिंह, जो हो गया उसे जाने दो, उनका ख्याल एकदम भूल जाओ, उसे किसी दुखान्त उपन्यास का एक वैसा पृष्ठ समझो जो कि सदा के लिए उलट दिया गया है और अब पुन: सामने नहीं आवेगा।

नये सिरे से कमर कस कर इस कर्ममय संसार में उतरो और कुछ नामवरी पैदा करो। अगर मेरी विचारशक्ति मुझे धोखा नहीं दे रही है तो बेशक तुम इन्द्रदेव को भी वैसा ही मेहरबान और हमदर्द पाओगे जैसा मुझको।

भूत० : (आँखें डबडबाकर) शेरसिंह, मैं तुम्हें भाई समझता था और समझता हूँ, मगर भाई से भी बढ़कर मैं अपना दोस्त और सलाहकार समझ सकता हूँ। मैं नहीं कह सकता कि तुम्हारी बातों ने मुझे कैसी शान्ति पहुँचाई है। तुम्हारी इस नेक सलाह ने मेरे दिल में घर कर लिया है। मैं जरूर वही करूँगा जो तुमने कहा है और दिखा दूँगा कि मैं क्या-क्या कर सकता हूँ।

आज से पिछली बातों और घटनाओं को मैं दु:खदाई स्वप्न की तरह बिल्कुल ही भूल जाता हूँ और अपनी मैली हो गई नेकनामी की चादर को धोने का उद्योग करता हूँ, और शेरसिंह, खूब खयाल रक्खो कि या तो मैं कामयाबी ही हासिल करूँगा और नहीं तो यह दुनिया ही छोड़ दूँगा। बस अब मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो।

इतना कह भूतनाथ उठ खड़ा हुआ। शेरसिंह भी उठ खड़ा हुआ। भूतनाथ ने उसे पुन: गले लगाया और देखते-देखते घने जंगलों में घुस आँखों की ओट हो गया।

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